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गज़ा में रक्तपात के छह महीने

गज़ा पर इजरायल के हमले को 6 महीने हो चुके हैं। 7 अक्टूबर 2023 को हमास की ओर से इजरायल पर किए गए हमले के खिलाफ बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध का ऐलान कर दिया था। हमास ने इजरायल से 253 लोगों को बंधक बना लिया था

गज़ा में रक्तपात के छह महीने
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गज़ा पर इजरायल के हमले को 6 महीने हो चुके हैं। 7 अक्टूबर 2023 को हमास की ओर से इजरायल पर किए गए हमले के खिलाफ बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध का ऐलान कर दिया था। हमास ने इजरायल से 253 लोगों को बंधक बना लिया था। जिनमें से 130 अब भी बंधक हैं और कम से कम 34 की मौत हो चुकी है। अपने लोगों को छुड़ाने और हमास के खात्मे के नाम पर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गज़ा पर आक्रमण किया था। इन छह महीनों में न हमास खत्म हुआ, न बंधकों की सुरक्षित रिहाई का कोई रास्ता निकला, लेकिन इस बीच गज़ा में खून की नदियां खूब बहीं। कम से कम 30 से 35 हजार लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से 13 हजार से ज्यादा बच्चों की मौत हुई है, 12 हजार से ज्यादा बच्चे बुरी तरह घायल हैं, हजारों बच्चे विकलांगता का शिकार भी हो चुके हैं।

गज़ा के आम लोग पिछले छह महीनों से लगातार आक्रमणों का सामना कर रहे हैं और इसके साथ उन्हें बीमारी, भुखमरी, लूटपाट इन सबका शिकार भी होना पड़ रहा है। गज़ा से जो तस्वीरें बाहर आती हैं, उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि दुनिया में इंसानियत पूरी तरह मर चुकी है।

इज़रायल केवल हमास को खत्म करने के नाम पर गज़ा पर बम और गोलियां नहीं दाग रहा, वो लोगों तक राहत सामग्री भी नहीं पहुंचने दे रहा है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट है कि उत्तरी ग़ज़ा में फंसे 30 हज़ार लोग जनवरी से रोज़ाना औसतन 245 कैलोरी पर जी रहे हैं, जबकि सामान्य तौर पर महिलाओं के लिए 12 सौ से 24 सौ और पुरुषों के लिए 2 हजार से 3 हजार कैलोरी की जरूरत बताई जाती है।

निर्दोषों को मारना, बीमारों को इलाज की सुविधा से दूर करना, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित वातावरण नहीं देना, पीड़ितों तक राहत सामग्री पहुंचने से रोकना, ये सब इंसानियत के खिलाफ गंभीर अपराध हैं। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने इज़रायल पर जनसंहार के गंभीर इल्जाम भी लगाए हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द हेग में इज़रायल पर मुकदमा दायर किया गया है। लेकिन इज़रायल ने इन आरोपों से इंकार कर दिया है। इज़रायल के वकीलों में से एक टाल बेकर ने द हेग की अदालत में कहा कि इजरायल और फ़िलिस्तीन दोनों ओर नागरिकों को आज जिस परेशानी से गुजरना पड़ रहा है वो हमास की रणनीति का नतीज़ा है। यानी इज़रायल यह मान रहा है कि गलती हमास की है, लेकिन फिर भी वो सजा आम लोगों को दे रहा है।

9 अक्टूबर को इज़रायल के रक्षा मंत्री योआव गैलांट ने बीरशेहा में इज़रायली सेना की दक्षिणी कमान का दौरा करने के बाद कहा था, 'मैंने ग़ज़ा पट्टी की पूरी तरह से घेराबंदी करने का आदेश दिया है। वहां न बिजली होगी, न खाना और ना इंसान रूपी जानवरों से लड़ रहे हैं, लिहाजा हम इसी के मुताबिक़ कदम उठाएंगे।' द.अफ्रीका की कानूनी टीम के मुताबिक गैलांट का बयान उनके जनसंहार के इरादे को ही दिखाते हैं।

इज़रायल जनसंहार के आरोपों से बचता है या उस पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कोई कार्रवाई होती है, यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा, फिलहाल इज़रायल ने जो रक्तपात मचाया है, उससे इज़रायल की जनता भी नाराज दिख रही है। इज़रायल में जनता लगातार सड़कों पर उतर रही है। बीते शनिवार को भी तेल अवीव, कैसरिया और हाइफ़ा की सड़कों पर आम लोगों ने प्रदर्शन किया और हमास की गिरफ्त में फंसे अपने लोगों की सुरक्षित वापसी के लिए आवाज उठाई। इसके अलावा धर्म और राजनीति के नाम पर किए जा रहे अत्याचार को बंद करने की अपील भी की। आम जनता का एक बड़ा तबका नेतन्याहू से नाराज नजर आ रहा है। शनिवार के प्रदर्शन में कई लोगों ने हाथ में बैनर ले रखे थे, जिन पर लिखा था- 'नेतन्याहू इज़रायल के लिए खतरनाक हैं।' हाइफ़ा में प्रदर्शनकारियों ने नेतन्याहू को दोषी कहते हुए सरकार को तानाशाह बताया। कुछ बैनरों पर लिखा था- फौरन चुनाव कराओ, नेतन्याहू भगाओ।

इस बीच खबर आई कि इज़रायल ने दक्षिणी ग़ज़ा की ज़मीन पर लड़ रहे अपने सभी सैनिकों को वहां से वापस बुला लिया है। लेकिन सैनिकों की यह वापसी युद्ध की एक रणनीति ही है क्योंकि इज़रायली सेना फिर से संगठित हो रही है और युद्ध के अगले चरण की तैयारी कर रही है। वहीं प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने दावा किया है कि वे जीत से बस एक क़दम दूर हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि बिना बंधकों की रिहाई के ग़ज़ा में हो रहे इस युद्ध को नहीं रोका जाएगा।

इज़रायल को लगता है कि अब हमास का खात्मा वो कर देगा और अपने बंधकों को छुड़ा लेगा। हो सकता है अपनी सैन्य ताकत के दम पर इज़रायल छह महीने बाद बंधकों को छुड़ा भी ले, लेकिन इस दौरान मानवता पर क्रूरता और हिंसा के जो गहरे दाग इज़रायल ने लगाए हैं, क्या उन्हें किसी तरह मिटाया या छुड़ाया जा सकता है, यह गंभीर सवाल है।

अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की चिंताओं और सवालों को अनसुना करते हुए नेतन्याहू दावा कर रहे हैं कि युद्ध रोका नहीं जाएगा। लेकिन क्या इस दावे में उनकी सनक वैसी ही नजर नहीं आ रही, जिस सनक में हिटलर ने लाखों यहूदियों को उजाड़ा था। गनीमत है कि इज़रायल की जनता यह समझ रही है कि धर्म और राजनीति का घालमेल ठीक नहीं है।

नेतन्याहू का बढ़ता विरोध भी यह संकेत दे रहा है कि जब युद्ध समाप्त हो जाएगा, हालात सामान्य हो जाएंगे और फिर चुनाव जब होंगे, तब तक नेतन्याहू जनाधार खो चुके रहेंगे। किसी भी किस्म की तानाशाही और क्रूरता हमेशा के लिए नहीं रहती है। हालांकि जब भी ये पनपते हैं, तो इनका खामियाजा आम जनता ही भुगतती है। जर्मनी से लेकर गज़ा तक यही कहानी बार-बार दोहराई जा रही है, लेकिन इंसान न इतिहास से सबक ले रहा है, न वर्तमान को सुधार कर भविष्य सुरक्षित कर रहा है।


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