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सीतारमण ने एंट्रिक्स-देवास सौदे के लिए कांग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग की आलोचना करते हुए इसे भ्रष्टाचार का बेशर्म कृत्य कहा

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि यह पार्टी भ्रष्टाचार में लिप्त है

सीतारमण ने एंट्रिक्स-देवास सौदे के लिए कांग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग की आलोचना करते हुए इसे भ्रष्टाचार का बेशर्म कृत्य कहा
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नई दिल्ली। केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि यह पार्टी भ्रष्टाचार में लिप्त है और उसने देश के संसाधनों का दुरूपयोग कर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया था तथा एंट्रिक्स -देवास मामला उसके कार्यकाल का भ्रष्टाचार का बेशर्म कृत्य था।

सुश्री सीतारमण ने इस मामले में उच्चत्तम न्यायालय के फैसले का जिक्र करते हुए मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एक निजी कंपनी ने 2005 में मल्टीमीडिया और दूरसंचार सेवाएं शुरू करने की पेशकश की और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉपोर्रेशन के साथ एक समझौता किया था। इसके तहत इसरो के दो उपग्रहों, जीएसएलवी-6 और जीएसएलए-6ए को निजी सेवाओं के लिए कम कीमत पर पट्टे पर देने का सौदा किया गया था।

उन्होंने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रंग सरकार को इस धोखाधड़ी को भांपने में छह साल लग गए और बाद में यह समझौता रद्द कर दिया गया। लेकिन इस मामले में फिर मध्यस्थता शुरू हो गई क्योंकि निजी कंपनी ने भारत सरकार से लाखों डॉलर का दावा किया जो कि भ्रष्टाचार का एक बेहद घृणित कार्य था।

उन्होंने कहा कि एंट्रिक्स-देवास समझौते पर 2005 में हस्ताक्षर किए गए थे और छह वर्षों के विवादों के बाद इसे 2011 में रद्द कर दिया गया था। इस समझौते पर विभिन्न सरकारी एजेंसियों और विभागों ने गंभीर आपत्तियां उठाई थीं क्योंकि इसने देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड को एस-बैंड का उपयोग करने के लिए अधिकृत किया था। यह बहुत ही संवेदनशील बैंडविड्थ है जिसका इस्तेमाल ज्यादातर सैन्य बलों द्वारा अपने संचार के लिए किया जाता है तथा इस प्रकार यह मामला सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित था।

सुश्री सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस को अपने'क्रोनी कैपिटलिज्म' पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाया था।

उन्होंने कहा कि लेकिन भ्रष्टाचार की बेशर्मी यहीं नहीं रुकी, क्योंकि बार-बार अनुरोध करने के बाद भी सरकार का पक्ष रखने के लिए तत्कालीन संप्रग सरकार ने मध्यस्थ की नियुक्ति तक नहीं की थी। उन्होंने कहा कि यह संप्रग सरकार की आधी-अधूरी भागीदारी को दर्शाता है, जिसने परोक्ष रूप से निवेश के बहाने देवास मल्टीमीडिया की देश में आने की रणनीति का समर्थन किया।

कंपनी ने अमेरिका आधारित सहायक कंपनी, आईटी सेवाएं शुरू और अंतरराष्ट्रीय अदालतों में कानूनी लड़ाई लड़ने के नाम पर 488 करोड़ रुपये की हेराफेरी की।

श्रीमती सीतारमण ने इस मामले में एंट्रिक्स-देवास समझौते पर उच्चत्तम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया जिसने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के आदेश को बरकरार रखा है। एनसीएलएटी ने इससे पहले एनसीएलटी की बेंगलुरू पीठ के पिछले आदेश को बरकरार रखा था जिसमें पिछले साल देवास मल्टीमीडिया को बंद करने का निर्देश दिया गया था और इस उद्देश्य के लिए एक अस्थायी लिक्वि विडेटर नियुक्त किया गया था। कंपनी ने देवास डिवाइस, देवास सर्विस और देवास टेकनालाजीज के माध्यम से जो सेवाएं पेश करने का दावा किया था वे वास्तव में मौजूद नहीं थीं।

कंपनी बाद में अपने नुकसान के मुआवजे के रूप में 1.13 अरब डॉलर का दावा करने के लिए इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालतों और कानूनी मंचों पर लेकर गई। देवास ने तब भारत-मॉरीशस द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते के आधार पर स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पीसीए) का रुख किया, जिसने बाद में भारत सरकार को ब्याज और कानूनी लागत के साथ 11.1 करोड़ डॉलर का भुगतान करने का निर्देश दिया।

देवास मल्टीमीडिया ने पहले ही एंट्रिक्स के खिलाफ 1.3 बिलियन डॉलर का मुआवजा पाने के लिए इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स में मुकद्मा जीत हासिल लिया था । इस बीच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशाालय (ईडी) ने भी एंट्रिक्स-देवास सौदे की जांच शुरू प्राथमिकी दर्ज की थी। इसी मामले में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने भी जांच शुरू कर दी थी।


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