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जामिया के बाहर प्रदर्शन में सिख समुदाय भी हुआ शामिल

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाहर 22 दिनों से चल रहे चल रहे प्रदर्शन में शुक्रवार को कई सिख प्रदर्शनकारी भी शामिल हुए

जामिया के बाहर प्रदर्शन में सिख समुदाय भी हुआ शामिल
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नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाहर 22 दिनों से चल रहे चल रहे प्रदर्शन में शुक्रवार को कई सिख प्रदर्शनकारी भी शामिल हुए। सिख समुदाय के कार्यकर्ता गुरफतेह से आए। इन प्रदर्शनकारियों में से एक जगमोहन ने जामिया विश्वविद्यालय के बाहर नागरिकता संशोधन कानून विरोधी मंच साझा किया। इन लोगों का कहना था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ छात्रों के आंदोलन को विश सही मानते हैं, इसलिए अपना समर्थन देने यहां आए हैं।

जामिया पहुंचे जगमोहन ने कहा कि वह छात्रों के साथ खड़े हैं, फिर चाहे वो छात्र हो जिसने जामिया कैम्पस में हुई हिंसा में अपनी एक आंख की रौशनी खो दी या फिर वो लड़की जो पुलिस के बर्बरता के खिलाफ सिर उठाकर खड़ी थी। उन्होंने कहा कि ये सरकार अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है, फिर चाहे वो मुस्लिम हों या सिख हों।

उन्होंने तमिल शरणार्थियों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि सीएए से उन्हें बाहर रख दिया गया है। उन्होंने कहा, "हम यहां इसिलिए आए हैं, क्योंकि भगत सिंह ने हमें सिखाया था कि जो पड़ोसी का हुआ, वो अपनी भी जान।"

उन्होंने जामिया की प्रशंसा करते हुए कहा कि जामिया 2024 का इंतजार नहीं करेगी, इसका साफ इशारा उसने दे दिया है। 2024 के चुनाव में अमित शाह-नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक ऐसा नेता चाहिए होगा जो शिक्षित और देश का शासन चलाने योग्य हो।

इस बीच पूर्व कैबिनेट मंत्री शकील अहमद ने भी जामिया पहुंचकर कहा कि छात्रों द्वारा किया जा रहा है विरोध प्रदर्शन बिल्कुल सही है। यहां स्थानीय लोगों व छात्रों से उन्होंने कहा कि जामिया देश की अखंडता की रक्षा का अपना मिशन पूरा कर रही है।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों को नागरिकता पहले भी दी जाती रही है, पिछले 5 साल में 560 पाकिस्तानियों को भारतीय नागरिकता दी गई है, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं। इसमें एक नाम प्रसिद्ध गायक अदनान सामी का भी है।

उन्होंने आगे कहा कि संत विवेकानंद ने शिकागो में कहा था कि भारत प्रत्येक प्रताड़ित को आश्रय देता है। एनआरसी केवल मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है, बल्कि ये गरीबों के खिलाफ भी है, जिसका नमूना असम में देखा गया।

सामाजिक कार्यकर्ता रोमा मलिक भी शुक्रवार को जेएनयू छात्रों के बीच रहीं। रोमा ने कहा, "मैंने जंगलों के बीच आदिवासियों के मध्य काम किया है, जो जनसंख्या में मुस्लिमों के ही बराबर हैं। वो भी आप सभी की तरह 'जल-जंगल-जमीन' की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे भी मुझसे पूछते हैं कि हम 70 साल पुराने कागजात कहां से लाएंगे?"

लेकिन उन आदिवासियों की इच्छाशक्ति देखिए कि उन्होंने कहा कि वो जेल नहीं जाएंगे, बल्कि अपने संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई लड़ेंगे।

रोमा ने महिला समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले को याद करते हुए कहा कि आज उनका जन्मदिवस है। एक ऐसे समय में पैदा हुई थी, जब महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था, ऐसे ब्राह्मणवादी समाज में एक आदिवासी महिला और एक मुस्लिम महिला फातिमा शेख ने अपनी आवाज महिलाओं के लिए बुलंद की, जिन्हें भारत की पहली महिला शिक्षाशास्त्री कहा गया।

रोमा ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, "वे प्र्दशनकारियों के विरुद्ध न्यायिक व्यवस्था का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन हम तब भी कागज नहीं दिखाएंगे।"


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