केरल की राजनीति में मूलभूत बदलाव के संकेत
रबर की कीमतों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को समर्थन पर कैथोलिक चर्च के दो प्रभावशाली बिशपों के बयानों ने राज्य के राजनीतिक दलों को हैरान कर दिया है

- पी. श्रीकुमारन
भाजपा को धर्माध्यक्षों की पेशकश के मद्देनजर धर्मनिरपेक्ष पार्टियां खुद को आत्मसंतोष से रहने की अनुमति नहीं दे सकती हैं। एलडीएफ सरकार को राज्य में ईसाई समुदायों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए कदम उठाने होंगे। इसी तरह, कांग्रेस को भी बिशप के कदम से सावधान रहना होगा क्योंकि इससे ईसाई समुदाय के बीच उसका पहले से ही कमजोर आधार खत्म हो सकता है।
रबर की कीमतों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को समर्थन पर कैथोलिक चर्च के दो प्रभावशाली बिशपों के बयानों ने राज्य के राजनीतिक दलों को हैरान कर दिया है। यदि प्रस्ताव विभिन्न ईसाई निकायों द्वारा समर्थित है, तो यह केरल की राजनीति में एक आदर्श बदलाव का संकेत दे सकता है।
पहला धमाका थालास्सेरी के आर्चबिशप जोसेफ पैम्प्लानी ने किया जिन्होंने कहा था कि अगर केंद्र सरकार रबर की कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ा देती है तो राज्य के किसान केरल से अपना पहला संसद सदस्य चुनने में भाजपा की मदद करेंगे! इस समय रबर में 130-150 रुपये के दायरे में कारोबार हो रहा है। अगले ही दिन, थमारास्सेरी बिशप रेमीगियोस इंचानानियिल ने प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि भाजपा केरल में पार्टी के आधार का विस्तार करने के प्रयास में राज्य में ईसाइयों के समर्थन प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। भाजपा की कोशिश अब तक कामयाब नहीं हुई है। इसलिए दो बिशपों के माध्यम से पार्टी द्वारा ईसाई समुदाय के साथ तालमेल बनाने का नवीनतम प्रयास किया जा रहा है। यह भी गौरतलब है कि ऐसी खबरें हैं कि भाजपा के कुछ नेताओं ने उनके बयान देने से कुछ दिन पहले पामप्लानी के साथ बैठक की थी। भाजपा इस प्रस्ताव को 21 लाख मजबूत सीरियाई ईसाई समुदाय और 11 लाख की संख्या वाले जैकोबाइट दोनों का समर्थन हासिल करने के अवसर के रूप में देखती है। भाजपा यह भी देखती है कि ये बयान ईसाई समुदाय के एक वर्ग के भीतर भगवा खेमे के साथ गठबंधन करने की एक इच्छा का प्रकटीकरण है।
हालांकि, ऐसे संकेत हैं कि भाजपा को राज्य में ईसाइयों का समर्थन हासिल करने में मुश्किल होगी। उदाहरण के लिए, केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) ने समुदाय को भाजपा के साथ जोड़ने के किसी भी कदम से इनकार किया है। केसीबीसी के एक प्रवक्ता ने कहा है कि पामप्लानी की पेशकश भाजपा को समर्थन देने के लिए नहीं थी। यह राज्य में किसानों की तत्काल चिंताओं को दूर करने के लिए वह राजनीतिक दलों का आह्वान मात्र था।
जैसे ही उनके बयान ने एक विवाद पैदा कर दिया है, पामप्लानी ने खुद यह समझाने की कोशिश की कि उनकी टिप्पणी चर्च का आधिकारिक रुख नहीं थी। उन्होंने कहा कि वह केवल यह कहने की कोशिश कर रहे थे कि किसान जो भी उनकी मदद करने की पेशकश करेगा उसका समर्थन करेंगे
उम्मीद के मुताबिक, सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने पामप्लानी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। माकपा के राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि ईसाई समुदाय के लिए खुद को सांप्रदायिक भाजपा के साथ जोड़ना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले महीने ही 79 संगठनों ने देश भर में आरएसएस और संघ परिवार के अन्य संगठनों द्वारा अल्पसंख्यकों पर किये जा रहे हमलों के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था।
उस विरोध प्रदर्शन में केरल सहित विभिन्न राज्यों के ईसाई पादरियों और ननों ने भाग लिया था। उन्होंने 598 जगहों पर हुए हमलों की ओर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक ज्ञापन भी सौंपा था। गोविंदन ने कहा कि अगर ईसाई समुदाय इस सबको नजरअंदाज करने का फैसला करता है और भाजपा के साथ गठबंधन करने की कोशिश करता है, तो यह केरल में प्रभावी नहीं होगा।
कांग्रेस ने यह भी कहा कि रबर किसानों की दुर्दशा को देखकर यह एक भावनात्मक प्रतिक्रिया थी। विपक्ष के नेता वीडी सतीश ने कहा कि इसे ज्यादा गहराई से समझने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में 500 से अधिक चर्चों पर हमले हुए हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि भाजपा अल्पसंख्यकों को लुभाने की कवायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आह्वान के बाद की गई है कि अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के प्रयास किये जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर यह कदम फलीभूत होता है तो भाजपा केरल में भी सरकार बनायेगी। हालांकि जमीनी हकीकत इससे इतर है। भगवा ताकतों के लिए अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतना एक अत्यंत कठिन कार्य होगा, क्योंकि भाजपा वर्षों से अल्पसंख्यकों को आततायी दिखाने के प्रयास कर रही है।
जो भी हो, सावधानी की बात यह है कि भाजपा को धर्माध्यक्षों की पेशकश के मद्देनजर धर्मनिरपेक्ष पार्टियां खुद को आत्मसंतोष से रहने की अनुमति नहीं दे सकती हैं। एलडीएफ सरकार को राज्य में ईसाई समुदायों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए कदम उठाने होंगे। इसी तरह, कांग्रेस को भी बिशप के कदम से सावधान रहना होगा क्योंकि इससे ईसाई समुदाय के बीच उसका पहले से ही कमजोर आधार खत्म हो सकता है। जैसा कि जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि केरल जैसे धर्मनिरपेक्ष लोकाचार में डूबे राज्य में सांप्रदायिक ताकतों को आगे बढ़ने को रोकने के लिए शाश्वत सतर्कता समय की जरूरत है।


