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अल्पसंख्यकों के खिलाफ गहरी साजिश के संकेत

गुजरात दंगों के बाद संघ परिवार को दो बातें समझ में आ गई थीं, पहला मुसलमानों को कमजोर करने के लिए उनके राजनैतिक और आर्थिक आधार पर हमला करना

अल्पसंख्यकों के खिलाफ गहरी साजिश के संकेत
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- भारत शर्मा

नई दिल्ली। गुजरात दंगों के बाद संघ परिवार को दो बातें समझ में आ गई थीं, पहला मुसलमानों को कमजोर करने के लिए उनके राजनैतिक और आर्थिक आधार पर हमला करना, दूसरा मुसलमानों की छवि समाज के बीच एक अपराधी के तौर पर पेश करना, जिससे उनके प्रति समाज में संवेदना खत्म हो जाए। इसके लिए प्रशासन का प्रयोग भी संघ परिवार को आ गया। गुजरात के बाद राजस्थान में यह आसानी से नजर आ जाता है।

असल में मेवात मुस्लिम बहुल इलाका है, यहां मुसलमान बाबर के आने से भी पहले थे। बताया जाता है, मेवात के मुसलमानों ने राणा सांगा के पक्ष में बाबर से युद्ध यह करते हुए कड़ा था, कि बाबर विदेशी है। यहां का अधिकांश मुसलमान इस वक्त गरीब है, उसके पास जमीन काफी कम है ऐसे में उसके गुजारे के लिए पशु मुख्य आधार है, जिसे वे पालते भी हैं और उनका व्यापार भी करते हैं। गाय उनका मुख्य आधार है।

मौलाना हनीफ बताते है, जितनी राशि में एक भैंस खरीदी जा सकती है, उतने में दो गाय आ जाती है, वह भी उतने ही दूध वाली। यह इत्तेफाक नहीं है, कि गाय के नाम पर सबसे अधिक हिंसा मेवात के इसी इलाके में है। असल में यह मेवात के मुसलमानों की आर्थिक रीढ़ तोड़ने और उन्हें गौ-तस्कर के रुप में पेश करने की साजिश है, अगर वाकई सरकार को चिंता गाय की होती, तो वह उन आवारा गायों के लिए भी कुछ करती जिनसे इस वक्त किसान परेशान है और वे भूखों मर रही हैं। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है, कि जब प्रतिनिधि मंडल घटमीका पहुंचा,तो पुलिस के अधिकारियों ने वहां के अपराधियों की एक सूची दी, उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की, कि इस गांव में काफी तस्कर रहते हैं। य़े अलग बात है, कि उमर का नाम उस सूची में नहीं था। उमर निहायत की गरीब घर का लड़का था, उसके अपने भी 8 बच्चे हैं, सबसे छोटा 3 माह का है।

पुलिस की भूमिका का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि उमर की लाश ही दो दिन बाद मिली, पहले अलवर में हुए पोस्टमार्टम में उसके शरीर में गोलियां नहीं मिलीं, बाद में जयपुर में फिर पोस्टमार्टम हुआ। पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी भी वहां के लोगों के धरने के बाद दर्ज की। पहलू खान का मामला और दिलचस्प है, उसने मरने के पहले इलबालिया बयान में जिन लोगों का नाम लिया, उन सभी का नाम जांच के बाद हटा दिया गया, 9 अन्य लोगों को अभियुक्त बनाया गया बाद में।

एसपी राहुल प्रकाश कहते हैं, कि पहलू किसी को जानता नहीं था, इसलिए उसने जो नाम लिए वे पहले से ही संदेह के घेरे में थे, दूसरा वे छह लोग घटना स्थल पर नहीं थे, यह बात उनके मोबाईल लोकेशन के आधार पर कही जा सकती है, दूसरा जो वीडियो सामने आया था, उसमें भी वे नहीं हैं। यह अलग बात है, कि वीडियो की सत्यता की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। स्थानीय वकील शब्बीर कहते हैं, कि पुलिस इस मामले में भी अपराधियों को बचा रही है, एक तरफ उसके पास कोई चश्मदीद गवाह नहीं है दूसरी तरफ इस मामले में 200 लोगों को गवाह बनाया गया है। इतने गवाह इसीलिए बनाए जाते हैं, जिससे बयानों में विरोधाभास हो और इसका लाभ अपराधियों को दियाला जा सके।


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