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बादामी सीट से सिद्धारमैया की जीत आसान नहीं

कभी चालुक्याें की राजधानी रहा कर्नाटक के बादामी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र में मुख्यमंत्री सिद्दारामैया की जीत का रास्ता मुश्किलों से भरा मालूम होता है। 

बादामी सीट से सिद्धारमैया की जीत आसान नहीं
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बादामी। कभी चालुक्याें की राजधानी रहा कर्नाटक के बादामी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र में मुख्यमंत्री सिद्दारामैया की जीत का रास्ता मुश्किलों से भरा मालूम होता है।

सिद्दारामैया बादामी काे अपनी सुरक्षित सीट मानकर अाखिरी समय में यहीं से किस्मत अाजमाने का निर्णय लिया, लेकिन इस बार उनकी राह अासान नहीं दिख रही। कभी उनके दाेस्त रहे जी टी देवगाैडा जनता दल (सेक्युलर) के परचम तले यहां श्री सिद्दारामैया के खिलाफ मुकाबले में हैं।

इस सीट पर एक अाैर बाहरी व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी बी. श्रीरामुलु हैं, जाे बेल्लारी से हैं अाैर सांसद भी हैं। वह चित्रदुर्ग जिले के माेलकलमुरु सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं। वह जेल की सजा काट रहे खान माफिया जी जनार्दन रेड्डी के भी करीबी हैं। उच्चतम न्यायालय ने उन्हें बेल्लारी में प्रचार करने से प्रतिबंधित कर रखा है। इस समय वह चित्रदुर्ग में हैं।

श्री देवगौड़ा और श्री श्रीरामुलु काे बाहरी प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है अाैर इस चुनाव क्षेत्र में घूमने से मतदाताओं के मूड को भी निश्चित तौर पर भांपा जा सकता है।

श्री सिद्दारामैया काे यहां से चुनावी जंग में उतारने की सबसे बडी वजह इस क्षेत्र में कुरुबा लाेगाें की आबादी मानी जा रही है। यहां कुरुबा की आबादी 41,000 से ज्यादा है। इसके विपरीत, श्रीरामुलु वाल्मीकि अादिवासी समुदाय पर निर्भर हैं जिनके करीब 20,000 मतदाता हैं, जाे यहां की चुनावी फिजा काे पलटने के लिए काफी है। यहां लिंगायत मतदाता सबसे ज्यादा यानी करीब 78,000 है जो पहले कांग्रेस के पक्ष में खड़े थे। लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि सिद्दारामैया सरकार द्वारा लिंगरयत को अलग धर्म घाेषित करने की सिफारिश के बाद इनका गणित क्या गुल खिलाता है।

जनता दल (से) के नेता हनुमन्थप्पा माविन्मराड लिंगायत समुदाय से हैं अाैर वे अपने सामने खडे धुरंधराें काे मजबूत टक्कर दे रहे हैं। वर्ष 2013 में पूर्व मंत्री अाैर पांच बार विधायक रह चुके बी. बी. चिमनकट्टी ने अपने निकटतम जद (से) प्रतिद्वंद्वी काे 15,000 मताें से हराया था अाैर यहां भाजपा तीसरे नंबर पर थी।

राजनीतिक विश्लेषकाें काे अनुमान है कि बडे सियासी खिलाडियाें की अाेर से पैदा किए गए तूफान काे झेलना श्री हनुमनथप्पा के लिए अासान नहीं हाेगा। वह एक लाेकप्रिय हस्ती हैं अाैर पिछले ढाई साल से वे अपने चुनाव क्षेत्र काे तराशने में जुटे रहे हैं। वे यहां के प्रत्येक गांव के दाैरा करके अपनी राजनीतिक जमीन काे अब पुख्ता कर चुके हैं।

हनुमनथप्पा की टीम लिंगायत जाति के 30,000 मतदाताअाें को अपने प्रत्याशी के पाले में करने पर जाेर दे रही है। हालांकि श्री सिद्दारामैया काे उम्मीद है कि अलग धार्मिक पहचान की उनकी पहल के कारण लिंगायत मतदाता उनकी अाेर अवश्य झुकेंगे। निर्वाचन क्षेत्र में करीब 2.16 लाख मतदाताअाें में 108,000 महिलाएं हैं। ये विकास संंबंधी कई समस्याअाें का सामना कर रही हैं। इसीलिए विकास की बयार यहां उस तरह नहीं पहुंच पायी है। क्षेत्र के कई वरिष्ठ नेता मानते हैं कि इस निर्वाचन क्षेत्र में धन अाैर जाति का असर ज्यादा दिखेगा, विशेष रूप से श्री जनार्दन रेड्डी की निकटता वाले श्री श्रीरामुलु में माैजूदगी के कारण।

* चिम्मान्कट्टी 1978 के विधानसभा चुनावाें से ही बादामी के चुनावी मैदान में हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-इंदिरा की अाेर से बादामी के विधायक रहे, उन्हाेंने 1983, 1994, 1999 अाैर 2013 में भी इसी क्षेत्र से विधायक रहे अाैर 1985, 2004 अाैर 2008 के चुनावाें में वे दूसरे नंबर पर रहे। श्री के. एम. पट्यानाशेट्टी ने वर्ष 1967 के चुनाव में यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप से चुनाव जीती। वह जनता दल के टिकट पर 1989 निर्वाचित हुए अाैर फिर 2004 तथा 2008 में भाजपा के टिकट पर विजयी पताका फहराया। श्री चिमनकट्टी काे तब बुरा लगा, जब उन्हें तब टिकट नहीं दिया गया और पार्टी ने डाॅ. देवराज पाटिल को अपना विजयी चेहरा मानकर टिकट दे दिया।

बहरहाल इन सब बातों के बावूजद कांग्रेस अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। पर अगले सप्ताह 12 मई को होने वाले चुनाव में श्री सिद्दारामैया के लिए जीत उतनी आसान भी नहीं होगी।


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