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क्या सत्ता में बैठे व्यक्ति को अहंकारी होना चाहिये?

संघ द्वारा भाजपा में कांग्रेस के दलबदलियों को भाजपा में शामिल करने की भी सख्त आलोचना की गई है

क्या सत्ता में बैठे व्यक्ति को अहंकारी होना चाहिये?
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- एल.एस. हरदेनिया

संघ द्वारा भाजपा में कांग्रेस के दलबदलियों को भाजपा में शामिल करने की भी सख्त आलोचना की गई है। जो लोग सतत संघ और भाजपा की आलोचना करते थे उन्हें भाजपा में शामिल करने से भारी नुकसान हुआ है। जोड़तोड़ की राजनीति संघ को नहीं आती है। कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करके भाजपा की छवि को खराब किया गया है, जिससे ऐसे लोग जो आरएसएस में नहीं हैं और उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं वे भी संघ से दूर हो गये हैं।

इस समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वारा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व पर जबरदस्त हमला हो रहा है। संघ का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व अत्यधिक आत्मविश्वासी और अहंकारी हो गया है। यह आरोप संघ के मुखपत्र आर्गनाइज़र में संघ के प्रमुख चिंतक रतन शारदा द्वारा लगाया गया है। उनका आरोप है कि यदि नेतृत्व अहंकारी नहीं होता और अति आत्मविश्वासी नहीं होता तो भाजपा की झोली में लोकसभा की 400 सीटें आ जातीं।

यद्यपि नाम नहीं लिया जा रहा है परंतु बहुत साफ है कि यह हमला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर है। इस बात पर कोई संदेह नहीं कि किसी व्यक्ति का पद जितना ऊंचा हो उतना ही उससे यह अपेक्षा होती है कि वह उतना विनम्र और सोम्य हो। भारतीय जनता पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे ही नेता थे। वे जब तक प्रधानमंत्री रहे, उन्होंने संघ से संपर्क बनाए रखा।

अब हम कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों की चर्चा करें तो प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी कहीं से अहंकारी नजऱ नहीं आते थे। बड़े नेताओं से लेकर आम जनता तक उनका सतर्क सम्पर्क रहता था। वे जब दिल्ली में रहते थे तो रोज़ कम से कम 500-600 लोगों से अपने निवास-तीन मूर्ति मार्ग पर मिलते थे। उनके उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री तो दिखने में कतई प्रधानमंत्री नहीं लगते थे। उनकी इमेज लगभग एक किसान नेता की थी। शास्त्री जी के बाद इन्दिरा जी प्रधानमंत्री बनीं। इन्दिरा जी का स्वभाव कुछ हद तक अहंकारी था परंतु राष्ट्र के हित में वे अपने अहंकार का चोला उतार फेंक देती थीं। इस संबंध में दो घटनाएं मुझे याद आ रही हैं-उत्तरप्रदेश में चुनाव होने वाले थे। उत्तरप्रदेश की राजनीति में हेमवती बहुगुणा का काफी महत्व था। चुनाव के पूर्व इन्दिरा जी और बहुगुणा में कुछ मतभेद थे। परंतु चुनाव की खातिर वे बहुगुणा से मिलने गईं और उस मुलाकात के बाद दोनों के मतभेद दूर हो गये।

जब बंगलादेश का युद्ध चल रहा था तो यह आवश्यक समझा गया कि देश में सांप्रदायिक सौहाद्र बना रहे। इस काम में वे जानती थीं कि राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख गोलवलकर की प्रमुख भूमिका हो सकती है। गोलवलकर से इन्दिरा जी के संबंध कभी मधुर नहीं थे। परंतु राष्ट्र के हितों को देखते हुए उन्होंने गुरू गोलवलकर से मधुर संबंध बनाना आवश्यक समझा। इसमें उन्होंने अटल बिहारी वायपेयी का उपयोग किया। उन्होंने वाजपेयी जी ने अनुरोध किया कि वे नागपुर जायें और गुरू जी को मेरा संदेश दें कि इस दरम्यान यदि देश में एक भी मुसलमान का एक बूंद भी खून बहा तो मेरी नाक कट जायेगी। यह काम गुरू जी ही सुनिश्चित कर सकते हैं। मैं चाहती हूं कि वे यह जिम्मेदारी पूरी संजीदगी से निभा सकते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी नागपुर गये और इन्दिरा का यह संदेश गुरू गोलवकर को दिया। गोलवलकर जी यह संदेश पढ़कर बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने इन्दिरा जी से फोन पर कहा कि वह इतना ऐतिहासिक काम कर रही हैं कि उसके लिए मेरे शरीर के खून का एक-एक कतरा हाजिर है। इन संदेशों के आदान-प्रदान से हिन्दुस्तान के एक-एक नागरिक ने इन्दिरा जी के प्रति अपनी वफादारी दिखाई और भारत में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने का ऐतिहासिक काम हासिल किया। और भी कई मौके हैं जब इन्दिरा जी ने अपने अहंकार को त्यागकर देश के हित में कई निर्णय लिये।

राजनीतिज्ञ का अंहकार उसका कैसा नुकसान करता है उसका एक उदाहरण मध्यप्रदेश का है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पंडित डी.पी. मिश्रा थे। स्वभाव से दृढ़निश्चयी। जो निर्णय ले लिया उस पर वे हर हालत में कायम रहते थे। उनके पद पर रहते हुए कांग्रेस के 36 विधायक पार्टी छोड़कर चले गये और वे गोविन्द नारायण सिंह और राजमाता के नेतृत्व में सरकार में शामिल हो गये। दल-बदल की खबरें आने लगीं। अनेक लोगों ने पंडित मिश्र से अनुरोध किया यदि वे इन लोगों से बात करके उनको मनाने की कोशिश करें तो सरकार बच जायेगी। मिश्र जी से यहां तक कहा गया कि यदि वह विधायक विश्राम गृह की गैलरी से पैदल निकल जायेंगे तो सारे विधायक उनसे मिलने के लिए आ जायेंगे और इतना करने से ही सरकार बच जायेगी। पंडित मिश्र ने कहा कि मैं कदापि इन भगोड़ो के सामने हाथ नहीं जोड़ूंगा। यदि मेरे कहने पर ये दलबदल नहीं करते हैं तो वे मुख्यमंत्री हो जायेंगे और मैं सड़क पर आ जाऊंगा। वे आखिर तक अपने निर्णय पर कायम रहे और विधानसभा में उनकी सरकार गिर गई।

इसी तरह का मोदी जी के स्वभाव में भी अहंकार है। आर्गनाइजऱ में लिखते हुए श्री शारदा लिखते हैं कि नरेन्द्र मोदी आभामंडल के आनंद में डूबे रह गये और आमजन की आवाज़ को अनदेखा कर दिया। तो इसी तरह के स्वभाव के नतीजे में भाजपा 400 सीटों की मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकी। यहां यह बताना आवश्यक है कि संघ का मुख्य उद्देश्य भारतवर्ष को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। 2024 के चुनाव में जो कुछ हुआ उससे यह संभावना फिलहाल पूरी तरह समाप्त हो गई है।

संघ द्वारा भाजपा में कांग्रेस के दलबदलियों को भाजपा में शामिल करने की भी सख्त आलोचना की गई है। जो लोग सतत संघ और भाजपा की आलोचना करते थे उन्हें भाजपा में शामिल करने से भारी नुकसान हुआ है। जोड़तोड़ की राजनीति संघ को नहीं आती है। कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करके भाजपा की छवि को खराब किया गया है, जिससे ऐसे लोग जो आरएसएस में नहीं हैं और उसके प्रति सहानुभूति रखते हैं वे भी संघ से दूर हो गये हैं। राजनीति में जो बड़े पदों पर हैं उन्हें अकबर और बीरबल के किस्सों से सबक लेना चाहिए। अकबर महान सम्राट थे परंतु वे बीरबल के समान अनेक लोगों की सलाहों को राज्यशासन के हित में मान लेते थे। इसी तरह भारतीय साहित्य की प्रमुख पुस्तक पंचतत्र में भी इस तरह के अनेक किस्से हैं-जब बड़े लोगों ने अपने अहम को त्यागा। नेताओं के साथ सरकारी अधिकारियों से भी यह अपेक्षा है कि वह अपने अहंकार को त्यागकर जनता से व्यवहार करें।

एक महान अधिकारी थे -एम.एन. बुच। वे हमें बताते थे कि जब उन्होंने आईएएस का पद संभाला तो उन्होंने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से सलाह मांगी कि मैं अपने स्वभाव में किस चीज़ को शामिल करूं। उन्होंने बुच साहब को सलाह दी कि तुम्हारे दफ्तर में तुमसे मिलने कोई भी आये वह बड़े से बड़ा अफसर हो, मंत्री हो या फटे कपड़े पहने हुए एक भिखारी हो तो उसे अपनी कुर्सी से उठकर उसका स्वागत करना। संभव हो तो उसे चाय पिलाओ और जब वह जाने लगे तब उसे अपने कार्यालय के दरवाजे तक छोड़कर आना। बस तुम्हें इतना ही करना सीखना है। तुम एक सफल अधिकारी हो जाओगे। यह बात हमने स्वयं देखी है कि बुच साहब जहां भी रहे हैं उनकी लोकप्रियता में हमेशा चार-चांद लगते थे। अंग्रेजी में एक कहावत है- जो यह जानता है कि वह कुछ नहीं जानता वह ही सर्वाधिक बुद्धिमान है।


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