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शिवराज लड़ेंगे चुनाव, लेकिन सीएम पद के लिए भाजपा के पास है कई विकल्प, पार्टी का स्पष्ट संदेश

मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा ने वैसे तो कई महीने पहले ही यह तय कर लिया था कि पार्टी राज्य में इस बार अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर नहीं बल्कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी

शिवराज लड़ेंगे चुनाव, लेकिन सीएम पद के लिए भाजपा के पास है कई विकल्प, पार्टी का स्पष्ट संदेश
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नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा ने वैसे तो कई महीने पहले ही यह तय कर लिया था कि पार्टी राज्य में इस बार अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर नहीं बल्कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश में अपनाई गई रणनीति को 2023 में मध्य प्रदेश में दोहराने का फैसला करते हुए यह तय किया कि पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में क्षेत्रीय क्षत्रपों को आगे करेगी।

इसी रणनीति के तहत पार्टी ने पहले धीरे-धीरे शिवराज सिंह चौहान को चुनावी अभियान के सेंटर पॉइंट से हटाकर अन्य नेताओं के समकक्ष खड़ा करने का प्रयास किया। फिर शिवराज को बड़ा झटका देते हुए यह तय किया कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद 2018 विधानसभा चुनाव की तरह 2023 में अपनी ही सरकार के लिए जनता का आशीर्वाद मांगने के लिए प्रदेश भर में निकाली जाने वाली जन आशीर्वाद यात्रा का इकलौता चेहरा सीएम चौहान नहीं होंगे।

चौहान के अलावा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय मंत्री एवं मध्य प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी इसमें बड़े चेहरे होंगे।

सोमवार को पार्टी ने अपने 39 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में 3 केंद्रीय मंत्रियों सहित 7 सांसदों और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तक को विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर अपने इरादे एक बार फिर साफ कर दिए हैं। भाजपा ने जिन केंद्रीय मंत्रियों- नरेंद्र सिंह तोमर,फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रल्हाद पटेल के अलावा पार्टी के जिन राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है, उनमें से तीन मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाते हैं।

इसके साथ ही पार्टी ने लोकसभा के जिन सांसदों - रीति पाठक, राकेश सिंह, गणेश सिंह और उदय प्रताप सिंह को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारा है, उनमें से एक भाजपा आलाकमान के काफी करीबी माने जाते हैं।

भाजपा के सूत्रों की माने तो, एक खास रणनीति के तहत राज्य में एंटी इनकंबेंसी के माहौल से पार पाने के लिए शिवराज सिंह चौहान को चुनाव प्रचार के सेंटर पॉइंट से थोड़ा अलग रखकर अन्य नेताओं को आगे किया जा रहा है और पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे चुनाव को अपनी लोकप्रियता के आधार पर पार्टी के पक्ष में बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।

हालांकि, चुनाव प्रचार अभियान में अभी भी शिवराज की एक भूमिका होने की बात करते हुए भाजपा सूत्र यह भी बता रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान राज्य के मुख्यमंत्री हैं, बड़े चेहरे हैं और वो निश्चित तौर पर चुनाव (विधानसभा चुनाव) लड़ेंगे। लेकिन, जब पार्टी किसी राज्य में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला करती है तो उसका मतलब स्पष्ट होता है कि उस राज्य में भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कई विकल्प हैं और चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला पार्टी का संसदीय बोर्ड विधायकों की राय के आधार पर करेगा।

दरअसल, शिवराज सिंह चौहान को लेकर भाजपा का इतना बड़ा फैसला करने का आधार 2018 का पिछला विधानसभा चुनाव का रिजल्ट रहा है। पार्टी 2018 की गलती को इस बार दोहराना नहीं चाहती है। मध्य प्रदेश में, 2003 से लगातार चुनाव जीत रही भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करारा झटका देते हुए सरकार से बाहर कर दिया था।

2018 के चुनाव में राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 114 पर जीत हासिल कर, कांग्रेस ने अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर भाजपा को राजनीतिक झटका दे दिया था। हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद भाजपा ने कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करते हुए मार्च 2020 में फिर से अपनी सरकार बना ली। लेकिन, भाजपा अब 2023 में 2018 की गलती कतई दोहराना नहीं चाहती है।


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