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असहयोग आंदोलन' के वक्त शिवपूजन सहाय ने त्याग दी थी सरकारी नौकरी

बिहार के भोजपुर जिले के छोटे से गांव उनवांस में 9 अगस्त 1893 में जन्मे शिवपूजन सहाय की शनिवार को पुण्यतिथि है

असहयोग आंदोलन के वक्त शिवपूजन सहाय ने त्याग दी थी सरकारी नौकरी
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नई दिल्ली। बिहार के भोजपुर जिले के छोटे से गांव उनवांस में 9 अगस्त 1893 में जन्मे शिवपूजन सहाय की शनिवार को पुण्यतिथि है। द्विवेदी युग के प्रमुख उपन्यासकार, कथाकार और संपादक की रचनाओं ने भारतीय साहित्य में इतनी अमिट छाप छोड़ी कि उन्हें इसके लिए 1960 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक पद्म भूषण से सम्मानित किया।

शिवपूजन सहाय बनारस की अदालत में बतौर प्रतिलिपिकार के रूप में काम करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में गए। इसके बाद साहित्यिक पत्रकारिता, प्रसिद्ध कवि प्रेमचंद के कार्य सहयोगी बनने और फिर स्वतंत्र पत्रकार के रूप में अपने कार्य को आगे बढ़ाया। बाद में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के निदेशक बने। इस दौरान उन्होंने सैकड़ों रचनाएं की, जो आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। 1963 उनके जीवन का आखिरी साल रहा।

सहाय के बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद कम उम्र में ही वह बनारस की अदालत में नकलनवीस (प्रतिलिपिकार) की नौकरी की, फिर अध्यापन के पेशे से जुड़े। देश में चल रहे असहोयग आंदोलन से प्रेरित होकर उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और इसके बाद उनका झुकाव साहित्यिक पत्रकारिता की तरफ हुआ।

सहाय इस क्रम में 1921 में कलकत्ता में पहले ‘मारवाड़ी सुधार’ के संपादन से जुड़े, फिर 1923 में ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन करने लगे। 1924 में प्रचलित पत्रिका माधुरी के संपादकीय विभाग से जुड़े। यहां पर वह प्रेमचंद के कार्य-सहयोगी बने और उनकी ‘रंगभूमि’ तथा कुछ अन्य कहानियों के संपादन में योगदान किया। 1925 में कलकत्ता लौटकर उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया, जिसमें ‘समन्वय’, ‘मौजी’, ‘गोलमाल’, ‘उपन्यास तरंग’ जैसी कुछ अल्पकालिक पत्रिकाएं शामिल हैं।

1926 में वह एक बार फिर काशी गए और इस बार उन्होंने स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम किया। जयशंकर प्रसाद द्वारा काशी से प्रकाशित ‘जागरण’ से जुड़कर सहाय ने एक बार फिर प्रेमचंद के कार्य-सहयोगी के रूप में काम किया। वाराणसी में वह नागरी प्रचारिणी सभा और ऐसे कई अन्य साहित्यिक मंडलों के सक्रिय सदस्य भी रहे।

1935 में सपरिवार लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर उन्होंने ‘बालक’ पत्रिका का संपादन किया। फिर 1939 में उन्हें राजेंद्र कॉलेज, छपरा में हिंदी के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। 1950 में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के सचिव पर नियुक्ति और बाद में परिषद के निदेशक बने। इस दौरान उन्होंने हिंदी संदर्भ ग्रंथों के 50 से अधिक संस्करणों का संपादन और प्रकाशन किया।

सहाय को साहित्यिक स्मारक संस्करणों के संपादन के लिए भी याद किया जाता है। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा उनकी रचनाएं शिवपूजन रचनावली (1956-59) को 4 खंडों में संकलित और प्रकाशित की गई। बाद में उनके संपूर्ण कार्य को उनके पुत्र मंगल मूर्ति द्वारा ‘शिवपूजन सहाय साहित्य समग्र’ (2011) के 10 खंडों में संपादित और प्रकाशित किया गया।

हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए 1960 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया, वहीं उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया गया।

अगर शिवपूजन सहाय की प्रमुख कृतियों की बात करें तो गद्य साहित्य में देहाती दुनिया, महिला-महत्व, विभूति, वे दिन वे लोग, बिंब-प्रतिबिंब, मेरा जीवन, स्मृतिशेष, हिंदी भाषा और साहित्य, ग्राम सुधार, माता का आंचल प्रमुख हैं।

वहीं अगर संपादन कार्य की बात करें तो द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ, जयंती स्मारक ग्रंथ, अनुग्रह अभिनंदन ग्रंथ, राजेंद्र अभिनंदन ग्रंथ, हिंदी साहित्य और बिहार, अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ, बिहार की महिलाएं, आत्मकथा (डॉ. राजेंद्र प्रसाद), रंगभूमि (प्रेमचंद) प्रमुख रहीं।

इसके अलावा मारवाड़ी सुधार, मतवाला, माधुरी, समन्वय, मौजी, गोलमाल, जागरण, बालक, हिमालय उनके द्वारा संपादित पत्र-पत्रिकाएं हैं।


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