विवादित अयोध्या जमीन पर शिया वक्फ बोर्ड ने जताया अपना हक
शिया वक्फ बोर्ड ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि बाबरी मस्जिद एक शिया वक्फ थी

नई दिल्ली। शिया वक्फ बोर्ड ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि बाबरी मस्जिद एक शिया वक्फ थी। बोर्ड ने कहा कि अदालत के आदेश में कहा गया है कि विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया जाना चाहिए, न कि सुन्नियों को। शिया वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता एम. सी. ढींगड़ा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ को बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के हिसाब से भूमि का एक तिहाई हिस्सा शियाओं को जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "और हम अपना हिस्सा हिंदुओं को देने के लिए तैयार हैं।"
उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि शिया वक्फ बोर्ड ने कभी किसी गलत कब्जे का दावा नहीं किया और वह हिंदुओं के दावों से भी कोई मुकाबला नहीं कर रहे है। ढींगड़ा ने कहा, "1944-45 के बीच सुन्नियों ने शिया वक्फ बोर्ड के मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया।"
इससे पहले हिंदू महासभा की ओर से पेश वकील हरी शंकर जैन ने अदालत से कहा कि मुगल शासक बाबर एक आक्रमणकारी था और एक आक्रमणकारी के अधिकारों को संस्थागत नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने कहा, "गुलामी के काले दिन खत्म हो गए हैं।"
जैन ने यह भी दावा किया कि 1528 और 1855 के बीच विवादित स्थल पर बने ढांचे को मस्जिद के तौर पर साबित करने के लिए कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत नहीं हैं।
उन्होंने संविधान पीठ को बताया, "ब्रिटिश काल के दौरान 1855-1945 के बीच उक्त ढांचे को समाज के दो वर्गो के बीच सांप्रदायिक रेखा खींचने के लिए एक मस्जिद के रूप में बताया गया था।"
इससे पहले वरिष्ठ वकील पी. एन. मिश्रा ने श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से पेश हुए शीर्ष अदालत को बताया कि बाबरी मस्जिद के परिसर में घंटियां थीं। इससे यह संकेत मिलता है कि यह मस्जिद नहीं हो सकती है, क्योंकि इस्लामी कानून के तहत मस्जिदों में घंटियां वर्जित हैं।
इस दौरान उन्होंने विवादित ढांचे में स्पष्ट कई विसंगतियों का हवाला दिया।
हिंदू पक्षकारों ने 16 दिनों के बाद अयोध्या विवाद में अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं।


