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भारत का कूटनीतिक सिरदर्द बन सकती हैं शेख हसीना

बांग्लादेश में छात्रों के आंदोलन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना देश छोड़े एक महीने से ज्यादा हो गया है. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने भारत में शरण ली थी. विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें शरण देना अब भारत के लिए कूटनीतिक सिरदर्द बनता जा रहा है

भारत का कूटनीतिक सिरदर्द बन सकती हैं शेख हसीना
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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण देना भारत के लिए एक कूटनीतिक संकट बन सकता है. बांग्लादेश के लोग हसीना की वापसी चाहते हैं, लेकिन भारत के लिए उन्हें भेजना आसान नहीं होगा.
बांग्लादेश में छात्रों के आंदोलन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना देश छोड़े एक महीने से ज्यादा हो गया है. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने भारत में शरण ली थी. विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें शरण देना अब भारत के लिए कूटनीतिक सिरदर्द बनता जा रहा है.

शेख हसीना का सख्त शासन पिछले महीने उस समय समाप्त हो गया जब प्रदर्शनकारियों ने ढाका में उनके महल की ओर मार्च किया. 15 साल के उनके शासनकाल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन और विपक्ष का दमन करने के कई आरोप लगे थे.

बांग्लादेश: छात्र बना रहे अपनी पार्टी बनाने की योजना

उनकी सरकार के खिलाफ आंदोलन करने वाले छात्र अब हसीना की वापसी की मांग कर रहे हैं, ताकि उन पर विद्रोह के दौरान प्रदर्शनकारियों की हत्या के लिए मुकदमा चलाया जा सके. भारत हसीना के शासनकाल के दौरान उनका सबसे बड़ा समर्थक था. अब उन्हें वापस भेजना भारत के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि इससे दक्षिण एशिया में उसके दूसरे पड़ोसियों के साथ संबंध खराब होने का जोखिम है, जहां चीन के साथ प्रभाव के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है.

मुश्किल है शेख हसीना की वापसी
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के थॉमस कीन का कहना है, "भारत स्पष्ट रूप से उन्हें बांग्लादेश वापस भेजना नहीं चाहेगा. जो अन्य नेता दिल्ली के करीबी हैं, उनके लिए यह संदेश बहुत सकारात्मक नहीं होगा कि आखिरकार, भारत आपकी रक्षा नहीं करेगा."

पिछले साल मालदीव में भारत के पसंदीदा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की हार से भारत को पहले ही एक बड़ा झटका लग चुका है. वहीं शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने से भारत का क्षेत्र में निकटतम सहयोगी भी छिन चुका है.

हसीना के शासन में पीड़ित लोगों में भारत के प्रति गुस्सा खुलेआम है. यह गुस्सा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार की नीतियों और बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के खिलाफ जोर-शोर से चलाए गए प्रचार के कारण और भी गहरा हो गया है.

मोदी ने 84 वर्षीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस द्वारा गठित नई सरकार को समर्थन देने का वादा किया है, जो हसीना के बाद सत्ता में आई है. साथ ही उन्होंने बांग्लादेश के हिंदू धार्मिक अल्पसंख्यक की सुरक्षा की भी जोरदार मांग की है.

हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले
बांग्लादेश के अंतरिम सरकार में गृह विभाग के सलाहकार जनरल एम शखावत हुसैन ने माना है कि अल्पसंख्यकों पर हमले हुए हैं और उनकी सुरक्षा में चूक हुई है. उन्होंने हिंदुओं से इसके लिए माफी भी मांगी. हिंदू परिवारों का कहना है कि इस हिंसा ने 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की ओर से किए गए अत्याचार के जख्मों को ताजा कर दिया है. कुछ इलाकों से हिंदुओं के मोहल्लों और मंदिरों की सुरक्षा में तैनात मुस्लिम युवकों की तस्वीरें और खबरें भी सामने आईं लेकिन इनके मुकाबले हमले की घटनाएं कहीं ज्यादा थीं. ऐसी खबरें हैं कि सांप्रदायिक तनाव और बढ़ सकता है.

हसीना की अवामी लीग को बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अधिक समर्थक माना जाता था, जबकि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में बांग्लादेशी हिंदुओं के खतरे में होने की बात कही और बाद में इस मुद्दे को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ भी उठाया.

बांग्लादेश के बदलते हालात में भारत के लिए क्या विकल्प हैं

हसीना के देश छोड़ने के बाद हुए हमलों में कुछ बांग्लादेशी हिंदुओं और मंदिरों को निशाना बनाया गया था, जिसकी निंदा छात्र नेताओं और अंतरिम सरकार ने की. लेकिन भारतीय समाचार चैनलों ने इस हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जिसके बाद मोदी की पार्टी से जुड़े हुए हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए.

भारत की कूटनीतिक उलझन
बीएनपी के एक शीर्ष नेता फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा, "भारत ने सभी अंडे एक ही टोकरी में रख दिए हैं" और अब वह अपनी नीति को बदलने का रास्ता नहीं खोज पा रहा है. उन्होंने एएफपी से कहा, "बांग्लादेश के लोग भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन अपने हितों की कीमत पर नहीं."

बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी दोनों देशों के बीच अविश्वास की भावना स्पष्ट है. अगस्त में बाढ़ के दौरान जब दोनों देशों में मौतें हुईं, तो कुछ बांग्लादेशियों ने इसके लिए भारत को दोषी ठहराया.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सार्वजनिक रूप से भारत में शरण लिए हसीना के मुद्दे को नहीं उठाया है, लेकिन ढाका ने उनका कूटनीतिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है, जिससे वह आगे यात्रा नहीं कर सकेंगी. दोनों देशों के बीच 2013 में हस्ताक्षरित एक प्रत्यर्पण संधि है जो हसीना को आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए वापस भेजने की अनुमति देती है. हालांकि, संधि में एक प्रावधान है जो कहता है कि यदि अपराध "राजनीतिक स्वभाव" का हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है.

भारत के पूर्व राजदूत पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने कहा कि द्विपक्षीय संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं और ढाका इसे बिगाड़ने के लिए हसीना के मुद्दे को तूल नहीं देगा. उन्होंने एएफपी से कहा, "कोई भी परिपक्व सरकार समझेगी कि हसीना के भारत में रहने को मुद्दा बनाना उन्हें कोई लाभ नहीं देगा."


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