शर्मिला के कांग्रेस प्रवेश के होंगे दूरगामी परिणाम
पहले कर्नाटक फिर तेलंगाना में चुनावी सफलताएं हासिल करने के बाद अब दक्षिण भारत के एक और महत्वपूर्ण राज्य आंध्रप्रदेश में कांग्रेस के हाथ बड़ी बाजी लगी है जब वहां वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की संस्थापक वाईएस शर्मिला ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया है

पहले कर्नाटक फिर तेलंगाना में चुनावी सफलताएं हासिल करने के बाद अब दक्षिण भारत के एक और महत्वपूर्ण राज्य आंध्रप्रदेश में कांग्रेस के हाथ बड़ी बाजी लगी है जब वहां वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की संस्थापक वाईएस शर्मिला ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया है। वे आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी और वहां के वर्तमान मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं। गुरुवार को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी आदि की उपस्थिति में कांग्रेस में प्रवेश करने वाली शर्मिला ने ही 2012 में जगन मोहन की अनुपस्थिति में अपनी मां के साथ अपनी पार्टी की कमान सम्हाली थ। बाद में भाई को प्रदेश की सत्ता में बैठाने की वे ही सूत्रधार थीं।
2019 के विधानसभा चुनाव में जगन मोहन की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को 175 सीटों वाली विधानसभा में 151 निर्वाचन क्षेत्रों में सफलता मिली थी। 2021 में शर्मिला ने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी बना ली थी। आंध्र प्रदेश के साथ अलग हुए तेलंगाना में भी उनकी पार्टी की उपस्थिति तो है परन्तु पिछले साल नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया था जिससे कांग्रेस की विजय आसान हो सकी।
शर्मिला का कांग्रेस में शामिल होना केवल इसलिये महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने भाई से अलग राह पकड़ी। उसकी महत्ता इस लिहाज़ से आंकी जानी चाहिये कि उन्होंने तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की तत्कालीन सरकार को भ्रष्ट बतलाया था। राव सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में कोसने के बाद यदि शर्मिला कांग्रेस में शामिल होती हैं तो वे कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से साफ छवि का बतला रही हैं। याद हो कि शर्मिला ने राव सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्यव्यापी प्रदर्शन किये थे। उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी।
माना जाता है कि उनके कार्यकर्ताओं ने पिछले तेलंगाना चुनावों में कांग्रेस को परोक्ष रूप से मदद भी की थी। इससे दोनों दलों के बीच नज़दीकियां बढ़ीं। कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री एवं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने भी शर्मिला की पार्टी के कांग्रेस में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस राज्य में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को टक्कर देने में तेलुगू देशम पार्टी एवं जन सेना को कामयाबी नहीं मिल पाई है। इस लिहाज से देखें तो शर्मिला का कांग्रेस में शामिल होना और उसे एक नेता और वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का पूरा का डर भी मुहैया करायेगा। इससे कांग्रेस के जनाधार में बड़ा विस्तार होगा जो इस वर्ष जून में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के पूरे परिदृश्य को बदलकर रख सकता है।
हालांकि यह कहना अभी थोड़ी जल्दबाजी होगी कि क्या इस चुनाव में भाई-बहन मुख्यमंत्री पद के परस्पर दावेदार होंगे। यह निर्भर करेगा कि कांग्रेस की ओर से उन्हें किस तरह की जिम्मेदारियां मिलती हैं और उन्हें पार्टी किस रूप में प्रोजेक्ट करती है। यह भी देखना होगा कि उसके पहले अप्रैल में होने जा रहे लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहता है। वहां लोकसभा की 25 सीटें हैं। इनमें से 22 वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पास और 3 पर टीडीपी का कब्जा है।
देखना होगा कि कांग्रेस को यहां कितनी सफलता मिलती है। फिर भी, इतना तो तय है कि शर्मिला न केवल आगामी दोनों ही चुनावों में बड़ी भूमिका निभायेंगी वरन वे ही कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बनकर उभरेंगी। अभी वैसे भी कांग्रेस के पास जगन मोहन से मुकाबले के लिये बड़ा चेहरा नहीं है क्योंकि वे देश के सर्वाधिक अमीर मुख्यमंत्रियों में से एक हैं जो चुनावों में पैसा पानी जैसा बहाने के लिये जाने जाते हैं। अगर उनके खिलाफ कांग्रेस को उन्हीं के घर से कोई प्रत्याशी मिलता है तो उसके लिये इससे बेहतर भला और क्या हो सकता है? इस दृष्टिकोण से भी अगर कांग्रेस पहले ही उन्हें सीएम का चेहरा बनाकर उतारे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के विलय का अर्थ है कांग्रेस की दक्षिण भारत में किलेबन्दी का और मजबूत होना। कांग्रेस के लिये इस बार के लोकसभा चुनाव में वैसे भी दक्षिण भारतीय राज्य बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। माना जाता है कि उत्तर भारत की बजाये 2024 में दिल्ली की सत्ता का रास्ता दक्षिण से होकर गुजरेगा। भारतीय जनता पार्टी के लिये वैसे भी आंध्रप्रदेश में खोने को कुछ भी नहीं है परन्तु इस समय कांग्रेस यहां क्या हासिल करती है, यह महत्वपूर्ण है। शर्मिला द्वारा अपनी पार्टी का केवल गठबन्धन न कर उसके विलय का निर्णय यह भी बतलाता है कि प्रादेशिक दलों के लिये अब भाजपा की बजाये कांग्रेस को अधिक भरोसेमंद माना जाने लगा है।जो छोटे दल भाजपा प्रणीत एनडीए में शामिल हुए, उनका क्या हश्र हुआ- यह सबके सामने है। चूंकि ऐसे दलों में, खासकर दक्षिणी राज्यों में, प्रांतीय अस्मिता एक अहम मुद्दा होता है जिसे भुलाकर किसी राष्ट्रीय पार्टी में स्वयं का विलय कर देना भारतीय राजनीति में लम्बे समय के बाद देखी गई प्रवृत्ति कही जा सकती है। कांग्रेस प्रणीत इंडिया गठबन्धन हो या एनडीए- कोई भी दल विलीन नहीं हुआ है। शर्मिला सभी के मुकाबले एक कदम आगे बढ़ी हैं। यह उन्हें विश्वसनीयता तो दिलाएगा ही, उनकी सीएम पद की दावेदारी को भी पुख्ता करेगा।
लोकसभा चुनाव के लिहाज से एक और कोण है जिस पर विचार करना होगा। वह यह कि तेलंगाना व कर्नाटक में पहले से कांग्रेस की सरकारें तो हैं ही, केरल में वामदल एवं तमिलनाडु में डीएमके के साथ वह लोकसभा चुनाव लड़ेगी। अब आंध्रप्रदेश में भी संगठन का बड़ा विस्तार सम्भावित है जिसका फायदा कांग्रेस को ज़रूर मिलेगा।


