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बिन मां की बच्ची पर हावी नहीं हुई विकलांगता हताश न हों, आत्मनिर्भर बनें

शाहगढ़ ! जनपद मुख्यालय की आदर्श अमरमऊ पंचायत के आदिवासी ग्वाल मोहल्ले में समुदाय के 200 से अधिक परिवार निवासरत है, जो मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं।

बिन मां की बच्ची पर हावी नहीं हुई विकलांगता हताश न हों, आत्मनिर्भर बनें
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शासन-प्रशासन की बेरूखी ने बढ़ाया छात्रा का हौसला

शाहगढ़ ! जनपद मुख्यालय की आदर्श अमरमऊ पंचायत के आदिवासी ग्वाल मोहल्ले में समुदाय के 200 से अधिक परिवार निवासरत है, जो मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं। यही पर रहने वाला गरीबी, तंगी से जूझ रहे तेजराम आदिवासी का परिवार रहता है, जो अपनी 11 वर्षीय बेटी की पढ़ाई के प्रति चिंतित है। मजदूरी में से समय निकाल तेजराम एक पैर से अपाहिज बेटी को साईकिल पर बैठाकर स्कूल लाता और लेकर आता है। कक्षा 6वीं में अध्ययनरत बेटी जब 3 वर्ष की थी एक सडक़ हादसे में उसने एक पैर खो दिया था। करीब 8 वर्ष पहले खदान के धंसने से बेटी के सिर से मां का साया उठ गया । बीमारी तथा आर्थिक तंगी के चलते दो वर्ष पहले बहन का भाई भी चल बसा।
पिता ने बताई आपबीती
तेजराम बताते हंै कि विद्यालय में पढऩे में होशियार बेटी के लिए दो वर्ष पहले बैशाखी या ट्राइसाईकिल या पेंशन दिलाने का प्रयास सिविल अथवा अन्त्योदय मेला में किया था लेकिन, उपकरण नहीं मिल सकें । पिता का बेटी को लेकर इधर, उधर भटकने से हताश बेटी रामदेवी ने एक दिन अपने पिता का हौंसला बढ़ाया ओर स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने का लगातार प्रयास किया। आज 11 वर्षीय बेटी रामदेवी अब एक पैर के सहारे गांव में दौड़ती रहती है। घर के कामों में भी अब पिता का हाथ बिना किसी सहारे के बंटाने लगी है। अब उसे अपने एक पैर न होने का एहसास नहीं होता।

किसी का दोष नहीं
स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही 11वर्षीय रामदेवी अमरमऊ के विद्यालय में कक्षा 6वीं की छात्रा है विद्यालय के शिक्षक बताते हैं कि पढ़ाई में होशियार रामदेवी के पिता प्रतिदिन उनको विद्यालय लेकर आते हंै विद्यालय के शिक्षक बताते हैं कि छात्रा के पिता की मजदूरी का समय विद्यालयीन समय में होने से कभी कभार रामदेवी स्वयं एक पैर से चलकर विद्यालय आ जाती है, पूछे जाने पर रामदेवी का जबाव रहता है कि भगवान या शासन प्रशासन को दोष देने की वजह स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना होगा। पढ़ाई के लिये मजदूरी भी करना पढ़ेगी तो करेंगे। लेकन पढ़ाई अवश्य करेंगे। यही हमारा विकलांग बच्चों के लिये संदेश है।


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