मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना को झटका
ताइवान की फॉक्सकॉन टेक्नॉलाजी ने भारत के वेदांता समूह के साथ गुजरात में सेमीकंडक्टर उत्पादन प्लांट लगाने का 19.5 अरब डॉलर का निवेश समझौता रद्द कर दिया है

ताइवान की फॉक्सकॉन टेक्नॉलाजी ने भारत के वेदांता समूह के साथ गुजरात में सेमीकंडक्टर उत्पादन प्लांट लगाने का 19.5 अरब डॉलर का निवेश समझौता रद्द कर दिया है। दोनों औद्योगिक समूहों के बीच पिछले साल ही गुजरात में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने का समझौता किया था। इसे सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए होने वाला दुनिया का सबसे बड़ा करार माना गया था। फॉक्सकॉन दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन कंपनियों में से एक है।
एपल का चर्चित आईफोन भी यह कंपनी बनाती है। पिछले कुछ सालों में फॉक्सकॉन ने सेमीकंडक्टर निर्माण में भी कदम बढ़ाए हैं। डिजिटल हो चुकी दुनिया में सेमीकंडक्टर के बिना किसी का काम नहीं चल सकता है। सेमीकंडक्टर आम तौर पर सिलिकॉन चिप होते हैं, जो कंप्यूटर, मोबाइल, माइक्रोवेव ओवन से लेकर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक सामानों और वाहनों में इस्तेमाल किए जाते हैं।
प्रकृति में कुछ पदार्थ विद्युत के सुचालक होते हैं और कुछ कुचालक। अर्थात कुछ पदार्थ विद्युत तरंगों को अपने भीतर से गुजरने देते हैं वो सुचालक होते हैं और कुछ इन तरंगों को रोक लेते हैं वो कुचालक होते हैं। इनके बीच होते हैं अर्द्धचालक यानी सेमीकंडक्टर, इन में विद्युत प्रतिरोधकता कुचालक पदार्थ से अधिक और सुचालक से कम होती है। सिलिकॉन, जर्मेनियम, आर्सेनाइड, गैलियम कुछ प्रमुख अर्द्धचालक हैं, इनमें से सिलिकॉन का इस्तेमाल सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है।
दुनिया में ताइवान, चीन और जापान जैसे चुनिंदा देशों में ही सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण होता है। पिछले साल जब भारत में इसके निर्माण को लेकर करार हुआ तो इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया गया था। लेकिन अब फॉक्सकॉन और वेदांता के बीच टूटे करार को मोदी सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
साढ़े 19 अरब डॉलर का यह समझौता क्यों टूटा, इसका कोई स्पष्ट कारण अभी सामने नहीं आया है। फॉक्सकॉन ने कहा कि उसने सेमीकंडक्टर के एक महान विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए वेदांता के साथ एक साल से अधिक समय तक काम किया था। लेकिन अब इस संयुक्त उपक्रम से बाहर निकलने का फैसला लिया गया है। कंपनी ने कहा कि यह दोनों पक्षों की आपसी सहमति से हुआ है। अब यह पूरी तरह से वेदांता के स्वामित्व वाली इकाई होगी। वेदांता समूह धातु से तेल तक का कारोबार करने के लिए जाना जाता है, लेकिन सेमीकंडक्टर बनाने का कोई अनुभव उसके पास नहीं है। ऐसे में यह देखना होगा कि अब गुजरात में शुरु हुई इस महत्वाकांक्षी परियोजना का क्या हश्र होगा। इस समझौते का रद्द होना भारत के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका है। क्योंकि अब चिप निर्माण के लिए विदेशी निवेशकों को लुभाने का एक सुनहरा मौका हाथ से निकल गया। इसके अलावा रोजगार के पक्ष पर भी भारत नुकसान में पड़ गया है।
पिछले साल गुजरात में विधानसभा चुनाव के ऐन पहले वेदांता लिमिटेड ने फॉक्सकॉन के साथ सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्र लगाने की घोषणा की थी। गांधीनगर में एक समारोह में रेल, संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव की मौजूदगी में एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संयंत्र के लिए गुजरात सरकार द्वारा पूंजी खर्च और सस्ती बिजली पर वित्तीय और गैर वित्तीय सब्सिडी देने की घोषणा भी हो गई थी। सरकार ने दावा किया कि इससे एक लाख के लगभग रोजगार पैदा होंगे। निश्चित ही इस समझौते का लाभ भाजपा को गुजरात चुनाव में हुआ। खास बात ये है कि ये संयंत्र पहले महाराष्ट्र में लगना तय हुआ था। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार ने इसकी सारी तैयारी कर ली थी और तालेगांव में संयंत्र स्थापना की संभावनाएं तलाशनी शुरु हो गई थीं। इस बीच महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हुआ।
उद्धव ठाकरे की जगह शिवसेना में बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। जुलाई 2022 में कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की, लेकिन अचानक से यह परियोजना गुजरात में लगाने का फैसला लिया गया। महाविकास अघाड़ी ने इस पर शिंदे सरकार पर सवाल उठाए कि महाराष्ट्र को मिलने वाला यह संयंत्र गुजरात कैसे चला गया। क्या उद्योगपतियों को महाराष्ट्र्र की नयी सरकार पर भरोसा नहीं रहा या फिर प्रधानमंत्री मोदी के दबाव में शिंदे सरकार ने अपना हक छोड़ दिया। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के सवालों का कोई जवाब शिंदे सरकार से नहीं मिला। परियोजना गुजरात चली गई और अब साल भर बाद गुजरात को भी खाली हाथ रह जाना पड़ा है।
फॉक्सकॉन-वेदांता के बीच समझौता रद्द होने पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि, वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में साल दर साल होते रहे ऐसे समझौतों का यही अंजाम होता है। इसी की नक़ल में यूपी में होने वाली ग्लोबल इंवेस्टर समिट का भी यही अंजाम होगा। चाहे गुजरात मॉडल की बात हो या न्यू इंडिया की, कभी भी प्रायोजित हेडलाइन पर विश्वास ना किया जाए।
कांग्रेस के इस वार पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखरन ने कहा कि कांग्रेस ने तीन दशकों तक भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकॉन के लिए कुछ नहीं किया। कांग्रेस के इस पर हाय तौबा मचाने से भारत की प्रगति धीमी नहीं होगी। उन्होंने ये भी कहा है कि ये सरकार का काम नहीं है कि वो देखे कि 'दो निजी कंपनियां कैसे और क्यों साथ आती हैं या अलग हो जाती हैं।' यह सही है कि दो निजी कंपनियों के बीच होने वाले व्यापारिक समझौतों में सरकार का कोई लेना-देना नहीं होता है, लेकिन क्या भारत में वाकई ऐसी स्थिति है। अगर ये केवल फॉक्सकॉन और वेदांता के बीच की बात थी, तो फिर उनके एमओयू हस्ताक्षर पर केन्द्रीय मंत्री क्यों मौजूद थे और क्यों चुनाव के पहले परियोजना एक राज्य से दूसरे राज्य चली गई।
जाहिर है, इस समझौते में कहीं न कहीं राजनैतिक खेल भी चल रहा था, शायद इसी का खामियाजा अब देखने मिला है। हालांकि वेदांता का दावा है कि वह भारत की पहली सेमीकंडक्टर उत्पादन ईकाई को स्थापित करने के लिए अन्य सहयोगियों के साथ वार्ता कर रही है। फिलहाल देखना होगा कि गुजरात में मिले इस झटके का राजनैतिक असर देश में किस तरह पड़ता है।


