पेपर लीक की अगली कड़ी
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए की स्थापना 2017 में की गई थी

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए की स्थापना 2017 में की गई थी, जिसके ऊपर उच्च शिक्षा और विभिन्न सरकारी संस्थानों में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षाओं को आयोजित कराने की महती जिम्मेदारी है। देश में जिस तरह एक के बाद एक परीक्षाओं में धांधली और पेपर लीक के अपराध हो रहे हैं, उसके बाद एनटीए को ही परीक्षा की कसौटी से गुजरने की जरूरत है कि आखिर इस एजेंसी की उपयोगिता है भी या नहीं। देश भर में अभी नीट परीक्षा में हुई गड़बड़ी का मामला सुलझा नहीं है कि अब यूजीसी नेट की परीक्षा भी रद्द कर दी गई है। क्योंकि इसमें भी धांधली की आशंकाएं हुई हैं।
गौरतलब है कि 18 जून मंगलवार को देश भर में दो शिफ्टों में यूजीसी-नेट जून 2024 की परीक्षा आयोजित की गई थी। लेकिन शिक्षा मंत्रालय ने अब इस परीक्षा को रद्द करने का फैसला लिया है। मंत्रालय के बयान के मुताबिक परीक्षा के अगले ही दिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को गृह मंत्रालय के इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर से परीक्षा के बारे में कुछ इनपुट मिले, जिनके विश्लेषण से प्रथम दृष्टया लगता है कि इसमें गड़बड़ी हुई है। मंत्रालय ने यह भी बताया है कि इस गड़बड़ी की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया है।
कितने खेद की बात है कि जिस भारत को विश्वगुरु बनाने के दावे सरकार करती रही, जहां ज्ञान की परंपरा की शेखी बघारने से सत्ताधीशों को फुर्सत नहीं मिलती। वहां अब स्थिति ऐसी हो गई है कि परीक्षा में धांधली की जांच सीबीआई को करनी पड़ रही है। केन्द्रीय जांच ब्यूरो के बारे में यही आम धारणा है कि अपराध गंभीर किस्म का हो, तब सीबीआई उसकी जांच करता है। यानी यूजीसी नेट की परीक्षा में अवश्य कोई इतना गंभीर खेल खेला गया होगा, या बड़े शक्तिशाली लोगों का इसमें हाथ रहा होगा, तभी इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई है।
देश भर के विश्वविद्यालयों में जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद के चयन के लिए यूजीसी नेट की परीक्षा करवाई जाती है। हर साल लाखों विद्यार्थी इसमें बैठते हैं। इस बार भी 9 लाख 8 हजार 580 विद्यार्थियों ने यह परीक्षा दी। लेकिन अब इन लाखों बच्चों के सामने फिर अगली बारी का इंतजार खड़ा कर दिया गया है। इनमें से न जाने कितने छात्र-छात्राएं कठिन हालात में उच्च शिक्षा हासिल करने आए होंगे, कितनों को जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा होने की जरूरत होगी, ताकि वे घर वालों के लिए बोझ न बनें। रद्द हुई परीक्षा दोबारा कब होगी, और इस बार जिन कारणों से परीक्षा को खारिज करवाया गया, क्या वे कारण अगली बार मौजूद नहीं रहेंगे, क्या जो गड़बड़ी अभी पकड़ ली गई, क्या अगली बार उसे दोहराया नहीं जाएगा या कोई और धांधली नहीं होगी, क्या ऐसी पुख्ता व्यवस्था सरकार कर पाएगी। इन सवालों के जवाब इन 9 लाख विद्यार्थियों को सरकार से मांगने चाहिए।
2018 से एनटीए इस परीक्षा को आयोजित कराती आई है और हमेशा कंप्यूटर से ही यह परीक्षा होती रही है, लेकिन इस साल एनटीए ने फैसला लिया कि छात्र अलग-अलग केंद्रों पर एक साथ पेन, पेपर की मदद से यह परीक्षा देंगे। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह फैसला परीक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने और छात्रों से मिली प्रतिक्रियाओं के आधार पर लिया गया। लेकिन सवाल किया जा सकता है कि परीक्षा को बेहतर बनाने के लिए कंप्यूटर छोड़कर पेन-पेपर के इस्तेमाल का विचार ही क्यों आया, क्या बेहतरी के लिए कोई और तरीका नहीं सूझा। सवाल यह भी है कि पेन-पेपर से ली गई परीक्षा में गड़बड़ी की भनक साइबर सेल को किस तरह से लगी और यह किस तरह की गड़बड़ थी। क्या यह पेपर लीक की श्रृंखला में ही एक और कड़ी का जुड़ना है। क्या एनटीए में अब ऐसे लोगों की पैठ हो गई है जो परीक्षा माफिया के इशारों पर काम कर रहे हैं।
ध्यान रहे कि नीट की परीक्षा भी एनटीए ने ही आयोजित कराई थी। जिसमें कमाल यह हुआ था कि 24 लाख अभ्यर्थियों में 67 छात्रों को 720 में से 720 अंक मिले थे, वहीं कुछ ऐसे भी छात्र थे जिन्हें 718 या 719 अंक हासिल हुए थे। इसी से गड़बड़ी की आशंका हुई और अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है। नीट पर सरकार ने पहले गड़बड़ी होने से साफ इंकार कर दिया था, लेकिन यूजीसी-नेट परीक्षा के मामले में सरकार ने क्लीन चिट देने की हड़बड़ी नहीं दिखाई और जांच शुरु करवा दी।
हालांकि दोनों ही परीक्षाओं में लाखों युवाओं के साथ क्रूर खेल करने वालों को क्या कड़ी सजा मिलेगी, या वे सस्ते में छूट जाएंगे, ये देखना होगा। विचारणीय बात यह भी है कि एनटीए और शिक्षा मंत्रालय में मंत्री महोदय से लेकर इन परीक्षाओं के संचालन की जिम्मेदारी उठा रहे लोगों ने अब तक कोई नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश क्यों नहीं की है। कांग्रेस ने पूछा है कि परीक्षा पर चर्चा करने वाले प्रधानमंत्री पेपर लीक पर चर्चा क्यों नहीं करते हैं। राहुल गांधी ने बड़ा तंज किया है कि यूक्रेन का युद्ध रुकवाने वाले पेपर लीक क्यों नहीं रुकवाते। कांग्रेस इस मुद्दे पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने जा रही है, साथ ही संसद सत्र में भी पेपर लीक का मुद्दा विपक्ष उठाएगा। बेहतर होगा प्रधानमंत्री इस बार जवाब देने के लिए पूरा गृहकार्य करके आएं और विपक्ष के साथ-साथ पूरे देश को संतुष्ट करने वाले जवाब दें। हर बार अतीत के गौरवगान से मामला नहीं संभलेगा।


