मजाक को समझने का मिजाज
हिंदुस्तान के महान कार्टूनिस्ट शंकर ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर कम से कम चार हजार कार्टून बनाए और बेदर्दी से उन पर तंज कसे

- सर्वमित्रा सुरजन
हिंदुस्तान के महान कार्टूनिस्ट शंकर ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर कम से कम चार हजार कार्टून बनाए और बेदर्दी से उन पर तंज कसे। नेहरूजी का इस बारे में एक वाक्यांश भी काफी चर्चित है कि शंकर मुझे मत बख्शना। दरअसल यह लोकतांत्रिक मिजाज है, जिसमें खुद पर बने कार्टून पर हंसने-मुस्कुराने का माद्दा पैदा होता है। लेकिन मौजूदा निजाम में यह सहनशीलता कहीं नजर नहीं आती।
सोमवार को स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री के साथ एक दुर्घटना हो गई। किसी तकनीकी व्यवधान के कारण उनका भाषण बीच में अटक गया। सोशल मीडिया पर यह बड़ा मु्द्दा बन गया। इससे संबंधित क्लिप वायरल हो गई और फिर ट्विटर पर टेलीप्रॉम्प्टरपीएम ट्रेंड होने लगा। कई विपक्षी नेताओं समेत तमाम सोशल मीडिया यूजर्स इस बात पर तंज कसने लगे कि बिना टेलीप्रॉम्पटर के मोदीजी दो वाक्य भी ठीक से नहीं बोल सकते। प्रधानमंत्री का मजाक उड़ता देख बहुत से भाजपा नेता और मोदी समर्थक उनके बचाव में आ गए कि यह सब टेलीप्रॉम्पटर की गड़बड़ी नहीं, बल्कि दूसरे तकनीकी कारणों की वजह से हुआ। अब वजह चाहे जो रही हो, लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री की खिंचाई करने का मौका लोगों ने नहीं छोड़ा। लोकतंत्र की यही खूबी है। यहां सार्वजनिक जीवन में बड़े से बड़ा पद पाने वाला व्यक्ति भी साधारण इंसान के निशाने पर आ सकता है। जिन्हें इस लोकतंत्र में आस्था है, यकीन है, वे ऐसी आलोचना या तंज को सहज भाव से ग्रहण करते हैं। बुरा मानकर शिकायत नहीं करते। हिंदुस्तान के महान कार्टूनिस्ट शंकर ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर कम से कम चार हजार कार्टून बनाए और बेदर्दी से उन पर तंज कसे। नेहरूजी का इस बारे में एक वाक्यांश भी काफी चर्चित है कि शंकर मुझे मत बख्शना। दरअसल यह लोकतांत्रिक मिजाज है, जिसमें खुद पर बने कार्टून पर हंसने-मुस्कुराने का माद्दा पैदा होता है। लेकिन मौजूदा निजाम में यह सहनशीलता कहीं नजर नहीं आती।
दावोस का हादसा तो तकनीकी था, जिस पर मोदीजी का बस नहीं था। वे टेलीप्रॉम्पटर देखे बिना पढ़ सकते हैं या नहीं, ये भी निजी काबिलियत की बात है, जिसमें आज नहीं तो कल सुधार हो सकता है। लेकिन जब उनके फैसलों, नीतियों या भाषणों पर आलोचनात्मक, व्यंग्यात्मक चर्चा हो, क्या तब भी उन्हें या उनके समर्थकों को मुंह फुलाना चाहिए कि कोई प्रधानमंत्री का मजाक नहीं उड़ा सकता। दरअसल भाजपा की तमिलनाडु इकाई ने जी एंटरटेनमेंट समूह के तमिल चैनल पर प्रसारित एक कार्यक्रम के लिए उससे माफी मांगने को कहा है। पार्टी के अनुसार, इस कार्यक्रम में जान-बूझकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थीं। जी एंटरटेनमेंट इंटरप्राइजेज को एक पत्र लिखकर भाजपा की प्रदेश इकाई के आईटी और सोशल मीडिया सेल के अध्यक्ष सीटीआर निर्मल कुमार ने कहा, '15 जनवरी को प्रसारित चैनल के कार्यक्रम 'जूनियर सुपर स्टार्स सीजन 4' के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के पहनावे, विभिन्न देशों की उनकी यात्राओं, विनिवेश और नोटबंदी को लेकर कई तरह की तल्ख टिप्पणियां की गई थीं।' इस कार्यक्रम का कुछ हिस्सा सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ है, जिसमें नजर आ रहा है कि शो में 14 साल से कम उम्र के दो प्रतिभागियों ने प्रधानमंत्री पर कथित व्यंग्य के लिए तमिल फिल्म 'इम्साई अरासन 23 एम पुलिकेसी' की थीम को अपनाया है। वीडियो में, बच्चे एक राजा की कहानी सुनाते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसने काले धन को खत्म करने के लिए नोटों को बंद करने की कोशिश की, लेकिन इस प्रक्रिया में असफल रहे। बच्चों को यह भी कहते हुए सुना जा रहा है कि 'राजा' काले धन को खत्म करने के बजाय सिर्फ अलग-अलग रंगों की जैकेट पहनकर घूमता है। बच्चे एक विनिवेश योजना और देश में राजा के शासन का मजाक भी उड़ाते नजर आ रहे हैं, और ये भी बता रहे हैं कि दक्षिण भारत में राजा को लोग पसंद नहीं कर रहे, क्योंकि यहां पढ़े-लिखे लोग हैं।
सोशल मीडिया पर किसी ने इस क्लिप के साथ हिंदी अनुवाद भी पेश किया है, जिससे गैर तमिलभाषी लोगों को भी यह हास्य-व्यंग्य समझ आ सके। लेकिन भाजपा प्रधानमंत्री पर किए इस तंज को स्वीकार नहीं कर पा रही है। वैसे शो में जिन फैसलों पर कटाक्ष किया गया, वे भाजपा के अध्यक्ष ने नहीं, भारत के प्रधानमंत्री ने लिए हैं, इसलिए उन पर किसी भी भारतीय को नाराज या खुश होने का अधिकार है। मगर भाजपा ने जिस तरह चैनल से माफी की मांग करने की जल्दबाजी दिखाई, उससे जाहिर होता है कि वह मोदीजी को भाजपा का प्रधानमंत्री ही मानती है। अपने पत्र में, निर्मल कुमार ने कहा कि 'लगभग 10 वर्ष की आयु के बच्चों को 'जानबूझकर' प्रधानमंत्री के खिलाफ ये बयान देने के लिए कहा गया था। दस साल से कम उम्र के बच्चे के लिए यह समझना मुश्किल होता कि ये वास्तव में क्या दर्शाते हैं। हालांकि, हास्य की आड़ में, इन विषयों को बच्चों पर थोपा गया।' उन्होंने चैनल पर प्रधानमंत्री के खिलाफ 'घोर दुष्प्रचार' के प्रसार को रोकने के लिए कुछ नहीं करने का भी आरोप लगाया। निर्मल कुमार ने कहा कि 'यह स्पष्ट है कि चैनल ने लापरवाही से फैले इस झूठ को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, खासकर छोटे बच्चों के माध्यम से। जो कुछ व्यक्त किया गया वह उनकी तर्कसंगत समझ से परे था, और इन बच्चों के अभिभावकों के साथ-साथ चैनल को भी इस अपराध के लिए कानूनी और नैतिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।'
यह सही है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को नोटबंदी या विनिवेश जैसे बड़े-बड़े फैसलों की जानकारी और समझ नहीं हो सकती। ठीक वैसे ही जैसे उन्हें ये समझ नहीं आ सकता कि लव जिहाद क्या होता है, या हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई किस तरह पैदा हुई है, या राष्ट्रवाद क्या होता है, या राम मंदिर बनाने के लिए बाबरी मस्जिद को तोड़ना क्यों जरूरी था। लेकिन संघ की शाखाओं में अबोध बालकों को गर्व से कहो हम हिंदू हैं का पाठ पढ़ाते हुए, यही सब सिखाया जाता है। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक और क्लिप वायरल हुई थी, जिसमें एक अबोध बच्ची धार्मिक नफरत से भरी कवितानुमा कुछ सुना रही है। बेशक बच्ची की आवाज, उच्चारण और सुर अच्छे हैं, लेकिन जो कुछ वह कह रही है, वह सब जहरबुझे शब्दों में कह रही है। उस बच्ची को भी धार्मिक कट्टरता सिखाई गई है, जबकि उस उम्र में उसे और बहुत सी अच्छी चीजें सिखाई जा सकती थीं। लेकिन भारत को विश्वगुरु का सपना दिखाने वाले लोग इसी तरह छोटे बच्चों को अपने जहरीले विचारों का शिकार बना रहे हैं। शिवाजी और राणा प्रताप जैसे वीरों की आड़ में अपने राजनैतिक, सांप्रदायिक एजेंडे साध रहे हैं।
बच्चों के मजाक करने पर भाजपा को तकलीफ हो रही है। लेकिन बच्चों को किस तरह धर्म के नाम पर बरगलाया जा रहा है, या दूसरे धर्म की महिलाओं का अपमान करने के लिए उकसाया जा रहा है, क्या इन बातों पर कभी तकलीफ होती है। कभी इन सब बातों को लेकर भाजपा जिम्मेदार लोगों को माफी मांगने क्यों नहीं कहती। रहा सवाल प्रधानमंत्री के फैसलों को लेकर कथित तौर पर उनका मजाक उड़ाने का, तो संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के तहत यह बिल्कुल जायज है कि किसी फैसले का समर्थन किया जाए या विरोध या जाए या मजाक उड़ाया जाए। भाजपा को इस अधिकार का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि देश में एक के बाद एक ऐसे कई प्रकरण हाल में आ गए हैं, जिसमें व्यंग्यकारों पर सरकार समर्थकों की नजरें टेढ़ी हुई हैं। सोशल मीडिया के जमाने में ऐसी हर बात दुनिया में वायरल हो रही है, देश में प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाने पर पाबंदी लग भी जाए तो दुनिया में कहां, किसका मुंह बंद करने भाजपा जाएगी, यह विचारणीय है।


