मौसमी बीमारियों का प्रकोप,अस्पतालों में मरीज बढ़े
मौसम में अचानक आए बदलाव का असर अब लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है

ड्ड मौसम का लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर
अंबिकापुर। मौसम में अचानक आए बदलाव का असर अब लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है। ठंड के बाद अचानक गर्मी से जिले में सर्दी, खासी व बुखार के मरीजों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई है। आलम यह है कि केवल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही हर रोज 900 मरीज उपचार कराने पहुंच रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पांच दिन के भीतर ही मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 4 हजार 574 मरीज अस्पताल पहुंचे जिसमें से 181 के गंभीर होने पर दाखिल किया गया है।
अचानक मरीजों की संख्या में इजाफा होने को लेकर चिकित्सक मौसम में हुए बदलाव को कारण बता रहे हैं। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जिले सहित दूर-दराज से हर तरह के मरीज उपचार कराने पहुंचते है। बीते एक माह पूर्व ही अस्पताल में अधिकांष रोड़ एक्सीडेंट से घायल हुए मरीज अस्पताल पहुंचते थे परंतु जनवरी माह खत्म होने के बाद मौसम में आए उतार-चढ़ाव से मरीजों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई। सर्द व गर्म मौसम में फरवरी के षुरूआत से अस्पताल में बड़ी संख्या में सर्दी, खासी व बुखार से पीड़ित मरीज पहुंचने लगे जिससे चिकित्सकों सहित कर्मचारियों की परेषानी काफी बढ़ गई है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में महज पांच दिन के भीतर 4 हजार 574 हर तरह के मरीज पहुंचे थे जबकि आज भी बड़ी संख्या में लोग उपचार कराने तथा पर्ची कटाने कतार में लगे हुए थे। चिकित्सकों ने बताया कि अस्पताल में सड़क दुर्घटना के अलावा सर्दी, खासी व बुखार से पीड़ित अधिक आ रहे है। अचानक अस्पताल में मरीजों की संख्या में बढोत्तरी होने से चिकित्सक, पर्ची काउंटर व दवा वितरण कक्ष के कर्मचारियों को खासी मषक्कत करनी पड़ रही है। जबकि भीड़ अधिक होने से कई मरीज चिकित्सकों के समय बैठने का समय खत्म होने पर दूसरे दिन जांच कराने को मजबूर है।
दवा कक्ष में लंबी कतार
अमूमन अन्य दिनों की अपेक्षा इन दिनों दवा वितरण कक्ष में दवा लेने वालो की संख्या अधिक है। अस्पताल में भर्ती मरीज के अलावा चिकित्सकों से जांच कराने वाले मरीज के अधिक आने की वजह से ऐसी स्थिति निर्मित हुई है। दवा वितरण कक्ष में केवल दो ही कर्मचारी होने से कक्ष में सामने दवा लेने वालो परिजन की हर रोज लंबी कतारे लग रही है।
हर रोज 100 एलटीटी
2 फरवरी से 7 फरवरी के बीच मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कुल 791 महिलाओं ने एलटीटी कराया है। इस लिहाज से देखा जाए तो हर रोज 100 से अधिक महिलाएं अस्पताल में एलटीटी कराने पहुंच रही है।
बढ़ रहे मरीज
मौसम में आई परिवर्तन की वजह से मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। नवम्बर, दिसम्बर व जनवरी हेल्दी सीजन माना जाता है इस कारण मरीज कम बीमार होते है। हेल्दी सीजन खत्म होने से अस्पताल में हर तरह के मरीज आ रहे है।
ब्लड बैंक में खून की कमी
मेडिकल कॉलेज अस्पताल का ब्लड बैंक खून की कमी से खुद परेषान है। यह बात थोड़ी अजीब जरूर लग रही है लेकिन हकीकत यही है। इसकी क्षमता सात सौ यूनिट की है। लेकिन वर्तमान में यहां 10 युनिट का भी स्टाक मेंटेन नहीं हो पा रहा है। इसके कारण अस्पताल सिकलसेल, थैलेसीमिया व बीमार कैदियों को भी यहां से निषुल्क ब्लड उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। ऐसे मरीजों को यहां से रोज निराष होकर वापस लौटना पड़ रहा है जबकि ऐसे मरीजों के आने पर ब्लड बैंक से निषुल्क में बिना एक्सचेंज के ही ब्लड देने का नियम है। इससे मरीजों को दिक्कत बढ़ गई है। समस्या के निदान के लिए ब्लड बैंक प्रबंधन द्वारा 16 संस्थाओं को पत्र लिखकर ब्लड डोनेट करने कहा गया लेकिन इनमें से सिर्फ एक संस्था ने ही एक महीने में ब्लड दिया। अब स्थिति यह बन गई है कि यदि किसी मरीज को ब्लड की जरूरत पड़ रही है तो उसे अपने ब्लड ग्रुप वाले रक्तदाता को खुद ब्लड बैंक लेकर जाना पड़ता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित बालक को नहीं मिल सका ब्लड
षहर से लगे ग्राम हर्राटिकरा केषवपुर निवासी हरदेव यादव के 5 वर्षीय पुत्र राजेष यादव को थैलेसीमिया की बीमारी है। इसमें षरीर में खून की कमी हो जाती है। मरीज को महीने में एक बार खून चढ़ाना ही पड़ता है। राजेष को लेकर उसके पिता मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ब्लड चढ़वाने के लिए पहुंचे थे लेकिन ब्लड बैंक से खून उपलब्ध नहीं हो पाया।
ब्लड बैंक में बी गु्रप का खून नहीं था। कई घंटे बैठने के बाद भी जब खून की व्यवस्था नहीं हो पाई तो निराष होकर राजेष को लेकर उसके पिता वापस घर लौट गए।
क्षमता के अनुरूप नहीं मिल पा रहा अस्पताल को ब्लड
सरकारी ब्लड बैंक होने से सिकलसेल, थैलेसीमिया के मरीज यहीं पर ही ब्लड लेने के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा बीमार कैदियों को भी यहीं से बिना एक्सचेंज के ही निषुल्क ब्लड देना होता है। इससे हर महीने बिना एक्सचेंज में ही निषुल्क कई यूनिट ब्लड लग जाता है और स्टाक मेंटेन नहीं हो पाता है। जनवरी में ही ऐसे मरीजों के लिए 22 यूनिट खून देना पड़ा। फरवरी में अभी तक की स्थिति में चार मरीजों को बना एक्सचेंज के ब्लड दिया जा चुका है।
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