संसद में भारत माता की तलाश
यह वाकई दुखद है कि आजादी के बहुप्रचारित अमृत काल को पार करने के बाद भी देश और नागरिकों की सर्वोच्च प्रतिनिधि कही जाने वाली संसद असली 'भारत माता' को नहीं जानती

यह वाकई दुखद है कि आजादी के बहुप्रचारित अमृत काल को पार करने के बाद भी देश और नागरिकों की सर्वोच्च प्रतिनिधि कही जाने वाली संसद असली 'भारत माता' को नहीं जानती। उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में हुई बहस से तो ऐसा ही महसूस होता है कि अब भी हमारे अधिकतर जन प्रतिनिधि इस बात से पूर्णत: अनभिज्ञ हैं कि आखिर भारत माता कौन है। यह सवाल तब उठा जिस समय कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा कि मणिपुर में 'भारत माता की हत्या हुई है।'
मोदी और उनके कारोबारी मित्र गौतम अदानी के रिश्तों को लेकर बेबाकी से प्रश्न उठाने वाले राहुल मोदी सरकार और पूरी भारतीय जनता पार्टी की स्वाभाविकत: आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। मोदी सरनेम पर कर्नाटक की एक चुनावी टिप्पणी को लेकर उन पर दर्ज मुकदमे पर सुनाई सजा के कारण मार्च में उनकी सांसदी निलम्बित हो गयी थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी सजा पर रोक लगा देने के बाद उनकी सदस्यता बहाल कर दी गयी थी। फलत: वे सोमवार से फिर लोकसभा में अपनी सीट पर नज़र आये। इस बीच कांग्रेस समेत विपक्षी गठबन्धन इंडिया ने मोदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है, जिस पर तीन दिवसीय बहस जारी है। अनुमानों के विपरीत राहुल ने प्रस्ताव पर पहले दिन यानी मंगलवार को न बोलकर अपना वक्तव्य बुधवार को दिया। अपेक्षा के मुताबिक उन्होंने वहीं से अपने भाषण की शुरुआत की जहां उन्होंने पिछली बार छोड़ा था; यानी गौतम अदानी को लेकर। उन्होंने उसमें मणिपुर को भी जोड़ा जो चर्चा का केन्द्रीय विषय है। साथ ही हरियाणा की हिंसा की बात भी छेड़ते हुए आरोप लगाया कि 'आप पूरे देश को जलाने में लगे हो।'
शीर्ष अदालत में जीत दर्ज कराने और खोया शासकीय आवास फिर से पा लेने का विजयी भाव तो उनकी मुद्रा और व्यवहार में नज़र नहीं आया परन्तु भाजपा की खीझ और अपराध भाव के दर्शन चर्चा के पहले दिन ही होने लग गये थे। बहस को असम के सांसद गौरव गोगोई की ओर से शानदार शुरुआत मिलने से और भी परेशान भाजपा की झुंझलाहट निशिकांत दुबे के बयान में देखने को मिली जब उन्होंने व्यक्तिगत छींटाकशी करते हुए कहा कि 'सोनिया गांधी यहां बेटे को सेट करने और दामाद को भेंट करने के लिये बैठी हैं।'
इस घटिया टिप्पणी को शालीनता से दरकिनार करने वाली राहुल की मां का उल्लेख बुधवार को फिर से हुआ जब राहुल ने मणिपुर की भयावह स्थिति का वर्णन करते हुए इस बात का जिक्र किया कि 'मोदी उस हिंसाग्रस्त राज्य में नहीं गये क्योंकि वे मणिपुर को भारत का हिस्सा ही नहीं मानते।' भाजपा सरकार द्वारा वहां अपनाई गयी विभाजनकारी नीति की कड़ी आलोचना करते हुए राहुल ने कहा कि 'एक मेरी मां यहां बैठी हैं और दूसरी मां मणिपुर है जिसकी आप ने हत्या की है।' उन्होंने अपने भाषण में रामायण का संदर्भ देते हुए यह भी जोड़ा कि 'जैसे रावण केवल कुम्भकर्ण और मेघनाद की ही बात मानता था, वैसे ही मोदी केवल अमित शाह (केन्द्रीय गृह मंत्री) और अदानी की बात मानते हैं।' राहुल ने मोदी पर भारत माता की हत्या का आरोप लगाया, जो सांकेतिक अर्थ में था।
अमेठी लोकसभा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में उनकी प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी ने मौके को लपकते हुए इसे अपने भाषण का मुद्दा बना दिया। उन्होंने कहा कि 'जब राहुल कह रहे थे कि भारत माता की हत्या की जा रही है तो कांग्रेसी तालियां पीट रहे थे।' सवाल यह है कि राहुल गांधी के लिये आखिर भारत माता कौन है और स्मृति ईरानी किसे भारत माता मानती हैं। राहुल के परनाना व देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अहमदनगर जेल में लिखी अपनी प्रसिद्ध किताब 'हिन्दुस्तान की कहानी' में बतलाया है कि 'कभी ऐसा भी होता है कि मैं किसी जलसे में पहुंचता हूं तो मेरा स्वागत 'भारत माता की जय!' के साथ होता है। मैं लोगों से अचानक पूछ बैठता हूं कि इस नारे का मतलब क्या है? यह भारत माता कौन है, जिसकी वे जय चाहते हैं?' आगे नेहरू लिखते हैं कि 'जब उन्हें जवाब नहीं सूझता तो मैं ही उन्हें बताता हूं कि हिन्दुस्तान की नदी, पहाड़, जंगल, खेत जो हमें अन्न देते हैं वे सारे हमें अज़ीज़ हैं लेकिन आखिरकार जिनकी गिनती है, वे हैं हिन्दुस्तान के लोग। उनके और मेरे जैसे लोग जो इस सारे देश में फैले हुए हैं। भारत माता दरअसल यही करोड़ों लोग हैं और 'भारत माता की जय!' से मतलब हुआ इन लोगों की जय। मैं उन लोगों से कहता हूं कि तुम इस भारत माता के अंश हो, एक तरह से तुम ही भारत माता हो।'
असली मतांतर यही है कि राहुल लोगों में ही भारत माता को देखते हैं जबकि स्मृति ईरानी जिस विचारधारा की नुमाइंदगी करती हैं वह भारत माता को एक दैवीय स्वरूप में परिकल्पित कर जनता के भौतिक दायित्वों से मुक्त हो जाती हैं। जनता जनार्दन में भारत माता को देखने का अर्थ है उसकी ज़रूरतों को समझते हुए उसकी तरक्की व खुशहाली के प्रति दायित्वबोध और उसके सुख-दुख में शामिल होना। भारत माता को ईश्वरीय रूप देने का उद्देश्य उसके नाम से लोगों का भावनात्मक दोहन कर उसका सियासी लाभ लेना है। भारत में जारी विचारधाराओं के बीच जारी मौजूदा संघर्ष का यह महीन पहलू है जिसे स्मृति ईरानी को नहीं जनता को समझना होगा।


