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वैज्ञानिकों ने तेज की एलियंस को खोजने की कोशिश

वैज्ञानिकों ने ऐसे परग्रही जीवों की खोज तेज कर दी है, जो तकनीकी रूप से इंसान से कहीं ज्यादा आगे हो सकते हैं. वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा के उस हिस्सों में खोज कर रहे हैं, जहां तारों का घनत्व बहुत ज्यादा है.

वैज्ञानिकों ने तेज की एलियंस को खोजने की कोशिश
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वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा के उस हिस्सों में खोज कर रहे हैं, जहां तारों का घनत्व बहुत ज्यादा है. वे ऐसे किसी सिग्नल की तलाश में हैं, जो किसी ऐसे ग्रह से आये, जहां एलियंस रहते हों.

अब तक एलियन तकनीक को पहचानने के लिए वैज्ञानिकों का ध्यान सीमित फ्रीक्वेंसी वाले रेडियो सिग्नलों पर केंद्रित रहा है. लेकिन नयी कोशिशों क तहत वैज्ञानिक अलग तरह के सिग्नल्स की ओर ध्यान दे रहे हैं जो आधुनिक सभ्यताओं द्वारा अंतरिक्ष के विभिन्न हिस्सों के साथ संवाद के लिए इस्तेमाल किये जाते हों.

बुधवार को वैज्ञानिकों ने बताया कि वे ऐसे सिग्नल खोज रहे हैं जो हर 11 से 100 सेकंड्स के बीच बार-बार आते हैं. यह लहरों का एक पूरा दौर होता है जो हर 11 से 100 सेकंड के बीच लौटता है और इसका पैटर्न रडार ट्रांसमिशन जैसा होता है. इनकी फ्रीक्वेंसी औसत एफएम रेडियो स्टेशन की तरंगों के दसवें हिस्से से कुछ कम होती है.

संभावनाएं बहुत हैं

भारतीय मूल के अक्षय सुरेश ने एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल नामक पत्रिका में एक शोध पत्र प्रकाशित किया है. कॉरनेल यूनिवर्सिटी में ग्रैजुएट छात्र सुरेश कहते हैं कि जिस कैटिगरी के सिग्नल वे खोज रहे हैं, वे अगर मिलते हैं तो उनका सीधा अर्थ होगा, ‘हम यहां हैं.'

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सुरेश ने बताया, "ऐसा संभव है कि परग्रही जीव पूरी आकाशगंगा में संदेश भेजने के लिए ऐसे सिग्नलों को इस्तेमाल करते हों. ऐसे सिग्नल खोजने के लिए मिल्की वे का केंद्र एक आदर्श जगह है. आप कल्पना कर सकते हैं कि कुछ बड़ी घटनाओं के बारे में सूचित करने के लिए एलियंस ऐसे संकेत भेजते होंगे जैसे कि किसी तारे के विस्फोटक अंत से पहले अंतरिक्ष में एक जगह से दूसरी जगह प्रस्थान.”

सुरेश जिन कोशिशों की बात कर रहे हैं, उन्हें ब्रेकथ्रू लिसन इन्वेस्टिगेशन फॉर पीरियड स्पेक्ट्रल सिग्नल्स (BLIPSS) नाम दिया गया है. यह कॉरनेल यूनिवर्सिटी, सेती इंस्टिट्यूट और एलियंस को खोजे के लिए शुरू किए गए 10 करोड़ डॉलर के प्रोजेक्ट ब्रेकथ्रू लिसन का साझा प्रयास है.

खतरे से सावधानी जरूरी

इस अध्ययन में सुरेश के साथी सेती इंस्टिट्यूट और बर्कली स्थित कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय के विशाल गज्जर हैं. वह कहते हैं, "सेती में हम तकनीकी रूप से आधुनिक परग्रही सभ्यताओं से आने वाले संकेतों की खोज कर रहे हैं. लेकिन इन संकेतों की प्रकृति अब भी एक रहस्य है.उनके गुणों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. इसलिए यह जरूरी हो गया है कि अलग-अलग तरह के सिग्नल खोजे जाएं, जो अंतरिक्ष में कहीं ना कहीं मौजूद हो सकते हैं. ”

इस प्रोजेक्ट के तहत वेस्ट वर्जीनिया स्थित एक दूरबीन की मदद से मिल्कीवे के केंद्र में 27 हजार प्रकाश वर्ष दूर एक जगह पर केंद्रित खोज की जा रही है. यह इलाका चंद्रमा के 200वें हिस्से से भी छोटा है. इस इलाके में 80 लाख सितारे हैं. सुरेश बताते हैं कि अगर अंतरिक्ष में कहीं और जीवन है तो संभवतया वे ऐसे ग्रहों पर रहेंगे जहां चट्टानें होंगी और जो किसी ऐसे सितारे का चक्कर लगा रहे होंगे जो ना तो ज्यादा गर्म है और ना ज्यादा ठंडा.

एक रणनीति के तहत ये वैज्ञानिक बाहर से आने वाले संकेतों की खोज में तो लगे रहते हैं लेकिन पृथ्वी से ऐसा कोई सिग्नल नहीं भेजते जिनसे पता चले कि पृथ्वी पर जीवन है. सुरेश बताते हैं, "मेरी राय है कि हम यहां हैं, जैसा संकेत भेजने का यह खतरा हो सकता है कि हम एलियंस को न्यौता भेज देंगे जबकि हमें उनकी मंशाओं की कोई जानकारी नहीं होगी.”

गज्जर कहते हैं कि संभावित परग्रही जीवों को संदेश भेजने का फैसला पूरी दुनिया में सहमति के बाद ही लिया जाना चाहिए कि ऐसा करना सुरक्षित होगा.


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