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वैज्ञानिकों ने विकसित की नई कॉन्टैक्ट लेंस, जिससे अब इंसान देख सकेंगे इंफ्रारेड रोशनी

चीन के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने कॉन्टैक्ट लेंस विकसित की है, जो इंसानों को निकट-अवरक्त रोशनी (इंफ्रारेड रोशनी) देखने में सक्षम बनाती है

वैज्ञानिकों ने विकसित की नई कॉन्टैक्ट लेंस, जिससे अब इंसान देख सकेंगे इंफ्रारेड रोशनी
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नई दिल्ली। चीन के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने कॉन्टैक्ट लेंस विकसित की है, जो इंसानों को निकट-अवरक्त रोशनी (इंफ्रारेड रोशनी) देखने में सक्षम बनाती है। यह तकनीक चिकित्सा इमेजिंग और दृष्टि सहायता तकनीकों में क्रांति ला सकती है।

यह शोध गुरुवार को सेल जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसे चीन की यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, फुडान यूनिवर्सिटी और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने मिलकर अंजाम दिया।

मनुष्य की आंखें केवल 400 से 700 नैनोमीटर की तरंगदैर्ध्य वाली रोशनी को देख सकती हैं, जिससे वह प्रकृति की कई जानकारियों को नहीं देख पाती, लेकिन निकट-अवरक्त रोशनी, जिसकी तरंगदैर्ध्य 700 से 2,500 नैनोमीटर के बीच होती है, ऊतक में गहराई तक प्रवेश कर सकती है और बहुत कम विकिरण नुकसान पहुंचाती है।

वैज्ञानिकों ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की मदद से ऐसी तकनीक विकसित की है, जो तीन अलग-अलग अवरक्त तरंगदैर्ध्यों को दृश्यमान लाल, हरे और नीले रंग में बदल देती है।

इससे पहले, इन्हीं वैज्ञानिकों ने एक नैनोमटेरियल तैयार किया था, जिसे जानवरों की आंखों में इंजेक्ट कर उन्हें इंफ्रारेड रोशनी देखने में सक्षम बनाया गया था, लेकिन मानव उपयोग के लिए यह व्यावहारिक नहीं था, इसलिए उन्होंने एक पहनने योग्य विकल्प 'सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस' डिजाइन करना शुरू किया।

शोध के अनुसार, टीम ने दुर्लभ पृथ्वी नैनोकणों की सतह को इस तरह संशोधित किया कि वे पारदर्शी पॉलिमर लेंस में घुलकर प्रयोग में लाए जा सकें।

जिन मानव स्वयंसेवकों ने यह लेंस पहने, वे इंफ्रारेड पैटर्न, टाइम कोड्स और यहां तक कि तीन अलग-अलग 'रंगों' में इंफ्रारेड रोशनी को पहचानने में सक्षम रहे। इससे इंसानी दृष्टि की सीमा प्राकृतिक दायरे से बाहर तक बढ़ गई।

यह तकनीक न केवल मेडिकल इमेजिंग, सूचना सुरक्षा, बचाव अभियानों और रंग अंधता के इलाज में सहायक हो सकती है, बल्कि यह बिना किसी पावर स्रोत के काम करती है और कम रोशनी, धुंध या धूल में भी देखने की क्षमता बढ़ा सकती है।

हालांकि, यह तकनीक अभी शुरुआती चरण में है, वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में यह दृष्टिबाधित लोगों की मदद कर सकती है और इंसान को अदृश्य रोशनी की दुनिया से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकती है।


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