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पुराने कुओं का पानी क्यों होता था मीठा? जानिए इसके पीछे छिपा देसी विज्ञान

क्या कभी आपने सोचा है कि पुराने जमाने में गांवों के कुओं का पानी सालों तक इतना मीठा, ठंडा और शुद्ध कैसे रहता था? आज हम आरओ, यूवी, फिल्टर और ना जाने कितनी मशीनों पर निर्भर हैं

पुराने कुओं का पानी क्यों होता था मीठा? जानिए इसके पीछे छिपा देसी विज्ञान
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नई दिल्ली। क्या कभी आपने सोचा है कि पुराने जमाने में गांवों के कुओं का पानी सालों तक इतना मीठा, ठंडा और शुद्ध कैसे रहता था? आज हम आरओ, यूवी, फिल्टर और ना जाने कितनी मशीनों पर निर्भर हैं, लेकिन हमारे दादा-परदादा बिना किसी मशीन के ऐसा पानी पीते थे, जो न तो खराब होता था और न ही उससे बीमारियां फैलती थीं।

इसका राज किसी जादू में नहीं, बल्कि उनके प्राकृतिक और वैज्ञानिक सोच वाले तरीके में था। उन दिनों कुएं की तलहटी में तांबा और चूना पत्थर डाला जाता था, जो पानी को साफ और सेहतमंद बनाने में बड़ी भूमिका निभाते थे।

पुराने समय में तांबे का बर्तन हर घर में होता था और कुओं में भी तांबे की चीजें उपयोग की जाती थीं। इसकी वजह थी तांबे की प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल क्षमता। जैसे ही तांबा पानी के संपर्क में आता है, उसके आयन धीरे-धीरे पानी में घुलते हैं और बैक्टीरिया, वायरस और कई तरह के हानिकारक कीटाणुओं को खत्म कर देते हैं।

आज की मॉडर्न साइंस भी मानती है कि कॉपर प्यूरीफिकेशन एक बेहतरीन प्राकृतिक तरीका है। यही वजह है कि पहले का पानी खराब नहीं होता था और लोग पेट से जुड़ी बीमारियों से भी काफी हद तक सुरक्षित रहते थे।

अब बात करते हैं चूना पत्थर की। कुओं में इसका बड़ा उपयोग होता था क्योंकि यह पानी के पीएच को बैलेंस करता था। अगर पानी ज्यादा अम्लीय हो, तो उसे सामान्य बनाता था। अगर ज्यादा क्षारीय हो, तो उसे संतुलित करता था। इसके अलावा, चूना पत्थर पानी में मौजूद मिट्टी और दूसरे कणों को सोखकर नीचे बैठा देता था, जिससे ऊपर का पानी साफ और बिल्कुल पारदर्शी हो जाता था।

इतना ही नहीं, इसमें प्राकृतिक रूप से कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे मिनरल भी होते हैं, जो धीरे-धीरे पानी में मिलकर उसे और पौष्टिक बनाते थे। यही कारण है कि लोग उस पानी को मिनरल वाटर कहे बिना भी रोज पीते थे और उनकी हड्डियां मजबूत बनी रहती थीं।

आज भले तकनीक बहुत आगे बढ़ गई है और मशीनों ने हमारा काम आसान कर दिया है, लेकिन सच्चाई ये है कि हमारी पुरानी परंपराओं और देसी तकनीकों में भी गहरा विज्ञान छिपा हुआ था। फर्क सिर्फ इतना था कि पहले उसे कोई बड़ा नाम नहीं दिया जाता था, बस काम चुपचाप अपनी जगह करता रहता था।


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