ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को पांच साल पहले पकड़ने वाला नया एआई मॉडल
एक नए एआई मॉडल की मदद से अब मैमोग्राम की तस्वीरें देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति में आने वाले पांच साल में स्तन कैंसर विकसित होने का कितना जोखिम है

एक नए एआई मॉडल की मदद से अब मैमोग्राम की तस्वीरें देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति में आने वाले पांच साल में स्तन कैंसर विकसित होने का कितना जोखिम है.
हर साल दुनिया भर में लगभग 23 लाख नए स्तन कैंसर के मामले दर्ज किए जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, केवल 2022 में इस बीमारी से लगभग 6.7 लाख लोगों की मौत हुई थी. आरडब्लूटीएच आखन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डायग्नोस्टिक और इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग की निदेशक क्रिस्टियान कूल कहती हैं, "मैमोग्राफी स्क्रीनिंग के बावजूद स्तन कैंसर, महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है.”
उन्होंने बताया, "मैमोग्राफी कई मामलों में स्तन कैंसर को पकड़ ही नहीं पाती, या फिर बहुत देर से पकड़ती है.” खासकर तेजी से बढ़ने वाले और आक्रामक ट्यूमर अक्सर मैमोग्राफी में नजर नहीं आते और यही वह ट्यूमर हैं, जो सबसे अधिक महिलाओं की जान लेते हैं.
लेकिन अब एक नई तकनीक आई है, जो स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग में एक बड़ा बदलाव ला सकता है. यह एआई मॉडल केवल मैमोग्राम की तस्वीरों को देखकर ही सटीक तरीके से यह अंदाजा लगा सकता है कि किसी व्यक्ति में अगले पांच साल में स्तन कैंसर होने का कितना जोखिम है.
एक अध्ययन में देखा गया कि जिन महिलाओं को एल्गोरिदम ने "उच्च जोखिम” वाला बताया था, उनमें वास्तव में स्तन कैंसर होने की संभावना उन महिलाओं से कहीं अधिक थी, जिन्हें "सामान्य जोखिम” की श्रेणी में रखा गया था. कूल ने कहा, "इसका सीधा मतलब यह है कि हाई-रिस्क वाली महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावना, लो-रिस्क वाली महिलाओं की तुलना में चार गुना ज्यादा थी.” उन्होंने कहा, "इस नए एआई मॉडल की मदद से हम सामान्य मैमोग्राम के आधार पर ही बहुत सटीकता से अनुमान लगा सकते हैं कि किसी महिला में अगले पांच साल में स्तन कैंसर होने की कितनी संभावना है.”
50 साल के बाद हर दो साल में मैमोग्राम
जर्मनी में 50 से 75 साल की सभी महिलाओं को हर दो साल में स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग (मैमोग्राम) करवाई जाती है. लेकिन स्तन कैंसर का जोखिम हर महिला में अलग होता है इसलिए सभी के लिए एक जैसी जांच पर्याप्त नहीं होती. कूल का मानना है कि "एक जांच सबके लिए” वाला तरीका अब पुराना हो चुका है. वह कहती हैं कि स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग हर महिला की जरूरत और जोखिम के हिसाब से होनी चाहिए. मैमोग्राफी की सटीकता भी हर महिला के लिए अलग होती है. स्तन ऊतक जितना घना होता है, स्तन कैंसर का जोखिम भी उतना ही ज्यादा होता है. ,साथ ही, मैमोग्राफी की जांच उतनी ही कम सटीक हो जाती है. कूल ने बताया कि कई महिलाओं को इस बात की जानकारी ही नहीं होती है.
अमेरिका में यह नियम है कि महिलाओं को उनके ब्रेस्ट टिशू के घनत्व (डेंसिटी) के बारे में बताया जाए और यह भी समझाया जाए कि घने ऊतक (डेंस टिशू) में कैंसर छिप सकता है यानी मैमोग्राफी उसे पहचानने में विफल हो सकती है.
मैमोग्राफी से ज्यादा बेहतर है एमआरआई स्कैन
कई सालों से यह सलाह दी जा रही है कि जिन महिलाओं के स्तन ऊतक घने होते हैं, उन्हें मैमोग्राफी की बजाय एमआरआई करवाना चाहिए, क्योंकि शुरुआती चरण में यह स्कैन स्तन कैंसर को बेहतर तरीके से पहचान सकता है. एमआरआई तकनीक शरीर की बेहद साफ और विस्तृत तस्वीर बनाता है. यह तकनीक एक्स-रे का नहीं, बल्कि मजबूत चुंबकीय किरणों और रेडियो वेव्स का उपयोग करती है. जिस कारण यह तकनीक काफी भरोसेमंद बन जाती है. हालांकि, मैमोग्राफी या अल्ट्रासाउंड की तुलना में यह काफी महंगा होता है. शुरुआती जांच के लिए किन महिलाओं को एमआरआई की जरूरत है, इसकी पहचान करने के लिए क्लेरिटी कंसॉर्शम यानी उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका तथा जर्मनी की 46 शोध संस्थाओं ने "क्लेरिटी ब्रेस्ट” नाम के एक एआई मॉडल को तैयार किया है.
इस एआई के एल्गोरिथ्म को यूरोप, दक्षिण अमेरिका और उत्तरी अमेरिका के चार लाख से भी अधिक मैमोग्राम पर प्रशिक्षित किया गया है. स्तन कैंसर के पारंपरिक जोखिम मॉडलों के उलट, इस एआई मॉडल को पारिवारिक इतिहास, जीन संबंधी जानकारी और जीवनशैली के डेटा की आवश्यकता नहीं होती. यह सिर्फ मैमोग्राम के आधार पर स्तन कैंसर होने की संभावना का अनुमान लगाता है और तय मानकों के अनुसार महिलाओं को अलग-अलग जोखिम श्रेणियों में बांटता है.
यह एआई मॉडल न सिर्फ यह पहचान सकता है कि घने ग्लैंडुलर टिशू कितने हैं, बल्कि उनकी बनावट और व्यवस्था को भी समझ सकता है, जो स्तन कैंसर का एक अहम रिस्क फैक्टर है. कूल ने कहा, "लगभग केवल 10 फीसदी महिलाओं में ही इतने ज्यादा घने ग्लैंडुलर टिशू होते है.” उन्होंने आगे कहा, "ज्यादातर महिलाएं, जिन्हें स्तन कैंसर होता है और देर से पता चलता है, उनके ऊतक इतने घने नहीं होते.” उनके अनुसार इस नई तकनीक की सबसे खास बात यह है कि एआई मॉडल कुछ ही सेकंड में यह तय कर सकता है कि किसी महिला को शुरुआती जांच के लिए एमआरआई की जरूरत है या नहीं.
क्या स्तन कैंसर जांच पहले ही शुरू होनी चाहिए?
अधिकतर देशों में व्यापक स्तन कैंसर जांच 50 साल की उम्र से ही शुरू हो जाती है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ इस बीमारी का खतरा भी काफी बढ़ जाता है. साथ ही, इस उम्र में नियमित जांच के फायदे भी साबित हो चुके हैं. लेकिन कूल का कहना है कि अगर यह एआई मॉडल सही तरह से काम करता है, तो कम उम्र की महिलाओं को भी शुरुआती जांच का लाभ मिल सकता है. हालांकि, कम उम्र की महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा कम होता है, लेकिन अगर उन्हें यह बीमारी होती है, तो ट्यूमर के अधिक खतरनाक होने की संभावना होती है.
कूल का कहना है कि मैमोग्राफी कम उम्र की महिलाओं के लिए खास तौर पर मुश्किल साबित होता है. उन्होंने कहा, "कम उम्र की महिलाओं में अक्सर घना स्तन ऊतक होता है, जिसकी वजह से मैमोग्राफी के जरिए शुरुआती चरण में कैंसर पहचानना बहुत कठिन हो जाता है.”
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लेकिन कूल मानती हैं कि सामान्य स्क्रीनिंग की उम्र को कम कर देना समझदारी नहीं होगी. उनके अनुसार, "अगर हम सिर्फ वह उम्र कम कर दें, जिस पर महिलाओं को जांच के लिए बुलाया जाता है, तो भी मूल समस्या हल नहीं होगी.” वह एक दो-स्तरीय प्रक्रिया की पक्षधर हैं. पहला, शुरुआती जांच के लिए मैमोग्राफी का इस्तेमाल करना और फिर एआई विश्लेषण करना, जो अगले पांच साल में स्तन कैंसर के जोखिम का पता लगा सकता है.
यदि एआई यह दिखाए कि महिला में जोखिम बहुत अधिक है, तो फिर एमआरआई कराया जाना चाहिए. कूल ने कहा, "ऐसी महिलाओं के लिए मैमोग्राफी की जरूरत नहीं रहती है.”


