एससी/ एसटी कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कमजोर हुआ : केंद्र
केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून से संबंधित उसके फैसले से देश में दुर्भावना, क्रोध एवं असहजता का भाव पैदा हुआ है।

नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून से संबंधित उसके फैसले से देश में दुर्भावना, क्रोध एवं असहजता का भाव पैदा हुआ है।
केंद्र सरकार की ओर से शीर्ष अदालत के समक्ष लिखित तौर पर रखे गये पक्ष में एटर्नी जनरल ने इसे बहुत ही संवेदनशील मसला बताते हुए कहा कि न्यायालय के फैसले से देश में क्षोभ, क्रोध और उत्तेजना का माहौल बना है, साथ ही आपसी सौहार्द का वातावरण भी दूषित हुआ है।
वेणुगोपाल ने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अपने-अपने अधिकार सन्निहित हैं और इनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
सरकार का कहना है कि न्यायालय के फैसले से कानून कमजोर हुआ है और इसकी वजह से देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा।
केंद्र सरकार ने इन परिप्रेक्ष्यों में न्यायालय से 20 मार्च के फैसले पर पुनर्विचार करने तथा अपने दिशानिर्देशों को वापस लेने का अनुरोध किया है।
गौरतलब है कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से सरकार ने इस मामले में याचिका दायर करके शीर्ष अदालत से अपने गत 20 मार्च के आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है। सरकार का मानना है कि एससी और एसटी के खिलाफ कथित अत्याचार के मामलों में स्वत: गिरफ्तारी और मुकदमे के पंजीकरण पर प्रतिबंध के शीर्ष अदालत के आदेश से 1989 का यह कानून ‘दंतविहीन’ हो जायेगा। मंत्रालय की यह भी दलील है कि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया आदेश से लोगों में संबंधित कानून का भय कम होगा और एससी/एसटी समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी।
उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत दर्ज मामलों में उच्चाधिकारी की बगैर अनुमति के आरोपी अधिकारियों की गिरफ्तारी नहीं होगी। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी से पहले आरोपों की प्रारम्भिक जांच जरूरी है।
पीठ ने गिरफ्तारी से पहले मंजूर होने वाली जमानत में रुकावट को भी खत्म कर दिया है। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब दुर्भावना के तहत दर्ज कराये गये मामलों में अग्रिम जमानत भी मंजूर हो सकेगी। न्यायालय ने माना है कि एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है।
शीर्ष अदालत के इस फैसले पर गत दो अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया गया था, जिससे विभिन्न राज्यों में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। कई स्थानों पर आगजनी और हिंसक घटनाएं भी हुई।


