मप्र की पूर्व जज की बहाली पर उच्च न्यायालय को पक्ष रखने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका खारिज किए जाने को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली ग्वालियर की पूर्व अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के सेवा में फिर से लिये जाने के अनुरोध पर बुधवार को उच्च न्यायालय का पक्ष जानना चाहा।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि अब इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान किया जा सकता है। न्यायमूर्ति बोबडे ने उच्च न्यायालय रजिस्ट्री की और से पेश वकील से कहा कि वह इस बारे में उच्च न्यायालय का पक्ष लेकर शीर्ष अदालत को अवगत कराए।
पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका खारिज किए जाने को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
मुख्य न्यायाधीश ने के दौरान पूर्व जज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह से पूछा कि क्या आपकी मुवक्किल किसी अन्य अदालत में ज्वाइन करना चाहेंगी? उन्होंने पूछा कि क्या कोई ऐसी खास जगह है, जहां उनकी मुवक्किल ज्वाइन करना चाहती हैं?
सुश्री जयसिंह ने कहा कि उनकी मुवक्किल ने अपनी इच्छा जताई है, लेकिन वह ग्वालियर नहीं जाना पसंद करेंगी।
इस पर उच्च न्यायालय रजिस्ट्री की ओर से पेश वकील ने कहा कि पूर्व जज की सेवा बहाल करने के कुछ चीजें सवाल बनकर आएंगी।
इस पर न्यायमूर्ति बोबडे ने उन्हें जोर देकर कहा कि इस मसले पर विचार किया जाए। पूर्व जज की बहाली में आर्थिक नफे नुकसान पर असर नहीं होने दिया जाएगा।
सुश्री जयसिंह ने कहा कि उनकी मुवक्किल आर्थिक नफे नुकसान से ज्यादा वरीयता को बरकरार रखने को तरजीह दे रही है।
सुश्री जयसिंह ने यह भी कहा कि पूर्व न्यायाधीश का कार्य त्रुटिहीन था, उन्हें जिला विशाखा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, और 2011 और 2013 के बीच उनके काम की एक वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) ने उनके प्रदर्शन को ‘उत्कृष्ट’ बताया था।
उन्होंने पीठ को सूचित किया कि यौन उत्पीड़न की शिकायत करने की वजह से पूर्व एडीजे का 2014 में ग्वालियर से स्थानांतरण किया गया था। उनकी बेटी हालांकि की बोर्ड परीक्षाओं के कारण स्थानांतरण पर नहीं जा पाईं और इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो गईं। उन्होंने ग्वालियर में आठ महीने तक रहने के लिए विस्तार करने के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया था। न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 18 मार्च की तारीख मुकर्रर की है।


