Top
Begin typing your search above and press return to search.

विपक्षी एकता को बचाना बड़ी चुनौती

आज भी विपक्षी दलों में कांग्रेस से ज्यादा राहुल गांधी की स्वीकृति और प्रभाव है

विपक्षी एकता को बचाना बड़ी चुनौती
X

- शकील अख्तर

आज भी विपक्षी दलों में कांग्रेस से ज्यादा राहुल गांधी की स्वीकृति और प्रभाव है। कांग्रेस को लेकर विपक्षी दलों में बहुत सारे संशय और सवाल हैं। मगर राहुल को लेकर सबमें एक आश्वस्ति का भाव है कि वे जो कहते हैं करते हैं। राजनीति का उपयोग अपने ही लोगों को काटने छांटने में नहीं करते। अगर कांग्रेस के क्षत्रपों ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ का चुनाव खुद को केन्द्र में रखकर लड़ा तो उनके लिए चुनाव मुश्किल हो जाएगा।

इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव कांग्रेस का भविष्य तय करेंगे। पांच राज्यों में चुनाव हैं। और कांग्रेस इन पांचों राज्यों में चुनाव जीतने की मुख्य दावेदार है। तीन राज्यों में तो उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में और तेलंगाना में वहां मौजूद केसीआर की सरकार से। पांचवे राज्य मिजोरम में क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं। और राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस। मगर भाजपा ने पूरे उत्तर पूर्व में क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को भी तोड़कर अपनी सरकारें बना रखी हैं। पहाड़ी राज्यों के पास अपने आर्थिक रिसोर्सेंस बहुत कम होते हैं। इसलिए वह केन्द्र पर बहुत निर्भर रहती है।

केन्द्र में जिसकी सरकार होती है उत्तर पूर्व के राज्य और जम्मू-कश्मीर, उस पार्टी से मिलकर ही चलते हैं। फारुख अब्दुल्ला ने एक बार कहा था कि केन्द्र में अगर शैतान की सरकार भी हो तो हमें उसके साथ मिलकर चलना पड़ेगा

खैर तो यह विधानसभा चुनाव बताएंगे कि कांग्रेस इसके बाद मजबूत होती है या कमजोर। अगर वह कमजोर हो गई तो इंडिया गठबंधन में भी उसकी हैसियत कमजोर हो जाएगी। यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस के कमजोर होने से विपक्षी दलों का इन्डिया गठबंधन कमजोर होगा। इन्डिया गठबंधन प्रधानमंत्री मोदी से लड़ने का भरोसा दे रहा है। जब तक वह मोदी जी के खिलाफ मुखर रहेगा अपनी ताकत को बरकरार रखेगा। देश में अब राजनीति साफ तौर पर मोदी समर्थक और मोदी विरोधियों के बीच बंट गई है। इसमें न कांग्रेस न कोई और विपक्षी दल और न ही सत्तारुढ़ भाजपा किसी का कोई बड़ा असर नहीं बचा है।

अगले लोकसभा चुनाव में सीधी लड़ाई है मोदी बनाम मोदी विरोधी। तो इसलिए विधानसभाओं में कांग्रेस के अच्छा प्रदर्शन न कर पाने से कांग्रेस जरूर कमजोर होगी मगर इन्डिया नहीं। लेकिन हां! कांग्रेस के कमजोर होने से विपक्षी दलों के बीच उसकी स्थिति जरूर कमजोर हो जाएगी।

आज भी विपक्षी दलों में कांग्रेस से ज्यादा राहुल गांधी की स्वीकृति और प्रभाव है। कांग्रेस को लेकर विपक्षी दलों में बहुत सारे संशय और सवाल हैं। मगर राहुल को लेकर सबमें एक आश्वस्ति का भाव है कि वे जो कहते हैं करते हैं। राजनीति का उपयोग अपने ही लोगों को काटने छांटने में नहीं करते। अगर कांग्रेस के क्षत्रपों ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ का चुनाव खुद को केन्द्र में रखकर लड़ा तो उनके लिए चुनाव मुश्किल हो जाएगा। तीनों राज्यों के स्थानीय नेताओं कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल को याद रखना चाहिए कि 2018 का चुनाव राहुल गांधी जो उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थे कि मेहनत ने उन्हें जिताया था। और उसी राहुल गांधी को कांग्रेसियों ने क्या रिटर्न गिफ्ट दिया? 2019 में उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया।

बहरहाल वह अलग विषय है। और कांग्रेसी जिस पर बात करना बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। वे तो राहुल का सिर्फ उपयोग करते हैं। और नुकसान हो जाने हार पर बड़ी आसानी से उन पर दोष मढ़ देते हैं। लेकिन इन्डिया के नेता ऐसा नहीं समझते। वे राहुल को असेट ( वरदान) मानते हैं। अभी तक इन्डिया की तीन मीटिंगें हुईं। पटना, बेगलुरू और मुबंई। तीनों में हीरो राहुल ही रहे। विपक्ष का हर नेता उनसे बात करना चाहता था। और समझ रहा था कि लोकसभा चुनाव में अगर बाजी पलटने की ताकत किसी में है तो वह हमारे साथ मिलकर राहुल गांधी में है।

अगले लोकसभा चुनाव पर समझने से पहले 2014 और 2019 के नतीजे हमेशा याद कर लेना चाहिए। कांग्रेस बहुत बुरी तरह हारी है। तो अब अगर उम्मीद है तो इसलिए कि विपक्ष एक है। और वह राहुल पर पूरी तरह भरोसा कर रहा है। मोदी जी आज जिस तरह भाजपा से भी बड़ी ताकत बन गए हैं और पार्टी से बाहर जाकर भी उन्होंने अपने भक्तों का एक बड़ा समूह तैयार कर लिया है उससे अगर कोई मुकाबला कर सकता है तो वह राहुल की हिम्मत ही है। मगर राहुल को उसके लिए एकजुट विपक्ष चाहिए। जो आज बन गया है। इसलिए 2024 की लड़ाई तो मजेदार होगी। बस देखना यह है कि उसमें कांग्रेस आज की तारीख से ज्यादा मजबूत होकर खड़ी होगी या कमजोर होकर।

विधासनसभा चुनावों के ओपिनियन पोल आने लगे हैं। देशबन्धु के सहयोगी चैनल डीबी लाइव ने तीनों राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के बहुत हकीकत के करीब के संभावित नतीजे बताए हैं। तीनों जगह कड़ा मुकाबला है। अब तक कांग्रेस यह समझ रही थी कि तीनों राज्यों में वह आसानी से सरकार बना लेगी। मगर डीबी लाइव का ओपीनियन पोल कांग्रेस के लिए एक बड़ा अलार्म है। जाग जाने के लिए। तीनों राज्यों के नेता अपने अपने राज्यों में बीजेपी की हालत खराब समझ रहे थे। मगर ओपिनियन पोल ने बताया कि हर जगह वह कड़े मुकाबले में है। और खरगोश की तरह जीत के विश्वास में कांग्रेस सो रही है। और कछुआ लगातार अपनी चाल से चला जा रहा है।

कांग्रेस के नेता किस तरह खुद को सर्वेसर्वा मान रहे हैं इसका एक उदाहरण। इन्डिया गठबंधन ने अपनी पहली कोआर्डिनेशन मीटिंग में एक बड़ा फैसला किया। पहली जनसभा का स्थान तय कर लिया गया। मुंबई की तीसरी बैठक में जो बड़े फैसले हुए थे उनमें था देश भर में चार- पांच जगह इन्डिया की बड़ी जनसभाएं करना। पहली जनसभा भोपाल को मिली। यह बड़ी बात थी। शिवराज सिंह चौहान हिल गए थे। मगर खुद कमलनाथ ने ही वह सभा रद्द कर दी। मुख्यमंत्री शिवराज अचानक हमलावर हो गए। कहने लगे कि हमसे डर कर मीटिंग कैंसिल की है। मीटिंग का फैसला इन्डिया की मीटिंग में हुआ था। रद्द करने का भी उसी को बताना चाहिए था। कारण सहित।
अब अगर मध्य प्रदेश कांग्रेस ने मना कर दिया तो क्या राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस करवाएंगी। अगर करवाती हैं तो यह मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए बड़ा गलत संदेश जाएगा। और अगर यह दोनों भी नहीं करवाती हैं तो देश भर में गलत संदेश जाएगा कि विपक्षी दलों के गठबंधन इन्डिया की कोई पूछ ही नहीं है। क्या जब भोपाल का नाम तय किया था तो वहां मध्य प्रदेश कांग्रेस से नहीं पूछा था? और क्या जब कमलनाथ ने कैंसिल करने का अचानक ऐलान किया तो उससे पहले इन्डिया के दलों को विश्वास में लिया गया था?

अभी नीतीश कुमार जिनके ही प्रयासों से यह विपक्षी एकता हुई है कह रहे हैं कि 14 एंकरों के बायकाट का उन्हें पता ही नहीं! ऐसा क्यों? बड़े फैसलों से पहले सबको विश्वास में लेना चाहिए।

यह विपक्षी एकता बड़ी मुश्किल से बनी है। और यही एक मात्र चीज है जो मोदी जी को ठीक से चैलेंज कर सकती है। इसे अतिरिक्त मेहनत करके बचाना पड़ेगा। मोदी सरकार और मीडिया पूरी ताकत लगाए हुए हैं इसे तोड़ने को। तमाम अफवाहें रोज फैलाई जा रही हैं। मगर अभी सब एक हैं तो केवल इस आधार पर कि अगर मोदी तीसरी बार भी आ गए तो फिर कोई नहीं बचेगा। न विपक्षी दल न लोकतंत्र। तो जब तक यह डर है विपक्ष एक रहेगा।

मगर याद रखना चाहिए कि मोदी जी आखिरी-आखिरी तक विपक्ष को तोड़ने की कोशिश जारी रखेंगे। जब ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, जेल से काम नहीं चलेगा तो फिर लालच और सुरक्षा की गारंटी भी दी जाएगी। कोई हरबा छोड़ा नहीं जाएगा।

विपक्ष की सावधानी में ही उसकी सुरक्षा है। कोई भी नेता खुद को विपक्षी एकता से बड़ा समझने की कोशिश नहीं करे। यह क्षत्रपों की लड़ाई नहीं है। विकट योद्धाओं की है। करो या मरो वाली। भाजपा के सारे नेता मोदी जी के पीछे लामबंद हो गए हैं। ऐसे ही विपक्षी नेताओं को अपने इन्डिया गठबंधन के साथ तनकर खड़े हो जाना चाहिए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it