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देश बचा रहे

देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में किसी ने 'मोदी हटाओ देश बचाओ' के पोस्टर लगवा दिए

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देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में किसी ने 'मोदी हटाओ देश बचाओ' के पोस्टर लगवा दिए। इस पर तेजी से कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने लगभग सौ एफआईआर दर्ज की और छह लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।

बताया जा रहा है कि इनमें से दो प्रिंटिंग प्रेस के मालिक हैं। पुलिस के मुताबिक़, दो प्रिंटिंग प्रेस कंपनियों को ऐसे पचास-पचास हज़ार पोस्टर छापने का ऑर्डर दिया था। इन कंपनियों से जुड़े लोगों ने रविवार रात से सोमवार सुबह तक ऐसे तमाम पोस्टर चिपकाए।इन प्रेस मालिकों को पोस्टरों पर प्रेस का नाम नहीं छापने की वजह से गिरफ़्तार किया गया है। एफआईआर में इन लोगों पर प्रधानमंत्री की छवि को खराब करने के साथ ही सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस ने कम से कम दो हज़ार पोस्टर हटाए हैं और दो हज़ार से ज़्यादा पोस्टरों को एक वैन से बरामद किया गया है। गिरफ़्तार किए गए शख्स ने पुलिस को बताया है कि उसे उसके नियोक्ता ने आम आदमी पार्टी मुख्यालय में पोस्टर डिलीवर करने के लिए कहा था और उसने एक दिन पहले भी ये पोस्टर डिलीवर किए थे। गौरतलब है कि इससे दो साल पहले भी कोविड के दौरान ऐसे ही मोदी विरोधी पोस्टर छापे जाने के मामले में पुलिस ने तीस लोगों को गिरफ़्तार किया था और 25 एफ़आईआर दर्ज की थीं। अब एक बार फिर नया पोस्टर विवाद देखने मिल रहा है।

आम आदमी पार्टी ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि क्या इस पोस्टर में ऐसा क्या है, जो एफआईआर करवाई गई है। आप के नेता इसे तानाशाही भरा कदम बता रहे हैं। दिल्ली में आप और भाजपा के बीच की अदावत सब जानते हैं। हालांकि आप पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगता रहा है। लेकिन अभी जिस तरह से आप के कई नेताओं पर कानूनी कार्रवाई चल रही है, उससे फिलहाल ये दोनों दल एक-दूसरे को चुनौती देते नजर आ रहे हैं। राजनीति में ऐसी चुनौतियां और आरोप-प्रत्यारोप आम बात हैं और लोकतंत्र तो विपक्ष की आवाज, विरोध के सुर के कारण ही धड़कता है। अगर यह सब न हो, तो लोकतंत्र मृतप्राय हो जाएगा, फिर नयी शासन व्यवस्थाओं का रास्ता साफ होगा। जिसमें तानाशाही या सैन्य दबदबे का खतरा बढ़ जाएगा। दुनिया के कई देशों में अब एक राजनैतिक पार्टी के दबदबे, सैन्य तानाशाही या शासकों की निरंकुशता के नुकसान देख रहे हैं। भारत इन सबसे बचा हुआ है क्योंकि यहां हर पांच साल में चुनाव होते ही हैं और पांच सालों के शासन के दौरान शासन करने वाले की आलोचना भी खूब होती है। यह सब सत्ता पर अंकुश और निगरानी बनाए रखने का काम करते हैं। विपक्ष जब किसी गड़बड़ी की ओर ध्यान दिलाता है तो शासक को यह अवसर मिलता है कि वह भूल सुधार कर ले। इसी से शासन सुव्यवस्थित और पारदर्शी होता है और लोकतंत्र का मान बना रहता है।

इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में अगर पोस्टर लग रहे हैं, तो उस पर पुलिस की कार्रवाई और तत्परता देखकर सवाल उठते हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। पोस्टर में प्रिटिंग प्रेस का नाम न लिखना या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना गलत बात है, लेकिन पुलिस की कार्रवाई इन गलतियों से आगे कहीं और संकेत कर रही है। देश में इससे पहले कई जगहों पर प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते हुए बड़े-बड़े पोस्टर-बैनर लगाए जा चुके हैं। बल्कि मुफ्त राशन के थैलों से लेकर कोरोना वैक्सीन के प्रमाणपत्र तक मोदीजी की मुस्कुराती तस्वीर देखने मिली है। क्या तब भी यह पता लगाया गया कि मोदीजी की प्रशंसा में किसने पोस्टर लगाए। क्या तब भी पोस्टर हटाने की चेष्टा की गई, ताकि सरकारी संपत्ति को नुकसान न हो। अगर प्रशंसा कबूल है, तो निंदा से परहेज क्यों। वैसे भी मोदी हटाओ, देश बचाओ लिख देने से कोई सत्ता परिवर्तन तो होगा नहीं। ये बदलाव तो तब होगा, जब जनता चाहेगी।

अभी आम चुनाव में एक साल का वक्त है। जिसके लिए सभी राजनैतिक दल तैयारियों में जुटे हुए हैं। भाजपा तो अगले 50 साल सत्ता का दावा करती ही है, लेकिन इसके लिए भी संविधान में बनाए नियम के मुताबिक उसे हर पांच साल में जनता के बीच जाना ही होगा। जनता अपने मताधिकार से तय करेगी कि किस राजनैतिक दल को बहुमत देकर शासन करने देना है। तो किसे हटाकर देश बचाना है, किसे लाकर देश को आगे ले जाना है, ये मसला जनता पर ही छोड़ दिया जाए। भाजपा को फिलहाल शासन करने का आदेश जनता ने दिया है, तो भाजपा उस आदेश का सम्मान करे।

इस तरह की कार्रवाईयों से तो भाजपा की लोकतांत्रिक आस्था पर सवाल उठेंगे। अगर सरकार दावा करती है कि उसके शासन में लोकतंत्र का सम्मान हो रहा है, तो फिर यह दावा हकीकत में भी दिखना चाहिए। अभी कन्नड़ अभिनेता चेतन कुमार को बेंगलुरु में गिरफ़्तार कर लिया गया। क्योंकि उन्होंने एक ट्वीट में कुछ उदाहरणों के साथ कहा कि हिंदुत्व झूठ पर बना है। इस ट्वीट पर कुछ हिंदू-समर्थक संगठनों ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। अभिनेता पर एक धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान करने और वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाले बयान देने के आरोप लगाए गए और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस देश में सोशल मीडिया पर रोज न जाने कितने तरह से अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगला जाता है। तब गिरफ्तारी की घटना सुनने नहीं मिलती। अगर चेतन कुमार के ट्वीट पर आपत्ति थी, तो उसे हटाने की मांग की जा सकती थी या फिर पुष्ट तर्क देकर उनकी बात को गलत साबित किया जा सकता था। लेकिन ऐसा कुछ न करके सीधे गिरफ्तार करने का रास्ता लिया गया, जिससे यह संकेत मिलते हैं कि बहुसंख्यकों की सत्ता स्थापित करने के लिए भयाक्रांत करने का सहारा लिया जा रहा है। क्या यह स्थिति लोकतंत्र के लिए उचित है, ये सवाल सत्ताधारी खुद से करें।

वैसे याद दिला दें कि 1977 में जे पी नारायण ने इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा दिया था। इंदिरा गांधी को देश के लोगों ने हराया भी और बाद में बहुमत से जिताया भी। उसके बाद देश में कई शासक आए, कई हटे, लेकिन देश बचा रहा। देश अब भी बचा ही रहना चाहिए।


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