सरदार सरोवर के विस्थापितों को दिया जाएं 60-60 लाख का मुआवजा
भोपाल ! सर्वोच्च न्यायालय ने सरदार सरोवर के विस्थापित परिवारों की पुनर्वास संबंधि याचिकाओं पर महत्वपूर्ण फैसला भी लेते हुए प्रभावित 681 परिवारों को 60-60 लाख रुपए का मुआवजा और 589

शीर्ष अदालत का गुजरात सरकार को आदेश
रूबी सरकार
भोपाल ! सर्वोच्च न्यायालय ने सरदार सरोवर के विस्थापित परिवारों की पुनर्वास संबंधि याचिकाओं पर महत्वपूर्ण फैसला भी लेते हुए प्रभावित 681 परिवारों को 60-60 लाख रुपए का मुआवजा और 589 परिवारों को 15-15 लाख रुपए देने के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति खेहर, न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ व न्यायमूति रमण्णा की खण्ड पीठ ने इस फैसले में कहा है कि विस्थापितों म जमीन की पात्रता वाले लोगों को जमीन न मिलने और जिन्होंने जमीन के बदले नगद राशि का 5.58 लाख पैकेज नहीं स्वीकारा या उसकी एक ही किश्त 2.79 लाख लेकर अब तक जमीन नही खरीदी, उन्हे गुजरात शासन दो महीने के भीतर 60-60 लाख का विशेष पैकेज दे। इस आदेश के अनुसार गुजरात को मध्यप्रदेश के इन विस्थापितों को करोड़ों रुपये की पुनर्वास राशि आवंटित करनी होगी।
आदेश में कहा गया है कि जिन प्रभावितों ने एसआरपी की नगद राशि का पूर्ण पैकेज लिया हो, लेकिन वो फर्जी रजिस्ट्रियों के घोटाले के कारण जमीन नहीं ले पाये हैं, ऐसे परिवार को प्रत्येक 15 लाख रुपये का विशेष पैकेज दिया जाए। यही नहीं खण्डपीठ ने विस्थापितों के पुनर्वास स्थलों पर निर्माण कार्यो में तथा सुविधाओं की कमियों पर सुनवाई करने का आदेश शिकायत निवारण प्राधिकरण को दिया है । न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा है, कि यदि प्राधिकरण के आदेश विस्थापितों को नामंजूर न हो, तो वे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में न्याय की गुहार लगा सकते हैं।
इनका कहना है
मेधा पाटकर अभी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अध्ययन कर रही हैं। जिनकी 5 एकड़ या उससे कम जमीन डूब क्षेत्र में आ गई है, उनके लिए 60 लाख रुपये तो ठीक, लेकिन जिनकी 25 हेक्टेयर से अधिक जमीन डूब में आ गई हो, उनके लिए यह र$कम बहुत कम है, उन्होंने बताया, कि इसके अलावा शिकायत निवारण प्राधिकरण को पुनर्वास स्थलों की सुविधाएं निश्चित करना है। मध्यप्रदेश में 88 पुनर्वास स्थल वर्तमान में रहने योग्य नहीं है। इस तरह का पुनर्वास आधा- अधूरा है। इसलिए इस आदेश के बाद भी आंदोलन जारी रहेगा।
हमारा मानना है कि तकरीबन 45 हजार परिवार सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में आज भी बसे हैं, उन्हें इतनी जल्दी पक्के मकान, शाला, पंचायय, दवाखाना, खेत, खलिहानों के साथ 6 महीनों में दूसरी जगह नई जिंदगी शुरू होना आसान नहीं होगा ।
कैलाश आवस्या, नेता नर्मदा बचाओ आंदोलन


