संजय दत्त की 'प्रस्थानम' फिल्म रिलीज
इस सप्ताह कई फिल्में एक साथ रिलीज़ हुई या यूँ कहा जाए की नए कलाकार और पुराने कलाकार के बीच में एक छोटी सी फ़िल्मी जंग है

फिल्म समीक्षक
सुनील पराशर
इस सप्ताह कई फिल्में एक साथ रिलीज़ हुई या यूँ कहा जाए की नए कलाकार और पुराने कलाकार के बीच में एक छोटी सी फ़िल्मी जंग है हम बात कर रहे है सनी देओल के बेटे करन देओल की जो इस सप्ताह अपनी डेब्यू फिल्म 'पल पल दिल के पास' से बिग स्क्रीन पर प्रदार्पण कर रहे है जिसमें उनके साथ नयी कलाकार सहर बाम्बा भी है। वही मंझे हुए कलाकार संजय दत्त की भी फिल्म 'प्रस्थानम' इस सप्ताह रिलीज़ हुई जिसमें उनके साथ है अली फ़ज़ल, अमायरा दस्तूर, जैकी श्रॉफ, चंकी पांडे व मनीषा कोइराला। इसी के साथ निर्देशक अभिषेक शर्मा की फिल्म 'द ज़ोया फैक्टर' भी रिलीज़ हुई जिसमें सोनम कपूर के साथ है, दुलकर सलमान, अंगद बेदी और संजय कपूर। हम तीनों ही फिल्मों का रिव्यु इस सप्ताह दे रहे है क्योंकि तीनों ही फिल्में अलग अलग सब्जेक्ट पर है।
फिल्म रिव्यु - पल पल दिल के पास
धर्मेंद्र की तीसरी पीढ़ी ने इस सप्ताह स्क्रीन पर कदम रखा, जिसका निर्देशन उनके बेटे सनी देओल ने ही किया है। अपने ही बैनर तले बनी इस फिल्म को उनके पोते करन देओल किस तरह निभाते है ये तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा। सनी देओल ने इस फिल्म को एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म बनाया है जैसे की हर स्टार किड की फिल्म होती है। जहाँ तक फिल्म की कहानी की बात है फिल्म में ज्यादा उतार चढ़ाव नज़र नहीं आते लेकिन हिमाचल की ख़ूबसूरती बहुत अच्छे से इस फिल्म में देखने को मिलेगी। फिल्म शुरू होती है सहर सेठी यानि सहर बाम्बा से, जिसे घूमने फिरने का बहुत शौक है और वो नई नई जगह घूमने के लिए ललायित रहती है और उसका यह शौक उसे ले जाता है हिमाचल की वादियों में, जहाँ उसे मिलता है करन सहगल यानि करन देओल, जिसके साथ वो ट्रैकिंग पर निकलती है और थोड़ी बहुत नोकझोक के बाद उनमें प्यार हो जाता है। करन अपनी ट्रैकिंग कंपनी चलाता है तो सहर सबसे बड़ी वीडियो ब्लॉगर और सिंगर है। कुछ समय बाद सहर को वापिस अपने घर जाना होता है वहीं करन उसके बिना अपने आपको अकेला महसूस करता है और वो चला जाता है उससे मिलने मुंबई। मुंबई जाकर उसके साथ कुछ ऐसा होता है जो उसने कभी सोचा भी नहीं था और यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा।
अपनी पहली फिल्म में दोनों कलाकार नेचुरल और कॉंफिडेंट लगते है। करन को अगर आगे बढ़ना है तो उन्हें अपने एक्सप्रेशन सुधारने पड़ेंगे साथ ही कॉमिक टाइमिंग भी। जहाँ तक निर्देशक सनी देओल की बात है उन्होंने पूरी मेहनत की है लेकिन दर्शक उनकी मेहनत से बनी इस फिल्म से जुड़ नहीं पाते और यह भी किया जा सकता था की निर्देशन का भार किसी और डायरेक्टर पर होता तो इस फिल्म को और अच्छे दर्शक मिल सकते थे। लेकिन जो सनी देओल को पसंद करते है वो इस फिल्म को देखने ज़रूर जाएंगे।
फिल्म रिव्यु - प्रस्थानम
संजय दत्त की फिल्म कोई भी हो उसमें दर्शक कभी बोरियत महसूस नहीं करते इस सप्ताह रिलीज़ फिल्म प्रस्थानम के साथ भी यही हुआ है, यह राजनीतिक, एक्शन, क्राइम, ड्रामा फिल्म है जिसमें राजनीति को लेकर परिवार में प्रतिद्वंदिता है जैसा की अक्सर राजनीतिक रियल स्टोरी में होता है। फिल्म की कहानी शुरू होती है एमएलए बलदेव प्रताप सिंह यानि संजय दत्त से और पूरी फिल्म उनके ही चारों और घूमती है। फिल्म में दूसरा किरदार जो मज़बूत दिखाई देता है वो है बलदेव की पत्नी सरोज यानि मनीषा कोइराला और उनके सौतेले बेटे आयुष यानि अली फ़ज़ल का। फिल्म की कहानी उत्तरप्रदेश के बल्लीपुर जगह की है जहाँ बलदेव अपने सौतेले बेटे आयुष को अपना राजनीतिक वारिस मानते है इसीलिए उसे हर जगह साथ लेकर जाते है वही उनका दूसरा बेटा विवान यानि सत्यजीत दूबे भी राजनीति में अपना हक़ चाहता है लेकिन अपने बिगड़ैल और गुस्सैल स्वभाव के कारण हर जगह उसकी कहानियां बनती रहती है जिसकी वजह से बलदेव टेंशन में रहता है। इन सभी को बांधी हुई है सरोज जो नहीं चाहती की उसके परिवार पर किसी भी तरह की कोई आंच आये। इस घरेलु झगड़े का पूरा फायदा उठाता है चंकी पांडे जोकि इस फिल्म का मुख्य विलेन है।
जहाँ तक एक्टिंग की बात है संजय दत्त पूरी तरह छाए रहे है और उनके बेटे बने अली फ़ज़ल ने इस फिल्म में बेहतरीन काम किया है। फिल्म में जैकी श्रॉफ बलदेव के ड्राइवर का किरदार निभा रहे है जो समय समय पर अपना किरदार निभा जाते है और इस सबमें बाज़ी मार जाते है चंकी पांडे, जिनकी उम्र के साथ साथ उनकी एक्टिंग में भी काफी निखार आता जा रहा है।
फिल्म रिव्यु - द ज़ोया फैक्टर
हमारे देश में क्रिकेट के चार्म है के साथ साथ अंधविश्वासों का भी बोल बाला दिखता है, जैसा की अगर क्रिकेट मैच चल रहा हो और कोई मेहमान अचानक आ जाए और उसके आते ही सचिन या विराट छक्का मार दे तो समझ लो की वो इंसान उस घर के लिए और क्रिकेट के लिए लकी बन गया और वो उसे तब तक जाने नहीं देते जब तक इंडिया मैच न जीत जाए, कुछ ऐसा ही होता है 'द ज़ोया फैक्टर' में। ज़ोया यानि सोनम कपूर का जन्म उस दिन होता है जब इंडिया पहला वर्ल्ड कप जीतता है उसी दिन से सब उसे क्रिकेट के लिए लकी मानने लग जाते है और जब भी इंडिया हारने वाला होता है ज़ोया की उपस्थिति मैच जीता देती है। सोनम एडवरटाइजिंग कंपनी में जूनियर कॉपी राइटर है और वो अपने काम से बहुत खुश है तभी उसकी ज़िन्दगी में आते है क्रिकेटर निखिल खोडा यानि दुलकर सलमान जो टीम के कप्तान है और दोनों में प्यार हो जाता है। क्रिकेट टीम भी ज़ोया को अपना लकी चार्म मानती है क्योंक़ि जिस दिन वो मैच देखने आती है टीम हारता हुआ मैच भी जीत जाती है। लेकिन निखिल इस सबका क्रेडिट अपनी टीम की मेहनत को देता है। क्रिकेट बोर्ड जोया को क्रिकेट टीम का लकी मस्कट बनाना चाहती है जिसे वो मना कर देती है, इसी बीच रोबिन यानि अंगद बेदी ज़ोया और निखिल के बीच में गलतफहमिया पैदा करवा देता है जिससे चिढ़कर ज़ोया अपने लक फैक्टर को साबित करने के लिए एक करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर देती है लेकिन फिर क्या होता है यह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा।
जहाँ तक एक्टिंग की बात है सोनम फिल्म में काफी फ्रेश लुक लिए हुए है तो दुलकर भी कहीं पर कमज़ोर नज़र नहीं आते। जहाँ तक अंगद बेदी की बात है उनकी लगातार फिल्में रिलीज़ हो रही है और उनकी एक्टिंग की सराहना हर कोई करता नज़र आता है और इस फिल्म में भी वो मज़बूत किरदार के रूप में उभरे है।
कुल मिलाकर तीनों ही फिल्में अपने अपने हिसाब से ठीक ठीक बनी है क्योंकि तीनों फिल्में देखने के बाद यह तय करना मुश्किल हो जाता है की कौनसी फिल्म ज्यादा बढ़िया है, तीनों ही फिल्मों को एक एक बार देख जा सकता है।


