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भाजपा को परेशानी में डालता संघ

जिस केरल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के 'हिन्दू विरोधी राज्य' के रूप में निरूपित करता आया है

भाजपा को परेशानी में डालता संघ
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जिस केरल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के 'हिन्दू विरोधी राज्य' के रूप में निरूपित करता आया है, उसी प्रदेश के पलक्कड़ में उसने अपनी तीन दिवसीय मंथन बैठक सोमवार को सम्पन्न की जो कई प्रकार से खुद को भ्रमित करने वाली तो रही ही, अपनी राजनीतिक विंग अर्थात भारतीय जनता पार्टी को भी मुश्किल में डालने वाली साबित हो सकती है। 'राष्ट्रीय समन्वय सम्मेलन' के नाम से आयोजित यह बैठक भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान की पार्श्वभूमि में हुई है, जिसमें कहा गया था कि-'अब भाजपा इतनी बड़ी हो गयी है कि उसे संघ की ज़रूरत नहीं है।' वैसे इस बयान पर बैठक में कोई विचार-विमर्श हुआ या नहीं, यह तो सामने नहीं आया है लेकिन मुख्यत: जिन मसलों पर विचार किये जाने की जानकारी दी गयी है, उनमें तीन तो स्पष्ट हैं- जातिगत जनगणना, देश में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा। इस बैठक में स्वाभाविकत: संघ प्रमुख मोहन भागवत व सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले थे, खुद नड्डा पार्टी महासचिव बीएल संतोष संग मौजूद थे।

जातिगत जनगणना को लेकर भाजपा का इंकार रहा है परन्तु उसे संघ की बैठक में यह कहकर हरी झंडी दिखा दी गई कि 'कल्याणकारी योजनाओं के लिये जाति के आंकड़े जुटाने में कोई दिक्कत नहीं है।' हालांकि संघ ने कहा कि इसका उपयोग चुनावी राजनीति के लिये नहीं होना चाहिये। उल्लेखनीय है कि इसे एक तरह से विपक्षी गठबन्धन यानी इंडिया की जीत कहा जा सकता है क्योंकि उसी ने यह मांग जोरदार ढंग से उठाई थी। इसे भाजपा देश की अखंडता और एकता के लिये खतरा भी बताती थी। भाजपा की झल्लाहट इस कदर थी कि पिछले संसदीय सत्र में लोकसभा में पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी पर यह कहकर अत्यंत अशोभनीय टिप्पणी की थी कि 'जिसकी जाति का पता नहीं वे जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं।' अब संघ द्वारा उस मांग का समर्थन करने से भाजपा किंकर्तव्यविमूढ़ हो जायेगी।

देखना दिलचस्प होगा कि क्या संघ की इस सलाह पर भाजपा अमल करेगी या नहीं। अगर करती है तो यह राहुल की जीत मानी जायेगी जिसमें उन्होंने कहा था कि 'वे इसी सदन (लोकसभा में बहस के दौरान) के भीतर जातिगत जनगणना का कानून पारित कराएंगे।' अब तक माना जाता था कि राहुल का आशय यह रहा होगा कि उनकी सरकार बनने के बाद ऐसा किया जायेगा। यदि संघ के दिशा-निर्देश पर नरेन्द्र मोदी सरकार ऐसी जनगणना कराती है तो माना जायेगा कि वह संघ द्वारा संचालित है तथा नड्डा की इस बात में कोई दम नहीं है कि 'भाजपा को संघ की ज़रूरत नहीं है'। आशय यह है कि भाजपा अब भी संघ की कठपुतली है जिसकी डोर संघ के हाथों में है। इसके विपरीत यदि मोदी इस सलाह पर अमल न करते हुए अपनी जिद पर अड़े रहे तो यही संदेश जायेगा कि मोदी संघ से बड़े हो गये हैं; जैसा कि कहा भी जाता है।

देश भर में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार के मामले पर संघ ने चर्चा तो की पर मुख्यत: पश्चिम बंगाल के कोलकाता के मामले का जिक्र कर अपना भाजपा के लिये राजनीतिक इस्तेमाल भी होने दिया है। संघ को पूरे देश में और किसी भी राज्य में होने वाली ऐसी घटनाओं पर चिंता जताकर मोदी सरकार को निर्देश देना था कि वह इन्हें रोके। देश भर के अधिकृत आंकड़े बताते हैं कि भाजपा प्रशासित राज्यों में ये अपराध सर्वाधिक हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, असम, गुजरात में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं। मणिपुर के मामले में मोदी की चुप्पी आम चर्चा का विषय रही। तब भी भागवत ने कहा था कि 'केन्द्र सरकार को मणिपुर में बैठकर मामले को सम्हालना चाहिये', परन्तु मोदीजी ने ऐसी कोई पहल नहीं की थी। छत्तीसगढ़ में सोमवार को इसी मुद्दे पर कांग्रेस ने प्रदेशव्यापी प्रेस कांफ्रेंस कर बतलाया कि पिछले 8 माह में महिलाओं के खिलाफ 3 हजार से अधिक अपराध हुए हैं, जिनमें बलात्कार के 600 से ज्यादा मामले हैं। यहां भाजपा सरकार है। संघ की यह चिंता इसलिये भी भाजपा को परेशानी में डालेगी क्योंकि बलात्कारियों और महिलाओं के साथ उत्पीड़न करने वालों को संस्थागत प्रश्रय देने और बचाने का काम खुद भाजपा की सरकारें कर रही हैं। ऐसे कई अपराधों में भाजपा के ही लोग शामिल हैं। मोदी के वाराणसी संसदीय क्षेत्र में बलात्कार कर पीड़िताओं के वीडियो बनाने से लेकर बलात्कारियों का स्वागत करने तथा बलात्कार की सजा भुगत रहे अपराधियों (राम रहीम व आसाराम) को बार-बार फरलो पर छोड़ने का काम इसी पार्टी की सरकारें कर रही हैं।

तीसरा मसला बांग्लादेश को लेकर है जो मोदी को बड़ी कूटनीतिक अड़चन में डाल सकता है। वहां तख्तापलट के बाद हुई झड़पों के बाद हिन्दुओं पर हुए हमलों के लिये न केवल वहां की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस ने माफी मांगी बल्कि वहां स्थिति को बहुत जल्दी सामान्य भी कर दिखाया। जब से वहां शांति बहाल हुई है, ऐसी घटनाएं थमी हैं। भागवत चाहते हैं कि भारत सरकार बांग्लादेश से बात करे। जब ऐसी घटनाएं जारी थीं तो सरकार ने इस पर कोई बात नहीं की। मोदी अगर यह मामला उठाते हैं तो बांग्लादेश उन्हें पहले अपने गिरेबान में झांकने के लिये कह सकता है। महाराष्ट्र के एक मुस्लिम बुजुर्ग को गौमांस रखने के आरोप में कुछ लोगों द्वारा पीटे जाने का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण देने से बांग्लादेश पहले से ही भारत से नाराज़ है। संघ ने भाजपा-मोदी सरकार को फंसा दिया है।


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