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भारत में बढ़ती जा रही है इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री

भारत में लोग अपना खर्च घटाने और प्रदूषण में कमी लाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपना रहे हैं

भारत में बढ़ती जा रही है इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री
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भारत में लोग अपना खर्च घटाने और प्रदूषण में कमी लाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपना रहे हैं. एक साल में ई-कारों की बिक्री 90 फीसदी बढ़ गई. एक अनुमान के मुताबिक, 2030 तक भारत में बिकने वाली हर तीसरी कार इलेक्ट्रिक होगी.

"सबसे पहले मैंने एक पेट्रोल कार खरीदी थी. महंगाई को देखते हुए बाद में डीजल कार खरीद ली. लेकिन समय के साथ डीजल भी काफी महंगा हो गया. ऐसे में मैंने पिछले साल एक इलेक्ट्रिक कार खरीदने का फैसला लिया," यह कहना है उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में रहने वाले सागर शर्मा का. उन्होंने पिछले साल जुलाई में टाटा कंपनी की टियागो ईवी खरीदी थी. शर्मा बताते हैं कि ईवी खरीदने की दो बड़ी वजहें रहीं. पहली यह कि पेट्रोल या डीजल कार की तुलना में ईवी चलाने पर कम खर्च होता है और दूसरी कि इससे प्रदूषण कम होता है.

सागर शर्मा अकेले नहीं हैं, जिन्होंने पिछले साल इलेक्ट्रिक कार खरीदने का फैसला लिया. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (एफएडीए) के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में 90 हजार से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें बिकीं. वहीं, इससे पिछले वित्त वर्ष में करीब 47 हजार इलेक्ट्रिक कारें ही बिकी थीं. यानी एक साल में इनकी बिक्री 90 फीसदी बढ़ गई. 2023 में टाटा मोटर्स ने सबसे ज्यादा 64 हजार इलेक्ट्रिक कारें बेचीं. इसके बाद एमजी मोटर ने 11 हजार और महिंद्रा ने छह हजार ई-कारें बेचीं. चीनी कंपनी बीवाईडी की भी 1,700 से ज्यादा ई-कारें बिकीं.

इलेक्ट्रिक कारों के लिए चार्जिंग एक समस्या

सागर शर्मा पिछले नौ महीनों में अपनी इलेक्ट्रिक कार को 40 हजार किलोमीटर से ज्यादा चला चुके हैं. वैसे तो उनका अब तक का अनुभव अच्छा रहा है लेकिन वे दो समस्याएं भी गिनाते हैं. वे कहते हैं, "दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो चार्जिंग स्टेशन आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के कई जिलों में चार्जिंग स्टेशन दूर-दूर तक नहीं हैं. कई बार गूगल मैप पर तो चार्जिंग स्टेशन दिखते हैं, लेकिन लोकेशन पर पहुंचने पर पता चलता है कि चार्जिंग स्टेशन बंद पड़ा है.”

उनकी दूसरी शिकायत ईवी की रेंज को लेकर है. वे कहते हैं, "मेरी कार फुल चार्ज होने पर करीब 220 किलोमीटर का सफर तय कर लेती है. ऐसे में आस-पास के इलाकों में तो आसानी से जा सकते हैं. लेकिन दूर जाने का फैसला सोच-समझकर लेना होता है. उदाहरण के लिए, मेरी गाड़ी फुल चार्ज होकर दिल्ली तो पहुंच जाती है, लेकिन वापस आने के लिए वहां मुझे उसे दोबारा चार्ज करना पड़ता है. इसमें करीब डेढ़ घंटे का समय और पांच सौ से छह सौ रुपए खर्च हो जाते हैं.”

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी 2024 में भारत में करीब 12 हजार सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशन काम कर रहे थे. वहीं, अगस्त 2023 तक देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 28 लाख पार कर चुकी थी. यानी एक सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन पर औसतन 230 इलेक्ट्रिक वाहन हैं.

आधे से ज्यादा तिपहिया वाहन इलेक्ट्रिक

पिछले वित्त वर्ष में भारत में लगभग 16.8 लाख इलेक्ट्रिक वाहन बिके थे. इसमें सबसे ज्यादा योगदान इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया का रहा. पिछले साल करीब 9.5 लाख इलेक्ट्रिक दोपहिया और करीब 6.3 लाख इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहन बिके.

पिछले दो सालों में बिकने वाला हर दूसरा तिपहिया वाहन इलेक्ट्रिक था. ई-रिक्शों की बढ़ती लोकप्रियता ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई. पवन कक्कड़ ई-रिक्शा बनाने वाली कंपनी वाइसी इलेक्ट्रिक व्हीकल में पार्टनर हैं. उनकी कंपनी ने पिछले साल 42 हजार से ज्यादा ई-रिक्शा बेचे थे. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया, "ई-रिक्शा इसलिए ज्यादा बिक रहे हैं क्योंकि ये लास्ट माइल कनेक्टिविटी यानी अंतिम छोर तक पहुंच प्रदान करते हैं. लोग दस रुपए देकर भी इनमें सफर कर सकते हैं. इसके अलावा, पेट्रोल-डीजल पर चलने वाले ऑटो की तुलना में इन्हें खरीदना और चलाना भी सस्ता होता है.”

कक्कड़ आगे बताते हैं, "ई-रिक्शा की खरीद के लिए कई गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां आसानी से उधार दे देती हैं. एक व्यक्ति 25 से 30 हजार रुपए का अग्रिम भुगतान करके ई-रिक्शा घर ले जा सकता है और उसकी मदद से हर महीने 25-30 हजार रुपए तक की कमाई कर सकता है. इनमें सर्विस खर्च भी ज्यादा नहीं होता है.”

-रिक्शा भी फैला सकते हैं प्रदूषण

पवन ई-रिक्शा से हो सकने वाले प्रदूषण के बारे में भी बताते हैं. वे कहते हैं, "ई-रिक्शा दो तरह की बैटरी के साथ आते हैं. पहली- लैड एसिड बैटरी. यह वही बैटरी होती है, जो आमतौर पर घरों में इनवर्टर के साथ इस्तेमाल होती है. इस बैटरी वाले रिक्शे करीब एक लाख 40 हजार रुपए मेंं आ जाते हैं, लेकिन यह बैटरी एक से डेढ़ साल तक ही चलती है. जब ये बैटरी खराब होती है तो इसका तेजाब नालों और जमीन में जाता है, जो प्रदूषण की बड़ी वजह बनता है.”

उनका मानना है कि लीथियम आयन बैटरी वाला रिक्शा खरीदना ज्यादा अच्छा विकल्प है. वे बताते हैं, "लीथियम आयन बैटरी वाला ई-रिक्शा करीब एक लाख 80 हजार रुपए में आता है, लेकिन यह बैटरी चार से पांच साल आसानी से चल जाती है. इसलिए यह पर्यावरण के लिहाज से ज्यादा बेहतर होती है. इस पर केंद्र सरकार की ओर से 25 हजार रुपए तक की सब्सिडी भी मिल सकती है.”

आखिर क्यों बेहतर हैं इलेक्ट्रिक वाहन

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, इलेक्ट्रिक गाड़ियां वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करती हैं. वे पेट्रोल या डीजल से चलने वाली गाड़ियों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं. पेट्रोल या डीजल कार को छोड़कर इलेक्ट्रिक कार अपनाने से आपके कार्बन फुटप्रिंट्स में हर साल दो टन तक की कमी आ सकती है.

हालांकि, इसमें एक चुनौती यह भी है कि कई इलेक्ट्रिक कारों को जीवाश्म-ईंधन से बनी बिजली से चार्ज किया जाता है. यह पर्यावरण के लिए उतना फायदेमंद नहीं होता. ऐसे में जब ई-वाहनोंं को सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा से चार्ज किया जाता है, तो यह पर्यावरण के लिए ज्यादा बेहतर होता है.

इसके अलावा, नया ई-वाहन बनाने के लिए बड़ी मात्रा में खनिजों और कीमती धातुओं की जरूरत पड़ती है. इन खनिजों और धातुओं के खनन से कार्बन उत्सर्जन होता है. ऐसे में एक ई-वाहन को लंबे समय तक इस्तेमाल करने से पर्यावरण को अधिक फायदा होता है.

भारत सरकार ने ई-मोबिलिटी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए ई-अमृत पोर्टल शुरू किया है. इसके मुताबिक, ई-वाहनों को चलाने और रखरखाव करने में भी पेट्रोल और डीजल वाहनों की तुलना में काफी कम खर्च होता है. इन्हें खरीदने के दौरान रजिस्ट्रेशन टैक्स और रोड टैक्स भी कम लगता है. ये आवाज भी नहीं करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण कम होता है.

भविष्य में कितनी बढ़ेगी इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने 23 अप्रैल को ‘ग्लोबल ईवी आउटलुक 2024' रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक, इस साल दुनियाभर में बिकने वाली हर पांचवी कार इलेक्ट्रिक हो सकती है. इस साल के अंत तक दुनिया भर में एक करोड़ 70 लाख इलेक्ट्रिक कारें बिक सकती हैं. इसमें चीन की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रहने का अनुमान है. वहां इस साल एक करोड़ ई-कार बिक सकती हैं.

रिसर्च फर्म काउंटर पॉइंट ने अपने विश्लेषण में बताया है कि 2024 में भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री में 65 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है. अनुमान के मुताबिक, 2030 तक देश में बिकने वाली हर तीसरी कार इलेक्ट्रिक होगी. भारत सरकार का लक्ष्य भी इससे मिलता-जुलता ही है. सरकार ने साल 2030 तक निजी कारों की कुल बिक्री में ईवी की 30 फीसदी हिस्सेदारी करने का लक्ष्य रखा है.

भारत सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी भी इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर खासे उत्साहित दिखते हैं. उन्होंने ईवी एक्सपो 2023 में कहा था कि भारत में 2030 तक हर साल एक करोड़ इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री होने की संभावना है. इससे पांच करोड़ नौकरियां पैदा होने की भी उम्मीद है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा ईवी निर्माता बनने की क्षमता है.


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