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नर्मदा बचाओ आंदोलन करने वालों को सलाम : न्यायाधीश

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के नीलम पार्क में सोमवार को 'नर्मदा और किसानी बचाओ जंग यात्रा' के समापन मौके पर जन अदालत का आयोजन किया गया

नर्मदा बचाओ आंदोलन करने वालों को सलाम : न्यायाधीश
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भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के नीलम पार्क में सोमवार को 'नर्मदा और किसानी बचाओ जंग यात्रा' के समापन मौके पर जन अदालत का आयोजन किया गया। न्यायाधीश गोपाला गौड़ा और अभय थिप्से ने फैसला देते हुए कहा, "हम नर्मदा बचाओ आंदोलन के तीन दशकों से भी ज्यादा लंबे संघर्ष को सलाम करते हैं।" उन्होंने कहा, "हम इस लड़ाई को आगे बढ़ाने की भी कामना करते हैं, क्योंकि ऐसा संघर्ष ही हमारे लोकतंत्र और देश को बचा सकता है।"

न्यायाधीश गौड़ा ने जन अदालत में कहा कि शिकायत निवारण प्राधिकरण, सुप्रीम कोर्ट के 2000, 2005 तथा 2017 के फैसलों पर भी अमल न करना पूरी तरह से जीने के अधिकार और आजीविका के अधिकार पर चोट है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, "हमें व्यवस्था के अंदर रहकर ही अपनी मर्यादाओं में काम करना पड़ता है, परंतु समाज के लिए आप जो काम कर रहे हैं, उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।"

खलघाट से 29 मई को शुरू हुई 'नर्मदा और किसानी बचाओ जंग यात्रा' सोमवार जून को बैरागढ़ से लगभग 13 किलोमीटर पैदल चलकर नारों और गानों के साथ भोपाल के नीलम पार्क पहुंची। नीलम पार्क में जस्टिस गोपाला गौड़ा और अभय थिप्से की जन अदालत में यात्रा का स्वागत किया गया।

नर्मदा नदी पर बने और प्रस्तावित सभी बांध के क्षेत्रों से आए हुए प्रभावित लोगों ने न्यायाधीशों को अपनी पीड़ा सुनाकर और आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई।

सरदार सरोवर बांध प्रभावित कैलाश अवास्या और गैम्तिया भाई ने बताया कि कैसे जमीन के बदले जमीन की नीति होते हुए भी उसका पालन नहीं हो रहा है, अलीराजपुर में सिर्फ आठ परिवारों को जमीन दी गई। आदिवासी समुदाय से आये गैम्तिया भाई ने बताया कि शिकायत निवारण प्राधिकरण के सामने हजारों आवेदन लंबित हैं और जिनमें मंजूरी मिली भी है तो उसका पालन नहीं हुआ है।

रणजीत तोमर ने कहा कि नर्मदा ट्रिब्यूनल अवार्ड में पुनर्वास और पर्यावरण दोनों के बारे में लिखा है बावजूद इसके सरकार इसको लागो नहीं कर ही है और सुप्रीम कोर्ट में भी झूठे हलफनामे लगाकर जनता को गुमराह करने की कोशिश बहुत पहले से की जा रही है।

श्यामा मछुवारा, कमला मछुवारा और मधु भाई ने न्यायाधीशों के सामने गुहार लगाई कि "मछुवारा समुदाय के साथ न्याय किया जाए और हमें भी जमीन का लाभ दिया जाए। नर्मदा जैसी पहले थी हमें वैसी ही नर्मदा फिर से लौटा दी जाए।"

निसरपुर गांव से आए सुरेश प्रधान ने किसानों का दुख व्यक्त करते हुए कहा, "हमें सरकार ने भूमिहीन और आजीविका विहीन कर दिया है। 88 पुनर्वास स्थलों में से केवल 3-4 स्थल ही केवल रहने लायक हैं।"

चिखल्दा से आए वाहिद मंसूरी ने बैकवाटर की समस्या बताते हुए कहा कि बैक वाटर में आने वाले परिवारों की पात्रता की बात नहीं की गई है, बल्कि 307 और 365 जैसी धाराएं लगाकर आंदोलनकारियों को दबाया जा रहा है।

महाराष्ट्र और गुजरात के प्रभावितों ने भी व्यथा सुनाई। गुजरात के भरूच से आए हीराल भाई तथा चिमन भाई ने नर्मदा नदी में 60 किलोमीटर तक समुद्र के घुसने की बात कही, जिस वजह से नर्मदा का पानी भी खरा हो गया है। यह पानी न तो अब पीने लायक ही बचा है और न मछलियों के जीवित रहने योग्य।

इंदिरा सागर बांध क्षेत्र से आए मंगल सिंह मांझी ने मछुवारा समिति में मछुवारा समुदाय के लोगों को शामिल करने की बात उठाई।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय समन्वयक वी. पी. सिंह ने न्यायाधीशों से किसानों की मांगों पर संसद में पेश किए जाने वाले दो बिलों-पूर्ण कर्जमुक्ति और लागत का डेढ़ गुना दाम के बारे में बताया।

भगवन सिंह परमार ने सत्याग्रह के दौरान मंडियों में फसलों के दामों में बहुत अंतर की बात बताई। उन्होंने कहा कि सभी 100 मंडियों में दाम बिल्कुल अलग थे।

मंदसौर से आए वी.पी. धाकड़ ने किसानों पर हो रहे दमन के बारे में बताया कि मंदसौर में किसानों पर 7000 मुकदमें दर्ज हैं। सेंचुरी मिल वर्कर्स ने सरकार और उद्योगपतियों की मिलीभगत का खुलासा करते हुए बताया कि दो मजदूरों की आत्महत्या करने और न्यायालय के फैसले के बावजूद भी न्याय नहीं मिल रहा है।

अंत में मेधा पाटकर ने किसानों को हो रहे घाटे का जिक्र करते हुए बताया कि किसानों को उनकी लागत का आधा मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है, इसलिए ज्यादातर फसलों पर सर्वे व अध्ययन करके उचित मूल्य दिया जाए।


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