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संतों ने भारत की आध्यात्मिक चेतना को जिंदा रखा : कृष्ण गोपाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह-कार्यवाहक डॉक्टर कृष्ण गोपाल ने कहा कि देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य संत परम्परा के द्वारा किया जाता रहा है

संतों ने भारत की आध्यात्मिक चेतना को जिंदा रखा : कृष्ण गोपाल
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लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह-कार्यवाहक डॉक्टर कृष्ण गोपाल ने कहा कि देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य संत परम्परा के द्वारा किया जाता रहा है। भारत की आध्यात्मिक दृष्टि सभी विभेदों से उपर उठकर देखने की दृष्टि है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, अवध प्रान्त कोरोना महामारी के दौरान व्याख्यानों की श्रृंखला आयोजित कर रहा है। इसी कड़ी में एबीवीपी अवध प्रान्त के द्वारा सोमवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-कार्यवाहक कृष्ण गोपाल ने इस व्याख्यान श्रंखला में 'भारतीय संत परंपरा एवं राष्ट्रीयता के विविध आयाम' विषय पर बात रखी।

आरएसएस के सह-कार्यवाहक ने कहा कि संतों ने पूरे भारत को एकता के सूत्र में बांधा। उनकी गौरवशाली परंपरा में देश की हर भाषा और हर जाति-वर्ग को बराबर सहभागिता मिली। वे समूचे देश का भ्रमण करते थे। सभी को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते थे। इन संतों ने कभी दरबारी बनने की चेष्टा नहीं की बल्कि समाज में घूम घूम कर सभी को एकत्र किया और भारत की आध्यात्मिक चेतना को जिन्दा रखा।

डॉ. कृष्ण गोपाल ने अपने संबोधन के दौरान डॉ. राम मनोहर लोहिया की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि डॉ. लोहिया कोई बड़े धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, लेकिन अपनी पुस्तक में उन्होंने जो लिखा है उससे प्रतीत होता है कि उन्होंने भी भारत की आध्यात्मिक मौलिकता को स्वीकार किया है। डॉ कृष्ण गोपाल ने इस दौरान लल्लन प्रसाद राय और राम विलास शर्मा की पुस्तकों की भी चर्चा की और कहा कि इनमें भारतीय संत परंपरा के विविध आयाम बड़े ही अच्छे ढंग से दर्शाये गये हैं।

उन्होंने कहा कि संकट के समय संतों ने ही आगे आकर समाज को दिशा दी है और उसी के कारण हमें समाज में वृहद परिवर्तन दिखाई देते हैं और यही हमारे देश की अमरता का मूल कारण है।

संघ के सह-कार्यवाहक ने अपने उद्बोधन में महात्मा बुद्घ, आद्य शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, शंकरदेव, चैतन्य महाप्रभु, ज्ञानदेव, तुकाराम, कबीर, रैदास तथा गोस्वामी तुलसीदास के बाद तक के तमाम संतों की चर्चा करते हुए कहा कि इन महापुरुषों ने आध्यात्मिक चेतना को बल देते हुए पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधा।

उन्होंने कहा, "भारत में परिवर्तन संतों के जन आन्दोलन का नतीजा है। देश के आध्यात्म और दर्शन के प्रति उनका अगाध प्रेम था। इसके लिए संतों ने 700 वषों की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इस आन्दोलन को थमने नहीं दिया। यह जनांदोलन भारत के कोने कोने में पहुंचा।"

उन्होंने कहा कि महात्मा बुद्घ के ज्ञान, करुणा भाव और अहिंसा के दर्शन को पूरी दुनिया में मान्यता मिली। आद्य शंकराचार्य ने उपनिषद की व्याख्या को नए रूप में प्रस्तुत कर पूरे देश में सनातन दर्शन की पुनस्र्थापना की। इसके बाद नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ के शिष्यों ने मुगल आक्रमण के समय देश के गांवों-गांवों में भैरवी गाते हुए सांस्कृतिक एकता की अलख जगाई।

डॉ. कृष्ण गोपाल के इस व्याख्यान को एक हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने लाइव देखा तथा खबर लिखे जाने तक 50 हजार से ज्यादा लोगों के द्वारा यह वीडियो देखा जा चुका है।


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