जनता की सुरक्षित यात्रा से बेपरवाह सत्ताधीश
मध्यप्रदेश में मंगलवार की सुबह साढ़े पांच बजे के लगभग खरगोन में एक भयंकर सड़क हादसा हुआ

मध्यप्रदेश में मंगलवार की सुबह साढ़े पांच बजे के लगभग खरगोन में एक भयंकर सड़क हादसा हुआ। खरगोन जिले के डोंगरगांव में यात्रियों से भरी बस एक पुल की रेलिंग तोड़ते हुए नीचे सूखी हुई नदी में जा गिरी। इस हादसे में 15 से अधिक लोगों की मौत की खबर है, जबकि कई लोग घायल हैं। राज्य के गृहमंत्री के मुताबिक इस घटना में मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए गए हैं। इस जांच के बाद ही दुर्घटना की सही वजह पता लगेगी।
शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने हादसे में मृतकों के परिजनों को 4 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल व्यक्तियों को 50 हजार रुपये और मामूली घायलों को 25 हजार रुपये बतौर मुआवजा देने का ऐलान किया है। अब गंभीर और मामूली घायलों को किस तरह अलग-अलग परिभाषित किया जाएगा, यह अलग सवाल है। वैसे इस बात पर किसी को शोध करना चाहिए कि एक साल में हमारी निर्वाचित सरकारें कितने लाख या करोड़ रूपए उन दुर्घटनाओं के लिए मुआवजे के तौर पर देती हैं, जिन्हें रोका जा सकता था।
प्राकृतिक हादसों पर तो किसी का जोर नहीं, लेकिन भगदड़, दीवार या छत गिरना, सड़क दुर्घटना, जहरीली शराब ये सब सरकार-प्रशासन निर्मित दुर्घटनाएं हैं, जिनके लिए सरकारों को दंडित किया जाना चाहिए, मगर सरकारें जनता की गाढ़ी कमाई को मुआवजे के तौर पर देकर एहसान जताती हैं। चुनावों के वक्त घोषणापत्रों में तमाम तरह के वादे किए जाते हैं, भाषणों में हिंदू-मुसलमान के नाम पर बेशर्मी से वोट मांगे जाते हैं, लेकिन कभी कोई ये वादा नहीं करता कि इस तरह के हादसों को रोकने की ईमानदार कोशिश की जाएगी। इसमें पूरा दोष सरकारों पर नहीं डाला जा सकता। जनता भी इस तरह के हादसों को अपनी नियति मान चुकी है। इसलिए वह सरकार से जवाब नहीं मांगती, केवल सड़कों-पुलों के शिलान्यास पर ताली बजाने के लिए भीड़ के रूप में जुट जाती है।
ऐसा एक दिन भी नहीं गुजरता जब देश में कहीं कोई सड़क दुर्घटना न हुई हो। किसी न किसी हिस्से में दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं। अगर एक-दो लोगों की जान जाए, तो उसे अब लोग सामान्य खबर की तरह लेने लगे हैं और अगर अधिक लोग हताहत हों, तो थोड़ा बहुत अफसोस पीड़ितों के लिए किया जाता है, लेकिन सरकार से जवाबदेही मांगने जैसी कोई पहल कहीं दिखाई नहीं देती। वैसे भी सड़क हादसों में मरने वाले अधिकतर गरीब, निम्न मध्यमवर्गीय लोग होते हैं, जिनका जिंदा रहना राजनैतिक दलों के लिए इसलिए जरूरी है कि उनसे उन्हें वोट मिल जाते हैं, इससे अधिक उनकी जिंदगी की उपयोगिता नहीं मानी जाती है। अभी 4 मई को अजमेर जा रहे श्रद्धालुओं की एक कार पर टैंकर पलट गया तो 8 लोगों की मौत हो गई। इसी दिन छत्तीसगढ़ में धमतरी के पास नेशनल हाइवे पर सड़क हादसे में 10 लोग मारे गए।
6 मई को लखनऊ- बहराइच मार्ग के पास कैसरगंज कस्बे में एक ऑटो को दूसरे वाहन की टक्कर से ऑटो सवार 6 लोगों की मौत हो गई। 7 मई को मुरादाबाद में दलपतपुर-काशीपुर हाइवे पर दो वाहनों की भिड़ंत में 10 लोग मारे गए। यानी पिछले पांच-छह दिनों में अलग-अलग राज्यों में कम से कम 50 लोग सड़क हादसों का शिकार हो गए। इनमें एक-दो मृतकों वाले हादसों को शामिल ही नहीं किया गया है, वर्ना आंकड़ा और बढ़ जाएगा। भारत विश्व की सड़क हादसों में होने वाली 11 प्रतिशत मौतों के साथ शीर्ष पर ऐसे ही नहीं आया है।
सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 'रोड एक्सीडेंट्स इन इंडिया 2021' में बताया गया है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर घंटे 18 लोगों की जान जा रही है और औसतन 44 लोग घायल हो रहे हैं। इन हादसों में मृतकों के 67 प्रतिशत लोग 18 से 45 आयु के हैं। यानी युवाओं की बड़ी संख्या सड़क हादसे का शिकार हो रही है। 2021 में देश में नेशनल हाइवे पर कुल 1,28,825 हादसे हुए थे। अब 2022 की रिपोर्ट आएगी, तब और पता चलेगा कि देश में सड़क हादसे कम हो रहे हैं या बढ़ रहे हैं। मौजूदा हालात देखकर अच्छी रिपोर्ट की उम्मीद कम ही है। सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय की वर्षांत समीक्षा 2022 में बताया गया है कि भारत में सड़कों का नेटवर्क लगभग 63.73 किमी है, जो दुनिया में सबसे विशाल है।
सरकार ने राजमार्ग विकास पर विशेष जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री ने 230,802 करोड़ रुपये से अधिक कीमत की परियोजनाओं का उद्घाटन/शिलान्यास किया है। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने हिट एंड रन यानी मार कर भाग जाने वाले अपराध में पीड़ितों के लिए मुआवजा भी बढ़ा दिया है। रिपोर्ट को पढ़ें तो लगेगा कि देश कितने चिकने, साफ-सुथरे रास्ते पर चलते हुए विकास की ओर बढ़ रहा है। सरकारें दावा भी तो ऐसा ही करती हैं। भारत के शहरों को शंघाई, टोक्यो, न्यूयार्क जैसा बना देने के कितने सपने लोगों को दिखाई गए हैं।
अभी इस साल की शुरुआत में ही मध्यप्रदेश में 6,800 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि वर्ष 2024 तक राज्य में जिस तरह की सड़कों का जाल विकसित किया जा रहा है वो अमेरिका की सड़कों से भी बेहतर होंगी। श्री गडकरी अगले साल तक अमेरिका जैसी सड़कों के ख्वाब दिखा रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री श्री चौहान ने तो 2018 में ही कह दिया था कि मध्य प्रदेश की सड़कें अमेरिका से कम नहीं हैं। अब जनता समझ ले कि अमेरिका के नाम पर किस तरह उसे मूर्ख बनाया जा रहा है।
वैसे जब शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश की सड़कों को अमेरिका से बेहतर बताया था, उसके कुछ दिनों बाद एक ट्वीट उन्होंने मिशन इंद्रधनुष के अंतर्गत शतप्रतिशत टीकाकरण के दावे का किया था और लिखा था कि छतरपुर के तीन गांवों तक सड़कें न होने से टीम 10 किमी पैदल, नाव से जंगल व अन्य बाधाओं को पार कर पहुंची। सरकारी दावों के सच-झूठ ऐसे बयानों से खुद ही उजागर हो जाते हैं। राजनैतिक दलों की प्राथमिकता अपने लिए सत्ता का सुरक्षित रास्ता तैयार करने में है, जनता की सुरक्षित यात्रा की परवाह सरकार को कितनी है, यह आए दिन होने वाली बड़ी दुर्घटनाओं से जाहिर हो रहा है।


