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दुआ के लिए उठते हाथ मांगते हैं गोलों की बरसात से निजात

पाक गोलाबारी से जीना मुहाल हुआ है जिन लोगों का उनके लिए स्थिति यह है कि खुदा की बंदगी में जब दुआ के लिए हाथ उठते हैं तो वे सुख-चैन या अपने लिए व्यक्तिगत रूप  से कुछ नहीं मांगते।

दुआ के लिए उठते हाथ मांगते हैं गोलों की बरसात से निजात
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--सुरेश एस डुग्गर--

जम्मू कश्मीर (एलओसी के सेक्टरों से )। पाक गोलाबारी से जीना मुहाल हुआ है जिन लोगों का उनके लिए स्थिति यह है कि खुदा की बंदगी में जब दुआ के लिए हाथ उठते हैं तो वे सुख-चैन या अपने लिए व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं मांगते। अगर वे कुछ मांगते भी हैं तो उस पाक गोलाबारी से राहत ही मांगते हैं जिसने इतने सालों से उनकी नींदें खराब कर रखी हैं और उन्हें घरों से बेघर कर दिया है।

1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद से सुख-चैन के दिन काटने वाले कश्मीर सीमा के लाखों नागरिकों के लिए स्थिति अब यह है कि न उन्हें दिन का पता है और न ही रात की खबर है। कब पाक तोपें आग उगलने लगेंगी कोई नहीं जानता। जिन्दगी थम सी गई है उनके लिए। सभी प्रकार के विकास कार्य रूक गए हैं। बच्चों का जीवन नष्ट होने लगा है क्योंकि जिस दिनचर्या में पढ़ाई-लिखाई कामकाज शामिल था अब वह बदल गई है और उसमें शामिल हो गया है पाक गोलाबारी से बचाव का कार्य।

इतना ही नहीं पांच वक्त की नमाज अदा करने वालों की दुआएं भी बदल गई हैं। पहले जहां वे अपनी दुआयों में खुदा से कुछ मांगा करते थे, सुख-चैन और अपनी तरक्की मगर अब इन दुआयों में मांगा जा रहा है कि पाक गोलाबारी से राहत दे दी जाए जो बिना किसी उकसावे के तो है ही बिना घोषणा के कश्मीर सीमा पर युद्ध की परिस्थितियां बनाए हुए है।

इन सीमावर्ती गांवों की स्थिति यह है कि जहां कभी दिन में लोग कामकाज में लिप्त रहते थे और रात को चैन की नींद सोते थे अब वहीं दिन में पेट भरने के लिए अनाज की तलाश होती है ता रातभर आसमान ताका जाता है। आसमान में वे उन चमकने वाले गोलों की तलाश करते हैं जो पाक सेना तोप के गोले दागने से पूर्व इसलिए छोड़ती है क्योंकि वह निशानों को स्पष्ट देख लेना चाहती है।

ऐसा भी नहीं है कि 814 किमी लम्बी कश्मीर सीमा से सटे क्षेत्रों में रहने वाले सीमावासी अपने घरों में रह रहे हों। वे जितना पाक गोलाबारी से घबरा कर खुले आसमान के नीचे मौत का शिकार होने को मजबूर हैं उतनी ही परेशानी उन्हें भारतीय पक्ष की जवाबी कार्रवाई से है। भारतीय पक्ष की जवाबी कार्रवाई से उन्हें परेशानी यह है कि जब वे बोफोर्स जैसी तोपों का इस्तेमाल करते हैं तो उनके मकानों में दरारें पड़ जाती हैं जो कभी कभी खतरनाक भी साबित होती हैं।

स्थिति यह है कि ये हजारों लोग न घर के हैं और न ही घाट के। पाक तोपों के भय के कारण वे घरों में नहीं जा पाते तो भयानक सर्दी उन्हें मजबूर कर रही है कि वे खतरा बन चुके घरों में लौट जाएं। आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति बन गई है इन लोगों के लिए जो खुदा से पाक गोलाबारी से राहत की दुआ और भीख तो मांग रहे हैं मगर वह उन्हें मिल नहीं पा रही है।

हालांकि सेना ने अपनी ओर से कुछ राहत पहुंचानी आरंभ की है इन हजारों लोगों को। लेकिन उसकी भी कुछ सीमाएं हैं। वह पहले से ही तिहरे मोर्चे पर जूझ रही है जिस कारण इनकी ओर पूरा ध्यान नहीं दे पा रही है। उसके लिए मजबूरी यह है कि उसे भी सीमा पर अघोषित युद्ध से निपटना पड़ रहा है जिसका जवाब वह युद्ध के समान नहीं दे सकती है।

फिर भी जो जवाब वह पाक सेना को दे रही है उसका परिणाम उन पाक नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है जो सीमा से सटे क्षेत्रों में रहते हैं। और इसके लिए भारतीय सेना अपने आप को नहीं बल्कि पाक सेना को ही दोषी ठहराती है जिसके कारण एलओसी पर ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई हैं।


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