Top
Begin typing your search above and press return to search.

महिला किसानों ने मांगे अधिकार

देश के अलग-अलग हिस्सों से महिला किसान प्रतिनिधियों ने राजधानी आकर खुद को किसान के रूप में मान्यता देने के साथ सरकार से किसानों वाले अधिकार दिए जाने की भी मांग की है

महिला किसानों ने मांगे अधिकार
X

नई दिल्ली। देश के अलग-अलग हिस्सों से महिला किसान प्रतिनिधियों ने राजधानी आकर खुद को किसान के रूप में मान्यता देने के साथ सरकार से किसानों वाले अधिकार दिए जाने की भी मांग की है। महिला प्रतिनिधियों ने ये भी मांग की कि महिलाओं को जमीन और संसाधनों पर व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर हक मिले। इसके अलावा किसानों के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं में बराबरी की हिस्सेदारी की भी मांग की है। किसानों ने तर्क रखा है कि यदि सरकार वास्तव में किसानों की आमदनी को दोगुनी करना चाहती है तो उसे महिला किसान संगठनों को वित्तीय मदद, प्रोत्साहन और कर में छूट जैसी सुविधाएं प्रदान करनी होंगी।

इन महिलाओं ने किसानों के जमीन पर स्वामित्व के मानकों व किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2007 के मुताबिक जमीन के स्वामित्व के परिभाषा के अनुपालन नहीं होने पर भी सवाल उठाए हैं ये महिला किसान दिल्ली में राष्ट्रीय विमर्श के तहत विभिन्न सरकारी मंत्रालय और एजेंसियों के सामने अपनी बात रख रही थीं। महिला किसानों के अधिकारों पर इस राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन राष्ट्रीय महिला आयोग, महिला किसान अधिकार मंच और यूएन वीमेन की ओर से किया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन ललिता कुमारमंगलम ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के नाम खेती की जमीन और जमीन के रिकॉर्ड में होने चाहिए और महिलाओं को किसान के तौर पर मान्यता मिले तभी उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पाएगा।

उन्होंने कहा कि खेती किसानी में महिलाओं की भूमिका को मान्यता मिलनी चाहिए और उसे मदद भी मिलनी चाहिए। इस बैठक में महिला किसान प्रतिनिधियों और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच बातचीत हुई ताकि महिला प्रतिनिधियों की आवाज़ को सुना जाए और उनकी समस्याओं के मुताबिक सरकार काम कर सके। तमिलनाडु की अमृतमदुराई ने महिला किसानों की समस्या के बारे में कहा कि खेती किसानी में महिलाएं हर क्षेत्र और हर फसल में अपना योगदान देती है, लेकिन उन्हें किसान नहीं माना जाता।

महिला किसान अधिकार मंच की सदस्य सेजल ढांड ने कहा कि भूमिहीन दलित के घर का मामला हो तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को जमीन देने के लिए सार्वजनिक नीति का भी अभाव हैण् सार्वजनिक संपत्ति के संसाधन से महिलाओं की आजीविका मिल सकती हैए लेकिन उसे भी छिना जा रहा है। सुनीता ने महिला किसानों के सामूहिक उत्पाद में नए आयकर प्रावधानों और जीएसटी के चलते मुनाफ़ा कम हो रहा है, जैम और आचार के साथ ऊन के उत्पाद भी बनाते हैं, लेकिन हमें कर में कोई छूट नहीं मिलती है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it