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निताशा कौल को लौटाना लोकतंत्र विरोधी आचरण

यूनाइटेड किंगडम की भारतीय मूल की प्रोफेसर निताशा कौल को जबरिया उनके देश लौटाकर एक बार फिर से भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि यहां लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों की बात करने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा

निताशा कौल को लौटाना लोकतंत्र विरोधी आचरण
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यूनाइटेड किंगडम की भारतीय मूल की प्रोफेसर निताशा कौल को जबरिया उनके देश लौटाकर एक बार फिर से भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि यहां लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों की बात करने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। निताशा कर्नाटक सरकार की ओर से आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने के लिये सम्मानित वक्ता के रूप में आमंत्रित की गई थीं परन्तु उन्हें बेंगलुरु हवाईअड्डे से वापस लंदन भेज दिया गया। वहां के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में अध्यापन करने वाली निताशा 24-25 को कर्नाटक सरकार द्वारा 'संविधान व राष्र्ट्रीय एकता' सम्मेलन में भाग लेने के लिये आई थीं। वे कश्मीर के मामलों में अपने बेबाक विचारों के लिये जानी जाती हैं। वे नरेंद्र मोदी सरकार की कश्मीर मामले में नीतियों की विरोधी के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने का तो विरोध किया ही था, 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म पर भी सरकार की आलोचना की थी।

वैसे तो उन्हें वापस भेजने का कोई स्पष्ट कारण भारत सरकार की ओर से नहीं बतलाया गया है लेकिन स्पष्ट है कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी, भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विरोधी होने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। फिर, यह कार्यक्रम कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की ओर से आयोजित किया गया था, सो मोदी सरकार द्वारा ऐसा करना लाजिमी ही था। अपने एक्स हैंडल पर निताशा ने इस बाबत लिखी पोस्ट में बतलाया है कि उन्हें कर्नाटक सरकार ने आमंत्रित किया था। उनके यात्रा सम्बन्धी सभी दस्तावेज़ सही थे तो भी उन्हें आव्रजन अधिकारियों की ओर से बेंगलुरु एयरपोर्ट पर हिरासत में रखा गया। उन्हें रोके जाने का किसी ने कोई कारण नहीं बताया। अधिकारी केवल यही कहते रहे कि 'वे कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें दिल्ली से ऐसा करने के आदेश मिले हैं।' निताशा का यह भी आरोप है कि उन्हें सोने के लिये तकिया तक नहीं दिया गया और उन्हें अखबारों को ही तकिया बनाकर सोना पड़ा था। खाने-पीने तक नहीं दिया गया। वे यह भी कहती हैं कि उन्हें न आने के लिये केन्द्र सरकार की ओर से कोई आदेश भी नहीं मिला। शुक्रवार को सुबह वे बेंगलुरु हवाईअड्डे पर उतरीं और शनिवार की सुबह वापस लंदन भेज दी गईं।

राजनीति शास्त्र एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों की प्रोफेसर निताशा का जन्म गोरखपुर में हुआ था। वे एक ऐसे कश्मीरी पंडित के घर में जन्मी थीं जो घाटी छोड़कर आया था। उन्होंने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से अर्थशास्त्र में स्नातक एवं दिल्ली विवि से उच्च शिक्षा हासिल की है। 1997 में 21 वर्ष की आयु में वे इंग्लैंड चली गयीं। वहां के हल विवि से अर्थशास्त्र व दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट करने के बाद वे वेस्टमिंस्टर विवि में पढ़ाने लगीं। भारत में राष्ट्रवाद, लैंगिक असमानता तथा नागरिक अधिकारों आदि से सम्बन्धित विषयों पर उनके विचार सुर्खियों में आये थे। भाजपा व संघ के विचारों के खिलाफ वे बोलतीं तथा लिखती रहती हैं। वे एक उपन्यासकार तथा कवयित्री के रूप में भी पहचान रखती हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक उनके खिलाफ कई तरह के आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने निताशा को भारत विरोधी बतलाते हुए कहा है कि वे कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार की बात से इंकार करती हैं और कश्मीर पर भारत द्वारा कब्जा किया जाना बतलाती हैं।

आरोप-प्रत्यारोपों को दरकिनार कर दिया जाये तो भी लोकतंत्र का तकाज़ा तो यही होता है कि उन्हें अपनी बात कहने का अवसर दिया जाता। उन्हें इस प्रकार से वापस भेज दिया जाना एक लोकतांत्रिक देश होने का दावा करने वाली सरकार के लिये शोभनीय नहीं कहा जा सकता। यह वाकया ऐसे वक्त पर हुआ है जब एक बार फिर से राहुल गांधी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपना व्याख्यान देने पहुंच चुके हैं। पिछले वर्ष जब वे इसी विश्वविद्यालय एवं अमेरिका के शिक्षण संस्थानों में गये थे तब उन्होंने यही आरोप लगाये थे कि मोदी सरकार द्वारा विरोधी विचारों का गला घोंटा जाता है। निताशा को वापस भेजकर सरकार उनके इन आरोपों की पुष्टि ही कर रही है। वे जिस देश से आई हैं, उसके समेत तमाम पाश्चात्य देशों में मुक्त संवाद की परम्परा है। अपने घोर विरोधियों को तक धैर्यपूर्वक सुनने का उन देशों में चलन है। मोदी सरकार का आचरण इसके विपरीत है जो अक्सर वहां के पत्रकारों की रिपोर्टों एवं लेखों में प्रतिध्वनित होता है। यह भी होता है कि ऐसी खबरें आने पर बौखलाई केन्द्र सरकार, उसका आईटी सेल एवं भाजपा के समर्थक यह कहकर टूट पड़ते हैं कि मोदी की लोकप्रियता एवं भारत की तरक्की से घबराए हुए ये देश दुष्प्रचार कर रहे हैं। वे इसे भारत पर पश्चिमी देशों का हमला बतलाने से तक नहीं चूकते।

निताशा के साथ जो व्यवहार हुआ है, उसका संदेश खराब जायेगा। चूंकि वे एक सक्रिय तथा प्रसिद्ध लेखिका और अध्यापक हैं,, वे लोगों से यह कहने में बिलकुल पीछे नहीं हटेंगी कि जो वे कहती रही हैं, उन्होंने भारत सरकार का व्यवहार ठीक वैसा ही पाया है। इस घटना को उसी कड़ी में देखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी भारत को चाहे 'लोकतंत्र की जननी' कहते हों परन्तु वे खुद एवं उनकी सरकार का आचरण घोर लोकतंत्र विरोधी होता है। इसलिए वे आलोचना को देश पर हमला बतलाते हैं। नरेन्द्र मोदी स्वयं भी उनकी आलोचना को गालियां समझते हैं। नरेन्द्र मोदी एवं केन्द्र सरकार को अपने खिलाफ कही गई बातों व आरोपों के तार्किक जवाब देने चाहिये। निताशा को यूं भेजकर उन्होंने लोकतंत्र विरोधी होने का सबूत दिया है।


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