प्रतिबंधित प्लास्टिक का उपयोग बदस्तूर जारी
पर्यावरण संरक्षण के लिए पालीथिन के बाद अब डिस्पोजल को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है
पर्यावरण संरक्षण मंडल ने लगाया है डिस्पोजल के उपयोग पर प्रतिबंध
जांजगीर। पर्यावरण संरक्षण के लिए पालीथिन के बाद अब डिस्पोजल को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध का आदेश दिया है लेकिन जिले में इसे लेकर स्थानीय प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहा। कार्रवाई होना तो दूर अब तक जांच के लिए टीम भी नहीं बन सकी है। बाजार में बेधड़क डिस्पोजल सामग्री बिक रही है और उपयोग भी पहले की ही तरह हो रहा है। दूसरी ओर पालीथिन भी अब फिर से चलन में आ गया है। पाली बैग पर तीन साल पहले जब प्रतिबंध लगा तक दुकानों की जांच कर जब्ती की कार्रवाई की गई थी। अब जब डिस्पोजल पर प्रतिबंध लगा है तब ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा। डिस्पोजल गिलास और प्लेट बाजार में खूब बिक रहे हैं। सार्वजनिक समारोह के साथ ही होटल और खोमचों में डिस्पोजल पात्र का उपयोग हो रहा है। जिले में डिस्पोजल पर प्रतिबंध का कोई असर नजर ही नहीं आ रहा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पखवाडेभर पहले नगरीय प्रशासन विभाग का सर्कुलर आ चुका है। लेकिन जांच होना तो दूर अभी तक जिम्मेदार अधिकारियों ने जांच के लिए टीम तक नहीं बनाई है। डिस्पोजल पात्र और पालीथिन एक ओर जहां पर्यावरण के लिए घातक हैं वहीं इससे मानव शरीर को भी नुकसान है। इसी के मद्देजर इनको प्रतिबंधित किया गया है, लेकिन अपने थोडे से फायदे के लिए लोग भविष्य में आने वाली परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए इनका मोह नहीं छोड़ पा रहे। जिन अधिकारियों पर प्रतिबंध को कड़ाई से लागू कराने का दारोमदार है वे भी अन्य कामों की व्यस्तता का हवाला देते नजर आ रहे हैं।
अपघटित होने में लगते है 500 वर्ष
प्लास्टिक बैग्स का डिस्पोजल एक अन्य समस्या है, क्योंकि उनकी रिसाइक्लिंग आसानी से संभव नहीं है। इनको जलाया जाए तो जहरीली गैस निकलती है। फिर भी भारत में रद्दी प्लास्टिक या तो जला देते हैं या जमीन में गाड़ देते हैं। जमीन के अंदर गाड़ देना प्लास्टिक नष्ट करने का आदर्श और उचित ढंग नहीं है, क्योंकि एक तो जमीन भी कम है दूसरे यह प्राकृतिक ढंग से अपघटित नहीं होता है। इसको अपघटित होने में 500 वर्ष लग जाते हैं। साथ ही यह मिट्टी को प्रदूषित करती है और सतही जल को बेकार कर देती है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कचरा प्लास्टिक तकनीक का विकास किया जा रहा है।
पालीथिन पर प्रतिबंध भी अब बेअसर
पालीथिन बैग पर लगे प्रतिबंध को भी समय के साथ लोग अब भूलते जा रहे हैं।
पाली बैग पर जनवरी 2015 में प्रतिबंध लगा था। तब प्रशासन ने सख्ती से कार्रवाई भी की। जिलेभर में टीम बनाकर दुकानों की जांच करते हुए बड़ी तादात में पालीथिन जब्ती की कार्रवाई की गई। सालभर तो पालीथिन पर प्रतिबंध का व्यापक असर दिखा, लेकिन समय के साथ अब ये भी बेअसर होता दिख रहा है। अब हर ओर पालीथिन बैग फिर से नजर आने लगा है। दुकानों में सामान पाली बैग में दिए जा रहे हैं। समय- समय पर कार्रवाई नहीं होने के कारण पालीथिन बैग एक बार फिर से चलन में आ चुका है।
पर्यावरण के साथ सेहत को है नुकसान
डिस्पोजल पात्र भी प्लास्टिक से ही बनते हैं जो पर्यावरण के साथ ही मानव के सेहत के लिए भी खतरनाक हैं। डिस्पोजल कप, गिलास और प्लेट में अक्सर गर्म चाय और खाद्य सामग्री परोसी जाती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उपयोग के बाद डिस्पोजल सामग्री को कचरे में फेंक दिया जाता है जो गलता ही नहीं और यह पर्यावरण के लिए घातक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए डिस्पोजल पर प्रतिबंध लगाया गया है। लेकिन आम लोग भी अपनी सेहत और पर्यावरण के प्रति गंभीर नहीं हैं। यही कारण है कि प्रतिबंध के बाद भी इसका बेधड़क उपयोग हो रहा है।
काम की है व्यस्तता: कोसरिया
इस संबंध में मुख्य नगर पालिका अधिकारी दिनेश कोसरिया का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने डिस्पोजल पर प्रतिबंध का आदेश जारी किया है और सप्ताह भर पहले नगरीय प्रशासन विभाग का सर्कुलर भी आ गया है। पालीथिन बैग पर तो वर्ष 2015 में ही प्रतिबंध लग चुका है। अन्य कामों की भी व्यस्तता है ऐसे में नियमित कार्रवाई नहीं हो पा रही है। जिला प्रशासन से सहयोग लेकर अभियान चलाकर कार्रवाई की जावेगी।


