शोध बताते हैं...दलितकर्मी बढ़ाते हैं उत्पादकता, इसलिए निजी क्षेत्र में हो आरक्षण : उदित राज
''आरक्षण को विकास का अवरोध मानना गलत है, मद्रास में आरक्षण 1921 में, मैसूर और त्रिवान्कोर में 1935 और कोल्हापुर रियासत में 1902 में लागू हुआ

नई दिल्ली। ''आरक्षण को विकास का अवरोध मानना गलत है, मद्रास में आरक्षण 1921 में, मैसूर और त्रिवान्कोर में 1935 और कोल्हापुर रियासत में 1902 में लागू हुआ। ये राज्य उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में विकास के कई सूचकांक में आगे हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि तथाकथित सवर्ण भाई और बहन विचार करें कि हम भी उन्ही के समाज का हिस्सा हैं। जैसे अश्वेतों के साथ अमेरिका में गोरों ने किया और इनकी विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी से देश प्रगति करेगा यह कभी नहीं संभव है कि लगभग 20प्रतिशत आबादी की खरीद शक्ति के बल पर उत्पादन और मांग को बढ़ाया जा सकता है।’’यह विचार भाजपा सांसद व दलित नेता डा. उदित राज ने विशाल रैली में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि इन लोगों को आरक्षण दिया जाता है तो आय बढ़ेगी और क्रय शक्ति, जब वस्तु और सेवा कीमांग बढ़ेगी तब कुल घरेलू सकल में उछाल आएगा और व्यापारियों को भी फायदे होंगे। जो मेरिट की मिथ्या है कि आरक्षण से निकम्मापन का जन्म होता है वह गलत है।
डा. उदित राज ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अश्वनी देश पाण्डेय ने अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर एक शोध किया कि आरक्षण से सरकार में क्या असर पड़ता है तो पाया कि प्रतिकूल तो कतई नहीं लेकिन जहां दलित, आदिवासी कर्मचारी ज्यादा थे वहां उत्पादकता में वृद्घि हुई। इस परिपेक्ष्य में यह उचित है कि निजी क्षेत्र में आरक्षण दिया जाए।
सांसद डा. उदित राज ने कहा कि मैंने संसद में निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए प्राइवेट मेम्बर बिल पेश किया है और सरकार से अनुरोध है कि उसे सरकारी बिल में परिवर्तित करके कानून बनाया जाये ताकि निजी क्षेत्र में आरक्षण दिया जा सके। अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा के संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने आज दिल्ली के रामलीला मैदान में आरक्षण बचाओ महारैली का आयोजन किया और रैली में दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, केरल, कर्नाटक, पंजाब और राजस्थान आदि से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों ने भारी तादाद में शिरकत की।


