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इंद्रावती बाघ राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में आदिवासी परिवहन के लिए केवल बैलगाड़ियों पर निर्भर

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में अतिसंवेदनशील इलाके इंद्रावती बाघ राष्टीय उद्यान क्षेत्र में बसे 33 गांवों के आदिवासी आज भी बैलगाड़ी का उपयोग करते हैं

इंद्रावती बाघ राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में आदिवासी परिवहन के लिए केवल बैलगाड़ियों पर निर्भर
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बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में अतिसंवेदनशील इलाके इंद्रावती बाघ राष्टीय उद्यान क्षेत्र में बसे 33 गांवों के आदिवासी आज भी बैलगाड़ी का उपयोग करते हैं और इन बैलगाड़ियों पर बाकायदा मोटर कार के अनुसार नम्बर प्लेट भी लगी हुई हैं।

छोटेकाकलेर गांव के प्रमुख येलादी सुरैया ने बताया कि बीते तीस वर्षों से सरकारी उपेक्षा के चलते देश-प्रदेश से अलग-थलग पड़े इस इलाके के 33 गांवों की कुल करीब साढ़े पांच हजार की आबादी आज भी परिवहन के लिए बैलगाड़ियों पर ही निर्भर है। इन गांवों में हर घर में बैलगाड़ी नहीं है। ऐसे में सफर करना हो, अनाज ढुलवाना या अन्य कोई जरूरी काम करना हो तो किराए पर बैलगाड़ी लेना ही एकमात्र साधन है। धार्मिक अथवा पारिवारिक आयोजनों के लिए भी बैलगाड़ी किराए पर लेनी पड़ती है।

श्री सुरैया एक बैलगाड़ी के मालिक हैं। यूनीवार्ता संवाददाता को ग्राम पिल्लूर से सेंडरा जाने के दौरान रास्ते के एक गांव में बैलगाड़ी और उसके मालिक मिले। गाड़ी पर दो मुसाफिर भी सवार थे। गाड़ी के पिछले हिस्से पर मालिक का नाम और नंबर लिखा हुआ था। पूछने पर गाड़ी हांक रहे सुरैया के अलावा उस पर सवार ग्रामीणों ने बताया कि रिश्तेदारियों से लेकर राशन लाने तक के लिए उन्हें लंबा सफर तय करना होता है। ऐसे में दुर्गम इलाकों में जाने के लिए बैलगाड़ी ही साधन है। इसीलिए सभी गांवों में बैलगाड़ियां हैं।

इससे भी खास बात यह कि परिवहन एक्ट की तरह इन बैलगाड़ियों के पीछे बाकायदा नंबर प्लेट लगी होती है, जिसमें उसके मालिक का नाम, गांव और बैलगाड़ी नंबर लिखा होता है। दरअसल, वक्त जरूरत पर किसी व्यक्ति को बैलगाड़ी की सुविधा चाहिए तो वह उसके मालिक से आसानी से संपर्क कर सकें। इसलिए यह व्यवस्था बनाई गई है। संभवत देश में अपनी तरह की यह इकलौती व्यवस्था होगी।

जिला मुख्यालय से लगभग 125 किलोमीटर दूर इंद्रावती नेशनल पार्क के अंतर्गत आने वाले सेंडरा, पिल्लूर समेत चार पंचायतों के 33 गांवों में यह व्यवस्था है। विकास की चकाचैंध से दूर इस इलाके में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। बैलगाड़ी के लिए मालिक को ढूंढना हो तो काफी मुश्किल हो सकता है।ऐसे में नाम, पता और गांव में गाड़ियों की मौजूदा संख्या से यह परेशानी हल हो जाती है। आज जब दुनिया तेजी से भाग रही है, यहां की व्यवस्था चैंका देती है।


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