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कंडोम के गरबा वाले विज्ञापन से 'धार्मिक भावनाएं' आहत नहीं होतीं : एमपी हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर के एक फार्मासिस्ट के खिलाफ कथित तौर पर हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है

कंडोम के गरबा वाले विज्ञापन से धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं : एमपी हाईकोर्ट
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भोपाल। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर के एक फार्मासिस्ट के खिलाफ कथित तौर पर हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है, जिसमें कंडोम के विज्ञापन में एक जोड़े को पारंपरिक 'गरबा' करते दिखाया गया था। पिछले हफ्ते इस मामले की सुनवाई करते हुए, उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने फैसला सुनाया कि, पारंपरिक गुजराती नृत्य 'गरबा' कर रहे जोड़े वाले कंडोम के विज्ञापन को अश्लीलता नहीं माना जाएगा। यह भी कहा गया कि फार्मासिस्ट ने सोशल मीडिया पर अपने पेशे और अपने धर्म की पहचान का खुलासा करते हुए पोस्ट किया।

न्यायमूर्ति सत्येंद्र कुमार सिंह ने 19 दिसंबर को दिए गए फैसले में पूरे मामले की जांच करने के बाद कहा कि पोस्ट किसी उत्पाद को बढ़ावा देने के इरादे से किया गया था और किसी विशेष समुदाय की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं किया गया था। उन्होंने इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया कि विज्ञापन अश्लील था।

पीठ ने फैसला सुनाया- आवेदक इंदौर में एक फामेर्सी पेशेवर है। चूंकि उक्त पोस्ट के अलावा रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है जो उसके इस तरह के इरादे (धार्मिक भावनाओं को आहत करने) को इंगित करता है, इसलिए, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि वह स्वयं हिंदू समुदाय से संबंधित है, और यह तथ्य भी कि उन्होंने अपनी पहचान छुपाए बिना अपने मोबाइल नंबर से इसे पोस्ट किया, ऐसा प्रतीत होता है कि उनका इरादा सिर्फ अपनी कंपनी के उत्पाद को बढ़ावा देना था और किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था।

महेंद्र त्रिपाठी ने 18 अक्टूबर को नवरात्रि के त्योहारों के दौरान 'मुफ्त कंडोम और जोड़ों के लिए गर्भावस्था परीक्षण किट' के लिए विज्ञापन पोस्ट किया था। उसने गरबा नृत्य कर रहे एक जोड़े की तस्वीर का इस्तेमाल किया था और उक्त विज्ञापन को व्हाट्सएप ग्रुपों और फेसबुक पर पोस्ट किया था। इसके बाद, उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 505 (सार्वजनिक शरारत) और 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा- कथित पोस्ट को देखने पर, यह स्पष्ट है कि इसकी सामग्री अश्लील नहीं है, उपरोक्त के मद्देनजर, अभियोजन पक्ष को मामले को जारी रखने की अनुमति देने से अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, इसलिए कार्यवाही को रद्द करना आवश्यक है।


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