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मज़हब अलग-अलग संस्कृतियों एवं सभ्यताओं को जोड़ता है: जॉर्डन किंग

 जॉर्डन के सुल्तान अब्दुल्ला द्वितीय बिन अल हुसैन ने आतंकवाद के खिलाफ जारी विश्वव्यापी संघर्ष को केवल नफ़रत और कट्टरवाद फैलाने वाली ताकतों के विरुद्ध लड़ाई करार देते हुये आज कहा कि हमारी युवा पीढ़ी

मज़हब अलग-अलग संस्कृतियों एवं सभ्यताओं को जोड़ता है: जॉर्डन किंग
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नयी दिल्ली। जॉर्डन के सुल्तान अब्दुल्ला द्वितीय बिन अल हुसैन ने आतंकवाद के खिलाफ जारी विश्वव्यापी संघर्ष को केवल नफ़रत और कट्टरवाद फैलाने वाली ताकतों के विरुद्ध लड़ाई करार देते हुये आज कहा कि हमारी युवा पीढ़ी को इंटरनेट पर घृणा को बढ़ावा देने वाले प्रचार से बचाने की जरूरत है।





इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रथम परिवार के 41वीं पीढ़ी के वंशज शाह अब्दुल्ला ने यहां विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में ‘इस्लामिक विरासत : सद्भावना एवं उदारत’ विषय पर अपने व्याख्यान में भारत के वसुधैव कुटुम्बकम् के मंत्र की सराहना की और कहा कि जो लोग मज़हब को नहीं जानते, वही नफरत फैलाते हैं, टकराव पैदा करते हैं तथा आतंकवाद के रास्ते को बढ़ावा देते हैं।





उन्होंने कहा कि हम सबको दुनिया के सामने खड़े इस खतरे को बहुत गंभीरता से लेना होगा और मज़हब काे समझना होगा। इस्लाम की शिक्षाओं को समझना जरूरी है। उसमें लिखा है कि पड़ाेसी से प्रेम करना चाहिए। उन्होंने मज़हब के बहाने टकराव के रास्ते को बढ़ावा देने वालों पर कड़ा प्रहार करते हुये कहा कि मज़हब अलग-अलग संस्कृतियों एवं सभ्यताओं को जोड़ता है। यह मानवीय विविधता का पोषक है। खुदा की निगाह में सबका महत्व है और यही साझी मानवीय विरासत हमारा मजहब है।




जॉर्डन के शाह ने कहा कि पूरी दुनिया में 1.8 अरब मुसलमान हैं जो समूची मानव जाति का एक चौथाई हैं। यह सहिष्णुता पर आधारित मज़हब है जो मोहम्मद के संदेश को लेकर आगे बढ़ा है कि अन्य लोगों के प्रति दयालु एवं कृपालु बनो। मुसलमान का फर्ज है कि जिनकी सुरक्षा कोई न करे, वे उसकी सुरक्षा करें। किसी अनजान व्यक्ति को उसी प्रकार से पनाह दे, जैसे किसी अपने को कठिनाइयों में दी जाती है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम विश्व में संवाद एवं शांति का संदेश फैलाने के लिए है। हमारा संकल्प होना चाहिए कि हम हर किसी के लिए सर्वसमावेशी अौर सद्भावपूर्ण बने चाहे वे हिन्दू हों या कोई और। उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम् एक बहुत बुद्धिमानी भरी बात है और इस्लाम के मूल्यों के अनुरूप है।


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