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परीक्षा न दे पाने वाली गर्भवती महिला को सुप्रीम कोर्ट से राहत

सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार पुलिस में भर्ती के लिए शारीरिक जांच परीक्षा  में शामिल होने की मांग करने वाली गर्भवती महिला को राहत दी है।

परीक्षा न दे पाने वाली गर्भवती महिला को सुप्रीम कोर्ट से राहत
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नई दिल्ली । सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार पुलिस में भर्ती के लिए शारीरिक जांच परीक्षा में शामिल होने की मांग करने वाली गर्भवती महिला को राहत दी है। महिला अपनी गर्भावस्था के चलते परीक्षा में शामिल नहीं हो सकी थी। अदालत ने बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग को उन महिलाओं की भी शारीरिक जांच परीक्षा आयोजित करने की मांग की, जो इसी वजह से परीक्षा में शामिल नहीं हो सकी थीं।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि महिला उम्मीदवारों को गर्भावस्था की वजह से असुविधा नहीं होनी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा, "महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को देखते हुए पुलिस बल में महिला सदस्यों की उपस्थिति आज के समय की जरूरत है।"

उन्होंने कहा, "इसलिए हम यह महसूस करते हैं कि पुलिस सेवा में महिलाओं की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए।"

अदालत ने यह आदेश खुशबू शर्मा की याचिका पर दिया, जो साल 2018 में गर्भावस्था के चलते बिहार पुलिस शारीरिक मूल्यांकन परीक्षा में शामिल नहीं हो पाई थीं। खुशबू मार्च, 2018 में प्रारंभिक परीक्षा और उसके बाद 22 जुलाई, 2018 को आयोजित मुख्य परीक्षा में शामिल हुई थीं और सफल भी हुई थीं।

परीक्षा का तीसरा चरण- शारीरिक मूल्यांकन परीक्षा (पीईटी) था, जो 25 सितंबर 2018 के लिए प्रस्तावित था।

महिला की संभावित प्रसव तिथि अक्टूबर, 2018 की थी, इसलिए गर्भावस्था के एडवांस्ड स्टेज में होने और डॉक्टर द्वारा पूरी तरह से आराम करने की सलाह की चलते उन्होंने शारीरिक परीक्षा में शामिल होने के लिए तीन से छह माह का समय मांगा।

मांग की अनदेखी होने के बाद, उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख किया।

अदालत ने खुशबू की याचिका का समर्थन करते हुए यह भी कहा कि केवल इसी मामले में नहीं, बल्कि जो महिलाएं गर्भावस्था के चलते शारीरिक परीक्षा में शामिल नहीं हो पाई थीं, उन्हें शारीरिक परीक्षा के लिए बुलाया जाना चाहिए।

अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि दोनों चरणों की परीक्षा पास करने वाली महिलाओं को इस वर्ष की विज्ञापित रिक्तियों में 'एडजस्ट' किया जाएगा। अदालत ने कहा कि महिलाओं ने साल 2018 की रिक्तियों के बाबत चुनौती दी थी, जो पहले ही पूरी हो चुकी है।

अदालत ने यह भी कहा कि प्रक्रिया दो माह के अंदर पूरी हो जानी चाहिए।

अदालत ने हालांकि स्पष्ट करते हुए कहा कि यह एक बार उठाया गया कदम है और हम 'आगामी परीक्षाओं की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए 'फ्लड गेट' खोलने के इच्छुक नहीं हैं।'


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