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पुरकायस्थ की रिहाई : आज़ाद खयाली को राहत

प्रसिद्ध न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक के संस्थापक व प्रधान सम्पादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और रिमांड को अमान्य करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तुरन्त जमानत पर रिहा करने के आदेश दिये हैं

पुरकायस्थ की रिहाई : आज़ाद खयाली को राहत
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प्रसिद्ध न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक के संस्थापक व प्रधान सम्पादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और रिमांड को अमान्य करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तुरन्त जमानत पर रिहा करने के आदेश दिये हैं। उन्हें पिछले साल 3 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम- यूएपीए के अंतर्गत गिरफ्तार किया था। उन्हें चीन की ओर से दुष्प्रचार करने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया गया था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का आरोप है कि पुरकायस्थ एवं न्यूज़क्लिक के मानव संसाधन प्रमुख अमित चक्रवर्ती ने देश की सम्प्रभुता को बाधित करने एवं देश के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिये चीन से वित्तीय सहायता प्राप्त की थी, जिसे 'टेरर फंडिंग' कहा जाता है। पुलिस के मुताबिक भारत की चुनावी प्रक्रिया में दखलंदाजी के उद्देश्य से न्यूज़क्लिक ने पीपुल्स एलायंस फॉर डेमोक्रेसी एंड सेक्यूलरिज्म के साथ मिलकर कथित रूप से साजिश की थी। इस आरोप में इन दोनों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने इस मामले में 9000 पृष्ठों का आरोप पत्र एवं कई उपकरण साक्ष्य के रूप में पेश किये थे, जिनमें मोबाइल, कम्प्यूटर आदि शामिल थे। उल्लेखनीय है कि अमित चक्रवर्ती इस वर्ष की जनवरी में सरकारी गवाह बन गये थे जिसके कारण उन्हें 6 मई को जमानत मिल चुकी है। न्यूज़क्लिक की ख्याति व्यवस्था के खिलाफ मुखर होकर खबरें देने वाले पोर्टल की है।

जस्टिस बीआर गवई एवं जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश देते हुए कहा साफ किया कि पुरकायस्थ की गिरफ्तारी के पीछे के आरोप आधारहीन व अमान्य हैं क्योंकि गिरफ्तारी के समय उन्हें इस का आधार नहीं बताया गया था। वैसे इस मामले में दिल्ली पुलिस दोनों के खिलाफ आरोप पत्र दायर कर चुकी है इसलिये पुरकायस्थ की रिहाई ट्रायल कोर्ट के जमानत नियमों के तहत हुई। उन्हें जमानत बॉन्ड भरने के लिये कहा गया है। उनके वकील अर्शदीप खुराना ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी देते हुए कहा कि वे पहले से कहते आये हैं कि यह गिरफ्तारी अवैध है।

पुरकायस्थ की रिहाई उन सभी लोगों एवं संगठनों के लिये राहत की बात है जो स्वतंत्र विचारों एवं अभिव्यक्ति की आजादी में भरोसा करते हैं। इनमें अनेक विचारक, लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वैसे तो यूएपीए का यह कानून 1967 में अस्तित्व में आया था जो केन्द्र सरकार को कठोर शक्तियां प्रदान करता है। इसमें 2008 में एक संशोधन लाकर यह नियम बनाया गया कि अगर मामला प्रथम दृष्टया सत्य महसूस होता है तो आरोपी को जमानत देने से इंकार किया जा सकता है। 2019 में केन्द्र सरकार ने इसमें एक और महत्वपूर्ण संशोधन लाकर इसे अधिक कठोर बना दिया है। इस कानून का इसलिये मानवाधिकार संगठन विरोध करते रहे हैं क्योंकि यह लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करता है। किसी के भी वक्तव्यों या कामों को देशविरोधी अथवा उकसाने वाली कार्रवाई बतलाकर उसकी गिरफ्तारी आसान है। जमानत मिलनी कठिन है जो न्याय के अधिकार का भी हनन है। इसका इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों से सम्बन्धित लोगों के खिलाफ भी किया जाता है। इतना ही नहीं, संगठनों के अलावा व्यक्तियों पर भी यूएपीए लागू करने का नियम बनाया गया। अभियोजन के मानकों का इसमें अभाव होने के कारण इसके दुरुपयोग की गुंजाइश बहुत ज्यादा है; और वह जमकर हो भी रहा है। पीयूसीएल ने वर्ष 2022 में एक रिपोर्ट पेश की थी जिसके अनुसार इस नियम की सफलता की दर बहुत कम है। इसमें बताया गया था कि 2016 से 2020 के बीच हुई गिरफ्तारियों में 3 प्रतिशत से भी कम को सज़ा मिली थी।

मौजूदा सरकार द्वारा यूएपीए का दुरुपयोग करने की भरपूर शिकायतें मिलती रही हैं। आजाद खयाल लोगों एवं संगठनों ने इस आधार पर भी इस कानून का विरोध किया है क्योंकि इसके जरिये सरकार अपने विरोधियों व आलोचकों की आवाज़ दबाती है। बड़ी संख्या में वकील, नेता, लेखक-पत्रकार, सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता इसके तहत गिरफ्तार किये गये हैं। कई तो लम्बे समय से जमानत पाने के लिये संघर्षरत हैं। यह भी पाया गया है कि सरकार या सरकार में बैठे लोगों के विरूद्ध बोलने या पृथक विचार रखने वालों को लम्बे समय तक जेल की सलाखों के पीछे सड़ाया जाता है। जमानत आसानी से मिलती नहीं और फैसले भी खूब लम्बे खिंचते हैं। बरी होने के पहले आरोपी अपना लम्बा समय जेलों में बिता देते हैं। सरकार में बैठे किसी व्यक्ति के खिलाफ बोलने को भी देशविरोधी गतिविधि या कार्रवाई बतलाकर आधारहीन व गैरकानूनी तरीके से लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।

पिछले दस वर्षों में भारतीय जनता पार्टी सरकार के शासनकाल में गिरफ्तारियों की संख्या बढ़ी है। आरोप है कि अपने आलोचकों को वह इस कानून के अंतर्गत गिरफ्तार करने में संकोच नहीं करती। 2021 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उसके पहले 7 वर्षों में 10552 लोग इस कानून के अंतर्गत गिरफ्तार हुए लेकिन दोष सिद्धी हुई केवल 253 के खिलाफ। अनेक प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेलों में डाला गया। पत्रकारों की भी एक लम्बी सूची है जिन्हें यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। न्यूज़क्लिक के ही सलाहकार सम्पादक गौतम नवलखा भी इनमें शामिल रहे। सरकार विरोधी विचार तो दूर, व्यवस्था की पोल खोलने वाली या उनमें खामियों का खुलासा करने वाली खबरें छापने के कारण भी कई पत्रकारों को इस कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है। जहां तक आतंकवाद में संलिप्त व्यक्तियों एवं संगठनों से जुड़े लोगों की बात है, तो उन्हें सज़ा दिलाने से किसी का विरोध नहीं, पर इसका इस्तेमाल वैचारिक विरोधियों के खिलाफ करना गलत है। लोकतंत्र में सरकार का विरोध जायज है।


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