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महामारी बन गया है रेफरियों से दुर्व्यवहारः रिपोर्ट

फुटबॉल के मैदान पर खिलाड़ियों के बीच दौड़ते रेफरियों को इतना दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है कि बहुत से लोग खेल छोड़ रहे हैं.

महामारी बन गया है रेफरियों से दुर्व्यवहारः रिपोर्ट
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फुटबॉल के मैदान पर खिलाड़ियों के बीच दौड़ते रेफरियों को इतना दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है कि बहुत से लोग खेल छोड़ रहे हैं.

जर्मनी में यूएफा यूरोपीयन फुटबॉल चैंपियनशिप चल रही है, जिसे यूरोज भी कहते हैं. यह दुनिया के सबसे महंगे खेल आयोजनों में से एक है और उम्मीद की जा रही है कि इस साल इस प्रतियोगिता के दौरान 2.4 अरब यूरो का राजस्व पैदा होगा. इसे टीवी पर दुनियाभर के पांच अरब दर्शक मिलने का अनुमान है.

इस विशाल आयोजन के दौरान सबकी नजर फुटबॉल सितारों पर रहेगी. लेकिन 19 लोग ऐसे हैं, जो इस पूरी चकाचौंध में अपनी जगह बनाने और सुरक्षित रहने को संघर्ष कर रहे होंगे.

ये 19 लोग वे रेफरी हैं जो प्रतियोगिता के 51 मैचों के दौरान यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि खेल नियम और कानून से हो. लेकिन इसकी उन्हें खासी कीमत चुकानी पड़ती है. एक ताजा अध्ययन बताता है कि दुनियाभर में फुटबॉल रेफरी गाली-गलौज और मारपीट से इस कदर परेशान हैं कि उनमें से लगभग आधे तो खेल छोड़ने तक की सोच रहे हैं.

यूरोज के रेफरियों में से एक माइकल ओलिवर हैं जिन्हें जान से मारने की धमकियां तक मिल चुकी हैं. 2018 के चैंपियंस लीग फाइनल में उन्होंने आखिरी मिनट में एक पेनल्टी दे दी थी, जिसके बाद ओलिवर को कई तरह की प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ा. उनकी पत्नी लूसी भी फुटबॉल रेफरी हैं. उनका फोन नंबर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया गया, जिसके बाद उन्हें अभद्र और गाली-गलौज वाले मेसेज भेजे गए.

पुराना है खेल में दुर्व्यवहार

रेफरियों के लिए यह यातना नई नहीं है. 2004 के यूरोज क्वॉर्टर फाइनल में स्विट्जरलैंड के रेफरी ने पुर्तगाल के खिलाफ इंग्लैंड के गोल को खारिज कर दिया तो उन्हें पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी थी. इंग्लैंड के नाराज प्रशंसकों ने उन्हें 16 हजार से ज्यादा ईमेल भेजे थे.

फुटबॉल रेफरियों के साथ होने वाले इस व्यवहार को लेकर ब्रिटेन की कोवेंट्री यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन किया है. इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं टॉम वेब और हरजीत सेखों ने यूरोप, ओशेनिया और उत्तरी अमेरिका के 1,300 से ज्यादा रेफरियों से बातचीत की है.

इस सर्वे के आधार पर शोधकर्ता कहते हैं कि रेफरियों के साथ दुर्व्यवहार एक महामारी का रूप ले चुका है. ‘द कनर्वसेशन' पत्रिका में छपे इस शोध पत्र में बताया गया है कि 98 फीसदी रेफरियों ने कभी ना कभी किसी तरह का दुर्व्यवहार झेला है और लगभग 20 फीसदी को शारीरिक यातना भी झेलनी पड़ी है. शोधकर्ताओं ने जितने रेफरियों से बात की, उनमें से लगभग आधे खेल को छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं.

रिपोर्ट कहती है कि रेफरियों के साथ दुर्व्यवहार इस हद तक पहुंच चुका है कि अब फुटबॉल में रेफरियों की कमी होने लगी है. पिछले साल अगस्त में ही यूएफा ने एक भर्ती अभियान शुरू किया जिसका मकसद 40 हजार नए रेफरी भर्ती करना है.

लेकिन शोधकर्ता कहते हैं अगर "खिलाड़ियों, कोच और दर्शकों के व्यवहार में बड़ा बदलाव नहीं होता है तो यूरोप की छोटी प्रतियोगिताएं इन नए रेफरियों को काम जारी रख पाने में मनाने में नाकाम रहेंगी.”

उठाए गए हैं कदम

रेफरियों के प्रति दुर्व्यवहार से निपटने के लिए फरवरी 2023 में फुटबॉल संघ ने पहली बार उनके शरीर पर कैमरा लगाने का परीक्षण भी किया था. फुटबॉल के मैदानों, ड्रेसिंग रूम और अन्य जगहों पर पोस्टर लगाए गए जिनमें खिलाड़ियों, अधिकारियों और दर्शकों से सम्मानजनक व्यवहार का अनुरोध किया गया.

लेकिन शोधकर्ता कहते हैं कि इन उपायों के नतीजे फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं. एक रेफरी ने शोधकर्ताओं को बताया, "मुझे लगता है कि काउंटी स्तर पर, यानी शनिवार को होने वाले लीग मुकाबले इस बात की सबसे बुरी मिसाल हैं कि खिलाड़ी किसी भी कीमत पर जीतने की कोशिश करते हैं. अधिकारियों के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां और गाली-गलौज आम है. जब भी खिलाड़ी एक-दूसरे को छू जाते हैं तो दर्शक फाउल चिल्लाने लगते हैं.”

रिपोर्ट कहती है कि 2016 से अब तक दस हजार से ज्यादा रेफरी इंग्लिश फुटबॉल छोड़ चुके हैं. कोविड महामारी के कारण रेफरियों की भर्ती और मुश्किल हुई है.

रेफरियों के साथ दुर्व्यवहार का आलम यह है कि बच्चों को भी नहीं बख्शा जाता. नवंबर 2021 में इंग्लैंड के 13 और 14 साल के सारे रेफरी हड़ताल पर चले गए थे. वे लोग खिलाड़ियों के माता-पिता और कोच के दुर्व्यवहार का विरोध कर रहे थे.

क्या है समाधान?

शोधकर्ता कहते हैं, "एक समस्या यह है कि रेफरियों को बाहरी समझा जाता है और खिलाड़ियों व दर्शकों को उनके साथ समानुभूति महसूस करने में मुश्किल होती है.”

वेब और सेखों लगभग दो दशकों से दुनियाभर में अलग-अलग खेलों के रेफरियों पर अध्ययन कर रहे हैं. 2020 में उन्होंने इस दुर्व्यवहार को कम करने के लिए दस बिंदुओं वाली एक योजना प्रकाशित की थी.

वे कहते हैं कि खेल में दुर्व्यवहार की संस्कृति को बदले जाने की जरूरत है. इसमें कोच की भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि वे ही अपने खिलाड़ियों के लिए नियमों के पालन की मिसाल कायम कर सकते हैं.

वेब और सेखों अपनी रिपोर्ट में कहते हैं, "बहुत से रेफरी कहते हैं कि खिलाड़ियों, प्रशंसकों और क्लब अधिकारियों को ज्यादा शिक्षित किए जाने की जरूरत है, ताकि उन्हें याद दिलाया जा सके कि जमीन पर काम करने वाले ये रेफरी असल में इंसान हैं जो अपना वक्त देते हैं ताकि लोग खेल का आनंद ले सकें.”


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