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जर्मनी में मंदी जारी, इस साल भी राहत की बहुत उम्मीद नहीं

जर्मनी में मंदी जारी, इस साल भी राहत की बहुत उम्मीद नहीं

जर्मनी में मंदी जारी, इस साल भी राहत की बहुत उम्मीद नहीं
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यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी में मंदी जारी है. पिछले साल जर्मनी की जीडीपी 0.3 फीसदी सिकुड़ गई. महंगी ऊर्जा, ऊंची ब्याज दर और विदेशी मांग में कमी से जर्मन अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है.

जर्मनी की संघीय एजेंसी डेस्टाटिस द्वारा जारी किए गए शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में जर्मनी की अर्थव्यवस्था लगभग 0.3 प्रतिशत सिकुड़ गई.

एजेंसी के प्रमुख रूथ ब्रांड ने 15 जनवरी को आंकड़े जारी करते हुए बताया, "2023 में कुल मिलाकर जर्मनी का आर्थिक विकास लड़खड़ाया." ब्रांड ने कहा कि अर्थव्यवस्था में आई गिरावट ऐसे माहौल में दर्ज की गई है, जब कई तरह के संकट बने हुए हैं.

2024 के लिए कुछ खास उम्मीद नहीं

2022 में जर्मनी का जीडीपी विकास 1.8 फीसदी था. 2023 में रफ्तार और धीमी रही. इस साल भी हालात सुधरने की बहुत उम्मीद नहीं है. महंगाई के बीच लोगों के खर्च करने की दर भी घटी है. इसके अलावा निर्यातकों को भी वैश्विक मांग में सुस्ती का सामना करना पड़ा.

आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल महंगाई की औसत दर 5.9 फीसद थी. 1990 में जर्मनी के एकीकरण के बाद यह महंगाई का दूसरा सबसे ऊंचा स्तर था. इससे पहले 2022 में 6.9 फीसद के साथ महंगाई दर सबसे ऊंचे स्तर पर थी.

ब्रांड ने बताया, "हाल के दिनों में कम हुई कीमतों के बावजूद आर्थिक प्रक्रिया में हर स्तर पर कीमतें ज्यादा रहीं और इसने आर्थिक विकास को प्रभावित किया. बढ़ती ब्याज दरों के अलावा अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर कमजोर मांग के कारण बनी प्रतिकूल वित्तीय स्थितियों ने भी असर डाला है."

कई अर्थशास्त्रियों ने अनुमान जताया है कि 2024 में भी जर्मनी की आर्थिक सेहत में बेहतरी की संभावना नहीं है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद से ही जर्मन अर्थव्यवस्था कई मुश्किलों का सामना कर रही है. यूक्रेन में जारी रूसी युद्ध के कारण महंगाई बढ़ी.

यूक्रेन युद्ध का असर

खासतौर पर ऊर्जा की कीमतों में काफी इजाफा हुआ. ऊर्जा की ज्यादा खपत वाले निर्माण उद्योग पर इसका काफी असर पड़ा और उत्पादन घटा. साथ ही, चीन जैसे प्रमुख व्यापारिक सहयोगियों की ओर से मांग में आई कमी से निर्यात को नुकसान हुआ.

महंगाई से निपटने के लिए यूरोजोन में ऊपर गई ब्याज दरों ने भी जर्मनी की मुश्किलें बढ़ाई हैं. इन स्थितियों के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया था कि विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में सिर्फ जर्मन इकॉनमी ही 2023 में विकास नहीं करेगी.

बजट का संकट

धीमा निर्यात और उत्पादन क्षेत्र में आई गिरावट के बीच प्रशिक्षित कामगारों की कमी भी एक बड़ी चिंता है. इनके कारण जर्मनी में "डीइंडस्ट्रियलाइजेशन," यानी औद्योगिक गतिविधियों और क्षमता में कमी आने का जोखिम है. इनसे निपटने के लिए ओलाफ शॉल्त्स की सरकार ने हरित ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण की दिशा में जमकर निवेश करने की बात कही.

लेकिन अब सरकार खुद ही फंड की कमी से जूझ रही है. नवंबर 2023 में फेडरल कॉन्स्टिट्यूशन कोर्ट ने महामारी से जुड़े फंड को किसी अन्य मद में इस्तेमाल किए जाने को असंवैधानिक बताया. इस फैसले के कारण शॉल्त्स सरकार को अपने बाकी बचे कार्यकाल में बचत करनी पड़ेगी.


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