रियल एस्टेट कारोबारी समेटने लगे हैं बोरिया बिस्तर
नोटबंदी के बाद जीएसटी लागू होने के बाद बाजार एक ओर मंदा पड़ा है, वहीं प्रापर्टी डीलरों का धंधा ही चौपट हो गया है

जांजगीर। नोटबंदी के बाद जीएसटी लागू होने के बाद बाजार एक ओर मंदा पड़ा है, वहीं प्रापर्टी डीलरों का धंधा ही चौपट हो गया है। पिछले वित्तीय वर्ष में पंजीयन विभाग को 73 करोड़ रुपए पंजीयन शुल्क से राजस्व अर्जित करने का लक्ष्य दिया गया था मगर लक्ष्य के विरूद्ध 54 फीसदी ही पूरा हो सका। इस वित्तीय वर्ष में पंजीयन कार्यालयों में सन्नाटा पसरा हुआ है।
जब से टूकड़ों में जमीन की बिक्री पर रोक लगाई गई है, तब से जिले में जमीन खरीदी-बिक्री का काम पूरी तरह से ठप है। नोटबंदी के साथ ही बैंक खातों का आधार नंबर से लिंक व पैन नंबर की अनिवार्यता जैसे जटिल प्रक्रिया के बाद काले धन के रूप में रखी पुंजी बाजार में खपा पाना आसान नहीं रह गया है। यही वजह से है कि बड़ी मात्रा में जमीन खरीदी बिक्री का फैला कारोबार जिले में सिमटने लगा है। इसकी मार कालोनी डेवलपर्स भी झेल रहे है। जिनके मकान की बुकिंग करने ग्राहकों की संख्या घटी है। जिला स्तरीय मूल्यांकन समिति ने इस बार जमीन की कीमतों में वृद्घि का प्रस्ताव नहीं किया है। इसके बाद भी प्रापर्टी बाजार मंदा है।
जिले के उपपंजीयक कार्यालयों में पहले की अपेक्षा 60 फीसदी रजिस्ट्री घट गई है। नोटबंदी के साल भर बाद भी प्रापर्टी बाजार ठण्डा है। इसके चलते इस बार भी जमीन की खरीदी बिक्री प्रभावित हुई है। हर साल नए वित्तीय वर्ष में एक अप्रैल के बाद जमीन की कीमतें बढ़ जाती है मगर इस बार ऐसा नहीं किया गया क्योंकि वैसे ही जमीन की खरीदी बिक्री फीकी थी। इस बार जिला स्तरीय मूल्यांकन समिति ने जो प्रस्ताव भेजा था उसमें जिले में जमीन की कीमतें नहीं बढ़ाने की सिफारिश की गई थी और इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर केन्द्रीय मूल्यांकन समिति द्वारा लगाया गया। इसी आधार पर नए वित्तीय वर्ष से जमीन की खरीदी बिक्री हो रही है मगर प्रापर्टी बाजार अब भी मंदा है कालोनाइजर भी तरह-तरह के आफर चला रहे हैं फिर भी ग्राहक आकर्षित नहीं हो रहे हैं।
ऋण पुस्तिका के आधार कार्ड से लिंकअप ने बढ़ाई परेशानी
जिले में जमीन की खरीदी बिक्री कम होने के कई कारण हैं। इनमें प्रमुख नोटबंदी है। इसके अलावा ऋण पुस्तिका को आधार कार्ड से मर्ज किए जाने के चलते अतिरिक्त व काली कमाई को भूमि में निवेश करने वाले लोगों ने हाथ खिंच लिए।
साथ ही जिले में प्रस्तावित पावर प्लाण्ट के स्थगित या न्यायालय में रोक के कारण भूमि अधिग्रहण आदि की राशि किसानों को नहीं मिल पा रही है। इसके चलते भी जमीन की खरीदी बिक्री भी प्रभावित हुई है। बची खुची कसर जीएसटी ने पूरी कर दी। भवन निर्माण सामग्री के दाम बढ़ गए। कुछ चीजों को छोड़कर लोगों को कोई राहत नहीं है।
कीमत में जमीन-आसमान का अंतर
शासन द्वारा निर्धारित गाइड लाइन और जमीन की वास्तविक कीमत में अभी भी भारी अंतर है। कृषि योग्य जमीन की कीमत जहां गांवों में 7 से 10 लाख रुपए प्रति एकड़ है वहीं गाइड लाइन में यह कीमत 15 से 20 लाख रुपए तक है। ऐसे में दुगने कीमत पर अगर कोई जमीन की खरीदी करता है तब भी वह आयकर विभाग की नजर में आ जाएगा। वहीं अगर गाइड लाइन से कम कीमत में जमीन खरीदी करता है तो भी आयकर विभाग द्वारा अंतर की राशि पर 10 प्रतिशत टैक्स व पेनाल्टी के लिए नोटिस थमा दिया जा रहा है। ऐसे में जमीन खरीदने वालों के समक्ष दोहरी मुसीबत है।
मोह भंग हो रहा दलालों का
जमीन की खरीदी बिक्री कम होने से जमीन दलालों का कामकाज चौपट हो गया है, जिनके द्वारा एग्रीमेंट करके जमीन का सौदा पहले से ही कर लिया गया है। उनको ग्राहक नहीं मिल रहे हैं और लाखों रुपए फंस गया है। ऐसे में वे प्रापर्टी बाजार के दिन बहुरने का इंतजार कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ जमीन दलाल ऐसे भी हैं, जिनकी दुकानदारी पहले की तरह चल रही है। ऐसे लोग आम लोगों को झांसे में लेकर सरकारी भूमि को भी औने-पौने दाम में खपा दे रहे हैं। ये जमीन दलाल लोगों से यह भी वादा कर रहे हैं कि बेची गई भूमि का बकायदा पट्टा बनवाकर देंगे।


