रीडर ने व्हाइटनर लगाकर बदल दिया कलेक्टर का आदेश
फर्जीवाड़ा करने वाले के साथ अपना संबंध निभाने के लिए कलेक्टर न्यायालय के रीडर ने कलेक्टर द्वारा भूमि विक्रय की अनुमति के संबंध में दिए गए आदेश को व्हाइटनर लगाकर बदल डाला

कोरबा। रिश्वत में मिलने वाले हजारों रुपए लेकर फर्जीवाड़ा करने वाले के साथ अपना संबंध निभाने के लिए कलेक्टर न्यायालय के रीडर ने कलेक्टर द्वारा भूमि / मकान विक्रय की अनुमति के संबंध में दिए गए आदेश को दुस्साहसिक ढंग से व्हाइटनर लगाकर बदल डाला। कलेक्टर ने विक्रय की अनुमति दी थी, जिसे बदल कर हाथ से अंतरण लिखते हुए कू ट रचना इस रीडर ने किया है। कलेक्टर ने इस पूरे मामले को काफी गंभीरता से लिया है। यह पूरा मामला कलेक्ट्रेट सहित नगर में चर्चा का विषय बना हुआ है।
जानकारी के अनुसार पश्चिमाचंल के एक व्यवसायी की ओर से उनके आम मुख्तियार द्वारा टीपी नगर क्षेत्र में स्थित एक भूमि / मकान को व्यवसायी की महिला रिश्तेदार को दान पत्र के माध्यम से अंतरण / विक्रय करने की अनुमति बाबत आवेदन न्यायालय कलेक्टर कोरबा में प्रस्तुत किया गया था। उक्त प्रकरण में कलेक्टर न्यायालय द्वारा कोरबा एसडीएम के माध्यम से तहसीलदार से जांच प्रतिवेदन प्राप्त किया गया एवं भूमि व उस पर निर्मित मकान आवेदक के स्वामी हक की परिवर्तित होना पाया तथा आवेदक रकम की आवश्यकता पड़ने के कारण भूमि व उस पर निर्मित मकान को विक्रय करना चाहता है। आवश्यक प्रक्रियाओं के बाद न्यायालय कलेक्टर के द्वारा 10 जुलाई 2017 को आदेश पारित किया गया।
आदेश के अनुसार आवेदक को दान पत्र के माध्यम से अंतरण / विक्रय करने के फलस्वरूप वर्तमान बाजार दर अनुसार उप पंजीयक कोरबा द्वारा प्रतिवेदित मूल्य / पंजीयन दिनांक को प्रचलित गाईड लाइन के द्वारा निर्धारित मूल्य जो भी अधिक हो, जिससे कि शासन को मुद्रांक की हानि न होने की शर्त पर छग भू राजस्व संहिता की धारा-165(6-क) के तहत विक्रय करने की अनुमति कलेक्टर न्यायालय द्वारा प्रदान की गई। कलेक्टर न्यायालय के उपरोक्त विक्रय अनुमति को न्यायालय के रीडर के द्वारा आदेश के कुछ दिन बाद व्हाइटनर लगाकर जहां-जहां पर विक्रय टंंकित किया गया था, वहां-वहां पर व्हाइटनर लगाकर उसे हाथ से अंतरण लिखा जाकर कूटरचना करते हुए बदलने का काम किया गया है।
पंजीयन के वक्त पकड़ी गई गड़बड़ी
कलेक्टर न्यायालय के आदेश को व्हाइटनर लगाकर बदलने की यह गड़बड़ी उप पंजीयक कार्यालय में पकड़ में आयी जब यहां आवेदक भूमि / मकान को विक्रय हेतु प्रक्रियाओं को पूर्ण करने पहुंचा। उप पंजीयक ने जब आदेश की कंडिका 2 को पढ़ा तो उसने आवेदक को रकम की आवश्यकता पड़ने के कारण उक्त भूमि एवं मकान को अंतरण करना चाहता है, लिखा हुआ पाया। यहीं पर उप पंजीयक का माथा ठनका की रुपए की आवश्यकता पर कोई भूमि / मकान कैसे अंतरण(दान) करेगा? इसके बाद आगे की कंडिकाओं को पढ़ने पर गड़बड़ी की आशंका हुई तो उन्होंने कार्रवाई रोक दी।
आदेश के 3 दिन पहले ही नकल का आवेदन
इस मामले में चौकाने वाली एक और बात सामने आयी है कि 10 जुलाई 2017 को कलेक्टर न्यायालय द्वारा आदेश जारी होने से पहले ही 7 जुलाई को सत्य प्रतिलिपि प्राप्त करने आवेदन लगा दिया जाता है और आदेश के दूसरे ही दिन 11 जुलाई को आदेश की सत्य प्रतिलिपि भी प्रदान कर दी जाती है। अमूमन अर्जेंट में किसी भी आदेश की सत्य प्रतिलिपि प्राप्त करने आवेदन करने पर सामान्य प्रक्रिया से सत्य प्रतिलिपि हेतु दिए जाने वाले निर्धारित शुल्क 25 रुपए का दोगुना 50 रुपए शुल्क जमा करना पड़ता है, किन्तु कूट रचना वाले आदेश की सत्य प्रतिलिपि अर्जेंट में प्राप्त करने के लिए भी मात्र 25 रुपए शुल्क लिया गया है। इस तरह राजस्व की क्षति भी पहुंचाई गई है और प्रतिलिपि शाखा में भी बड़े पैमाने पर मिलीभगत व भ्रष्टाचार उजागर हुआ है।
यह होनी थी प्रक्रिया
विधि के जानकारों के मुताबिक यदि किसी भूमि / मकान के विक्रय की अनुमति का आदेश पारित होता है और यदि बाद में उसका अंतरण (दान) कराना हो तो पूर्व के आदेश में संशोधन हेतु आवेदक के द्वारा नियमत: आवेदन देना होता है। उक्त आवेदन पर सुनवाई के बादकलेक्टर न्यायालय द्वारा परीक्षण उपरांत आदेश दिया जाता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।
यहां यह बताना लाजिमी होगा कि कलेक्ट्रेट न्यायालय में दलालनुमा लोगों का जमावड़ा अक्सर लगा रहता है और रीडर सहित कुछ अन्य कर्मियों की इनसे तगड़ी सांठगांठ रहती है। उजागर हुआ मामला भी ऐसी ही कड़ी से जुड़ा है।


