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राजकोषीय घाटे के लिए आरबीआई की आरक्षित निधि की जरूरत नहीं : जेटली

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को स्पष्ट किया कि सरकार को बढ़ते राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की आरक्षित निधि की आवश्यकता नहीं है

राजकोषीय घाटे के लिए आरबीआई की आरक्षित निधि की जरूरत नहीं : जेटली
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नई दिल्ली। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को स्पष्ट किया कि सरकार को बढ़ते राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की आरक्षित निधि की आवश्यकता नहीं है। उधर, लोकसभा में वर्ष 2018-19 के लिए 85.948.86 करोड़ रुपये का अनुपूरक मांग अनुदान पारित हो गया, जिसमें बैंकों के पुनर्पूजीकरण के लिए 41,000 करोड़ रुपये की रकम भी शामिल है।

अनुपूरक मांग अनुदान पर संक्षिप्त जवाब देते हुए वित्तमंत्री ने कहा, "सरकार का राजकोषीय घाटे की पिछली उपब्धियां इतिहास में किसी भी सरकार से बेहतर है। हमें राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए आरबीआई की आरक्षित निधि की जरूरत नहीं है।"

पिछल आठ महीनों में नवंबर तक भारत का राजकोषीय घाटा 7.17 लाख करोड़ रुपये रहा, जोकि 6.24 लाख करोड़ रुपये के बजट का 114.8 फीसदी है।

मंत्री का यह बयान सरकार द्वारा कथित तौर पर आरबीआई से उसकी अधिशेष आरक्षित निधि प्राप्त करने की दिशा में किए गए प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में आया है।

जेटली ने कहा कि दुनिया में केंद्रीय बैंकों के लिए आर्थिक पूंजी की मानक संरचना आरक्षित निधि के तौर पर उनकी परिसंपत्ति का आठ फीसदी होती है। यहां तक कि सबसे संरक्षणवादी देशों में भी यह 14 फीसदी होती है।

उन्होंने कहा, "क्या भारत को 27-28 फीसदी (जोखिम पूंजी) की जरूरत है। धन का उपयोग बैंकों के पुनर्पूजीकरण या गरीबी दूर करने के उपायों के लिए किया जा सकता है।"

उन्होंने कहा कि मसले की समीक्षा के लिए सरकार एक समिति बनाना चाहती है।

वर्ष 2018-19 के लिए दूसरे अनुपूरक मांग अनुदान में गैर-निष्पादित पूंजी (एनपीए) से प्रभावित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 41,000 करोड़ रुपये शामिल है।

जेटली ने कहा कि ऋणशोधन अक्षमता व दिवाला कोड (आईबीसी) समेत सरकार की योजनाओं का लाभ मिल रहा है और एनपीए बन चुका धन अब वापस बैंकिंग प्रणाली में आ रहा है।


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