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इजरायल से उम्मीद की किरण

रक्षा, अनुसंधान, खुफिया तंत्र, तमाम लिहाज से दुनिया में अग्रणी और मजबूत माने जाना वाला देश इजरायल इस वक्त असुरक्षा के खतरे से जूझ रहा है

इजरायल से उम्मीद की किरण
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रक्षा, अनुसंधान, खुफिया तंत्र, तमाम लिहाज से दुनिया में अग्रणी और मजबूत माने जाना वाला देश इजरायल इस वक्त असुरक्षा के खतरे से जूझ रहा है। दरअसल इजरायल की सड़कों पर वहां की जनता सरकार के खिलाफ उतर आई है और इस विरोध प्रदर्शन में जनता के साथ रिजर्व सेना के लोग भी उतर आए हैं। वे कार्य पर नहीं जा रहे हैं। इससे इजरायल की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। यह सब न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए हो रहा है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हुए हैं। वे सत्ता में तो आ गए हैं, लेकिन उनकी सरकार न्यायपालिका में बदलाव लाने वाले न्यायिक सुधार कानूनों को लाने की तैयारी में थी। इसका विरोध करने वालों की आशंका है कि इन के लागू होते ही न्यायपालिका के अधिकार कम हो जाते।

इजरायल की संसद के पास साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को रद्द करने की शक्ति होती, मौजूदा सरकार को बिना किसी डर के कानून पारित करने की ताकत मिल सकती थी और सबसे बड़ी बात कि इस कानून का उपयोग प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर चल रहे मुकदमों को खत्म करने के लिए भी किया जा सकता था। बेंजामिन नेतन्याहू ने पिछले साल नवंबर में बड़ी मुश्किल से सत्ता में वापसी की है। इससे पहले 2021 के जून में उन्हें भ्रष्टाचार के मामलों के कारण पद छोड़ना पड़ा था।

नेतन्याहू सरकार ने जैसे ही न्यायिक सुधार कानून लाने की तैयारी तेज की, इजरायल की जनता सड़कों पर उतर आई। बेंजामिन नेतन्याहू के लिए बीबी घर जाओ के नारे लगने लगे, बीबी नेतन्याहू का प्रचलित नाम है। नेतन्याहू के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इन विरोध प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे हैं, लेकिन इसमें उनके साथ नेतन्याहू के कई समर्थक, श्रम संगठन और रिजर्व सेना के लोग भी आ

गए हैं। विरोधियों का कहना है कि सरकार ने न्यायपालिका से जुड़े कानून में जो बदलाव की कोशिश की है उनसे देश के लोकतंत्र को गंभीर ख़तरा पैदा हो सकता है। सरकार न्यायिक व्यवस्था को कमजोर करना चाहती है। जबकि देश में इसका इतिहास सरकारों पर अंकुश लगाए रखने का रहा है। इजरायल के कई बड़े शहरों में विरोध का दायरा बढ़ता गया और आखिरकार बेंजामिन नेतन्याहू को कहना पड़ा कि वह विवादास्पद बन चुके इन न्यायिक सुधार कानूनों पर अस्थायी रूप से रोक लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब बातचीत के माध्यम से गृहयुद्ध से बचने का विकल्प होता है, तो मैं बातचीत के लिए समय निकाल लेता हूं। यह राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। इस ऐलान के बाद अब सड़कों से विरोधी लौटने लगे हैं और इसे लोकतंत्र की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

कोई भी देश सच्चे अर्थों में तभी लोकतांत्रिक रह सकता है, जब वहां सत्ता पर अंकुश लगाने की व्यवस्था हो। इस व्यवस्था को स्वतंत्र न्यायपालिका, मजबूत विपक्ष और जनतांत्रिक अधिकारों से ही बनाया जा सकता है। इनमें से कोई भी पक्ष कमजोर हो तो लोकतंत्र पर आंच आने लगती है, सत्ता के निरंकुश होने का खतरा बढ़ने लगता है।

इजरायल में नेतन्याहू ने इसी तरह निरंकुश होने का रास्ता बनाने की तैयारी की थी, लेकिन जनता, विपक्ष और सत्ता के साथ खड़े कुछ लोगों ने ही मिलकर इस रास्ते को बनने से रोक दिया। क्योंकि वे इसके बाद भविष्य के खतरों को भांप रहे हैं। लोकतंत्र में जब एक बार मनमाने आचरण की छूट मिल जाए, तो फिर तानाशाही को रोकना कठिन हो जाता है। जर्मनी जैसे देशों ने तानाशाही का क्या खामियाजा भुगता है, यह दुनिया ने देखा है। अभी उत्तर कोरिया में सत्ता की यही सनक लोगों पर भारी पड़ रही है, जहां शासक किम जोंग ने 2 लाख से अधिक आबादी वाले शहर हेसन में सिर्फ इस बात के लिए कड़ा लॉकडाउन लगा दिया ताकि सैनिकों ने असॉल्ट राइफल की जो 653 गोलियों हाल ही में खोई हैं, उनकी तलाश की जा सके। कुछ सौ गोलियों के लिए 2 लाख लोगों को बंधक बनाने का यह फैसला अगर एक देश का तानाशाह कर सकता है, तो निरंकुशता की ओर बढ़ रहे बाकी देश कब तक ऐसे किसी सनक वाले फैसले से बच पाएंगे, ये ख्याल ही डराता है।

दुनिया के कई देशों में शासकों ने अपने मन की बातें लोगों पर थोपी हैं। धर्म या नस्ल के गौरव, रूढ़िवादी विचारों, या राष्ट्रवाद के नाम पर कई ऐसे कानून बनाए हैं, जिनसे जनता के अधिकारों का हनन होता है या अदालतों की शक्तियां कम होती हैं। ये अतिवादी फैसले दुनिया को तबाह कर सकते थे, लेकिन दुनिया अब तक इसलिए ही बची हुई है, क्योंकि लोग समय-समय पर इन अविचारित फैसलों और निरंकुशता के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत दिखाते रहे हैं। पिछले कुछ समय में ईऱान, ब्राजील, फ्रांस से लेकर अभी इजरायल तक दुनिया ने जनता की ताकत को देखा है। सत्ता की नजर में मामूली हैसियत रखने वाले ये आम लोग ही लोकतंत्र को बचाने का इतिहास लिख रहे हैं। इन लोगों को कभी राष्ट्रविरोधी कहा जाता है, कभी गद्दार कहा जाता है, इन्हें कुचलने के लिए कानून का जोर दिखाया जाता है, लेकिन फिर भी लोकतंत्र बचाने की उम्मीद लिए कोई न कोई विरोध की किरण अपनी चमक दिखला ही जाती है। इस वक्त इजरायल से ऐसी ही चमकती किरण दुनिया ने देखी है। वक्त आ गया है कि सत्ता को स्थायी समझने वाले नेता भी इसे देख लें और बात ज्यादा बिगड़े इससे पहले संभल जाएं।


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