रविदास वंश के सदस्यों ने किया रानी के महल का निरीक्षण
संत रविदास वंश के सदस्यों ने आज तवानगर स्थित चमरदल महल का दौरा करके पुरातत्व विभाग द्वारा उसकी अनदेखी करने पर रोष जताया

इटारसी। संत रविदास वंश के सदस्यों ने आज तवानगर स्थित चमरदल महल का दौरा करके पुरातत्व विभाग द्वारा उसकी अनदेखी करने पर रोष जताया। समाज के युवा राजू सिंकदर बकोरिया, कन्हैयालाल बामने, प्रकाश कंथेले व अजय अहिरवाल ने सतपुड़ा के जंगलों के बीच रानीपुर में तवा नदी किनारे बने चमरदल महल का दौरा कर उसकी दुर्दशा पर नाराजी जतायी। इन सदस्यों का कहना है कि करीब 5 एकड़ वन भूमि में चमरदल महल था, जो आज पुरातत्व विभाग की अनदेखी से जीर्ण-शीर्ण हो चुका है।
समाज के अजय अहिरवाल ने कहा कि महल के समीप पानी के कुंड व बाबड़ी बनी है जो लगभग 50 फुट गहरी थी, अब विलुप्त हो रही है। बाबड़ी के समीप अंदर स्नान कुंड था जहां रानी व दासियां स्नान किया करती थीं। उसी कुंड से एक गुप्त रास्ता तवानदी को पार करके उस पार जाता था। नदी के उस पार भी महल व चमार राज्य के अन्य भवन बने हुये हैं, अब जिनके अवशेष बचे हैं। चमार राजा ने यहां राज्य किया था। 300 से 400 वर्ष पहले राजा ने अपने राज्य में चमड़े के नोट व सिक्के चलाये थे। राज्य का क्षेत्र चौबीसा कहलाता था। इसके अंतर्गत सनखेड़ा, सोमलवाड़ा, घाटली, गुर्रा, सिलारी से सोनतलाई, बिछुआ, मरोड़ा के बीच के लगभग 24 गांव थे। समाज के बुजुर्ग बताते हैं कि यहां की रानी के पास पारसमणि पत्थर था। जो पत्थर लोहे को छू ले तो पारस बन जाता था। राजा उस समय लगान के रूप में किसानों से उनके हंसिय आदि लिया करते थे और उन्हें पारसमणि पत्थर से छूकर पारस बनाते थे। जब ये जानकारी उस समय के लुटेरों को लगी तो उन्होंने राज्य पर हमला कर राजा की हत्या कर दी। रानी ने अपनी जान बचाने पारसमणि लेकर नदीं में छलांग लगा दी।
लुटेरों ने जिस जगह रानी नदी में कूदी थी, वहां काफी तलाश की, लेकिन उस जगह पानी बहुत गहरा था। बुजुर्ग बताते हैं कि गहराई इतनी जितनी एक खाट में रस्सी बुनते हैं, उसके बीस गुना। पारसमणि ढूंढने नदी में लोहे की बड़ी-बड़ी सांकल डालकर हाथियों से खिंचवायी लेकिन कुछ नहीं मिला। आज रविदास वंश के लोग चाहते हैं कि अपने राजा और राज्य की जगह पर सरकार संत रविदास जी की प्रतिमा स्थापित कर समाज के लिए तीर्थस्थल के रूप में विकसित करे।


